मैं हमेशा डायरेक्टर का एक्टर रहा हूं…
अनिल ने बताया कि मेरे लिए अपने सारे सपने पूरे करने के लिए एक जिंदगी कम है। फिल्ममेकिंग एक टीम वर्क है और मैं गर्व से कहता हूं कि मैं हमेशा डायरेक्टर का एक्टर रहा हूं। मैं दिल से मानता हूं कि डायरेक्टर ही फिल्म का कैप्टन होता है। मैंने 1977 में मैंने पहली बार कैमरा फेस किया था, लेकिन अभी मैं बहुत कुछ करना चाहता हूं।’
मैं ‘कपूरियत’ नहीं करूंगा
अपनी इतनी लंबी और सफल फिल्मी पारी का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि जब मैंने अपना कॅरियर शुरू किया, तो अपना सरनेम कपूर मुझे सबसे बड़ा नुकसान लगा। मैंने तभी सोच लिया था कि मैं वही करूंगा, जो कोई कपूर नहीं कर रहा है। मैं ‘कपूरियत’ नहीं करूंगा। मुझे अलग मुकाम बनाना है। इसी कारण मैं सिर्फ श्याम बेनेगल, मृणाल सेन, एम एस सथ्यू, मणिरत्नम जैसे सीरियस फिल्ममेकर्स से मिलता था। उस समय लोगों को समझने की जरूरत थी कि मैं सीरियस एक्टर भी हूं। लोग जिसे टिपिकल फिल्में समझते हैं उन्हें कपूर इतने जबरदस्त तरीके से कर सकते हैं कि उनके जैसा काम करने वाला न पैदा हुआ था न होगा। वह उनके अंदर कुदरती है। मुझे लगा कि मेरे में वो बात नहीं है। इसलिए, मैंने सीरियस फिल्में करनी शुरू की। छोटे-छोटे रोल किए। साउथ की फिल्में कीं।’