कुंभक
भीतर ली हुई सांस को फेफड़ों में रोके रखने की प्रक्रिया को आंतरिक कुंभक और सांस बाहर छोड़कर कुछ देर बाहर ही रोकने को बाहरी कुंभक कहते हैं। रेचक
भीतर ली हुई सांस को नियंत्रित गति से बाहर छोडऩे की क्रिया रेचक है। सांस धीरे या तेज गति से छोड़ते समय सही लय और अनुपात का होना आवश्यक है।
भस्त्रिका : सुखासन, पद्मासन, वज्रासन में से किसी भी एक में बैठकर नाक से लम्बी सांस लेंं और छोड़ें। इस दौरान दबाव एक समान हो। सांस भीतर लेते समय पूरी सांस लें।
लाभ : हृदय व फेफड़े मजबूत होते हैं और ऊर्जा मिलने के साथ खांसी में आराम होता है।
कपालभाति : किसी भी अवस्था में बैठें। सांस बाहर छोड़ते समय पेट को अंदर की तरफ खीचें। इसमें केवल सांस को छोड़ते रहना है। जोर लगाकर श्वास न लें।
लाभ : इससे गैस, कब्ज, मधुमेह, मोटापा और मौसमी रोग दूर होते हैं।
शीतली : सुखासन में बैठें। जीभ को किनारों से मोड़ नौकाकार बनाएं सांस लेते हुए जितना हो सके हवा अंदर खींचे। मुंह बंद करें। थोड़ी देर बाद सामान्य स्थिति में आ जाएं।