100 साल पुराना एक ऐसा स्थल जहाँ हिन्दू – मुस्लिम दोनों करते हैं पूजा, अंग्रेज भी यहाँ मत्था टेककर जाते थे
बिलासपुर. दादा-दादी से सुनी जाने वाली रानी-राजा और हाथी-घोड़े के किस्से-कहानियां हमेशा आकर्षित करती हैं। हर बार बिल्कुल नयापन लिए। बार-बार सुनने-पढऩे की उत्सुकता रहती है। mysterious places in india hindi बिलासपुर के गोलबाजार से गांधी चौक के बीच जवाली नाले के निकट बनी बावली की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। न जाने कितने सालों से इस बावली कुएं से जुड़ी कहानियां लोगों के जेहन में बसी हैं पर जब भी इस रहस्यमयी कुंए की बात करिए तो बताने और सुनने वाले दोनों की आंखों में चमक आ जाती है। mysterious well शायद कुछ नया सुनने को मिले। पत्रिका ने बावली कुआं से जुड़े कुछ अनछुए पहलुओं को जानने की शुरुआत बावली कुएं से ही की। इस कुएं की वर्तमान तस्वीर यह है कि इसे नगर निगम ने ग्रिल लगाकर ढक दिया और फिर भी पड़ोसी लोग कचरा और कुछ धार्मिक प्रवृत्ति के लोग फूल व पूजा की निष्प्रयोज्य सामग्री यहां डंप करने लगे। यह कचरा कभी भी देखा जा सकता है। mysterious places near me
कई सुरंग और नहाने आती थी रानियां : ये बातें भी सुनी जाती हैं कि इस कुएं में सुरंगे भी हैं, जो कहीं दूर निकलती हैं। एक रतनपुर तक भी निकलती हैं। रतनपुर से रानियां यहां आती थीं लेकिन डॉ.गोपाल शेष इन बातों से बिल्कुल इत्तेफाक नहीं रखते। 100 year old well
आकर्षक कलाकारी, संरक्षण जरूरी : नागपुर शैली में इस बावली का निर्माण किया गया था। कई दशक बीतने के कारण इसकी स्थिति जर्जर हो गयी थी। फिर नगर निगम ने नागपुर से कारीगर बुलाकर इसे वर्तमान स्वरूप में ठीक किया। 100 year old mysterious well निगम की सील में है बावली का चिह्न : नगर निगम बिलासपुर की सील में इस बावली को स्थान दिया गया है। इसकी वजह बावली से बिलासपुर के इतिहास का जुड़ाव होना है। strange places in chhattisgarh
कुएं पर पटरे बिछाए गए हैं और गणेशोत्सव के वक्त यहां गणपति विराजते हैं। तो मोहर्रम के समय भी समुदाय विशेष के लोग यहां आते हैं। आप कह सकते हैं कि साम्प्रदायिक सद्भाव की एक बड़ी मिसाल है। कुएं के ठीक पीछे पिछले 12 साल से चाय की दुकान चलाने वाले जय तो इस बात पर खुश है कि उसे चाय दुकान के लिए छोटी सी जगह मिल गई लेकिन बावली की बदहाली से उसका कोई सरोकार नहीं है। जय ने अपने पुरखों से सुना है कि बावली बहुत गहरी है और इसमें सुरंग जैसी है जो रतनपुर तक जाती है और इसमें राज परिवार की महिलाएं नहाने के लिए इसका पानी उपयोग करते हैं। राजा लोग हाथी पर आते थे और रानियां पालकियों में। कुछ और रोचक जानकारियां मिलीं, इस बावली का निर्माण कराने वाले शेष परिवार के वरिष्ठ सदस्य डॉ. गोपाल शेष से। शेष अब रिटायर्ड हैं और बिलासपुर की कला, संस्कृति और इतिहास की चीजों में दिलचस्पी रखते हैं। mysterious places in chhattisgarh
बावली कुंए की बात शुरू हुई तो उन्होंने बताया कि इसका निर्माण 1860 में हुआ था। किसने कराया? डॉ.शेष ने इतिहास के कुछ पन्ने पलटे और बोले 1860 में नागपुर की भोसले रियासत रघु जी भोसले के पास थी और भोसले के दरबार में पुरुषोत्तम शेष थे। रघु भोसले की रियासत रतनपुर में थी और उस वक्त गांव की शक्ल में बिलासपुर रतनपुर की रियासत का एक हिस्सा था। डॉ.शेष ने आगे बताया कि राजा का आदेश मानकर पुरुषोत्तम शेष बिलासपुर आ गए और यहां किले का निर्माण कराया। पुुरुषोत्तम शेष की मृत्य के बाद उनकी पत्नी भागीरथी बाई इस संपत्ति की मालकिन बनीं। सामाािजक कार्यों में रुचि व प्रजा का ख्याल रखने वाली थीं। उन्होंने ही इस बावली कुंए का निर्माण कराया। अंग्रेजी के सूबेदार व सैनिक इसी कुंए से प्यास बुझाकर मत्था टेकते थे। फिर आगे बढ़ते थे। unique places in india
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