‘72 हूरें’ फिल्म में बिलाल और हाकिम नाम के दो लोग है जो मौलाना सादिक़ के बहकावे में आ जाते है और जिहाद के नाम पर हत्याएं करने करने को तैयार हो जाते है। मौलाना सादिक़ दोनों को 72 हूरों का लालच देकर इंडिया पर एक बम ब्लास्ट कराने का प्लान बनाते हैं। जिसके लिए बिलाल और हाकिम भारत आकर मुंबई में गेटवे ऑफ इंडिया पर बम फोड़ देते हैं। जिसमें दोनों की मौत भी हो जाती है। मरने के बाद इनका शरीर को खत्म हो जाता है लेकिन आत्मा धरती पर ही भटकती रहती है। दोनों की आत्माएं इंतज़ार कर रही होती हैं कि उन्होंने तो अपना मक़सद पूरा कर दिया, फिर वो जन्नत क्यों नहीं पहुंच रहे? इसी उधेड़बुन में वो बहुत सारा विमर्श करते हैं। ऐसा करते- करते साल बीत जाता है मगर मगर जैसा मौलाना सादिक़ ने बताया था, वैसा कुछ नहीं होता। तब उन्हें समझ आता है कि उनके साथ धोखा हो गया है। फर्ज़ी के बहकावे में आकर उन्होंने अपनी जान दे दी। इस फिल्म की पूरी इसी बात पे है।
इस फिल्म के बारें में अगर बात करें तो इसकी नीयत काफी सही लगती है। वो अलग बात है कि समाज में ऐसा बहुत बार होता है कि लोग धर्म का हवाला देकर लोगों की हत्याएं करवाते हैं। इस फिल्म के प्रोड्यूसर अशोक पंडित हैं। इस फिल्म को जैसे प्रमोट किया जा रहा था, उससे लग रहा था कि ये फिल्म भी धर्म विशेष को कटघरे में खड़ा करेगी। फिर से उन्हें अपनी देशभक्ति साबित करने को कहा जाएगा। मगर ’72 हूरें’ कहीं भी ये चीज़ करती नज़र नहीं आती है।