सूत्र ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि अब प्रामाणिकता के लिए सामग्री की छानबीन करनी होगी। फिल्म को पहले निमार्ताओं के पास वापस भेज दिया था, क्योंकि उन्होंने उस कॉलम को रिक्त छोड़ दिया था, जिसमें यह लिखना था कि यह फिल्म काल्पनिक है या ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है।
सूत्र ने बताया कि सीबीएफसी ने कहा कि ‘पद्मावती’ को जनवरी में ही प्रमाणित किया जा सकता है, क्योंकि दिसंबर तो लगभग बीत रहा है। ‘पद्मावती’ से पहले विभिन्न भाषाओं की कम से कम 40 फीचर फिल्में कतार में हैं। सूत्र ने कहा कि वर्ष का अंतिम महीना होने के कारण बोर्ड के कुछ सदस्य छुट्टी पर हैं और कुछ अन्य बीमार हैं।
समीक्षा के लिए क्या इतिहासकारों की समिति गठित होगी? इस सवाल पर सूत्र ने कहा, ‘पैनल नियुक्त करने की बात छोडि़ए, हमारे पास फिल्मों को देखने के लिए सामान्य जांच समिति भी नहीं है।’ सूत्र ने कहा,’फिल्म के जनवरी के दूसरे सप्ताह में प्रमाणित होने की संभावना है। मुझे नहीं लगता कि वे मार्च या अप्रैल से पहले फिल्म को रिलीज कर सकेंगे। यह भी तब होगा, जब सीबीएफसी फिल्म को बिना किसी आपत्ति के प्रमाणित कर दे।’
हिमाचल प्रदेश और गुजरात चुनाव से ठीक पहले ‘पद्मावती’ पर राजपूत संगठनों ने इसके खिलाफ आंदोलन तेज कर दिया था। यह मुद्दा उठाने से राजपूत वोट मिलने की संभावना देख भाजपा भी इस आंदोलन में कूद पड़ी। भाजपा हालांकि खुद को जाति की राजनीति न करने का दावा करती है। मगर बिहार चुनाव में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था, ‘प्रधानमंत्री ओबीसी हैं।’ यह कहकर उन्होंने ओबीसी को लुभाने का प्रयास किया था।