पापड़ के कारखानों में सुबह पांच बजे से ही काम शुरू हो जाता है और इसके एक घंटे बाद महिलाएं सिर पर खाली पीपा लिए चल पड़ती है कारखानों की ओर। घर आकर कुछ घरेलू कामकाज निपटा कर बेलन-चकला लेकर बैठ जाती है और सैकड़ों पापड़ कुछ ही घंटों में बेल देती है। पापड़ के कारखानों के ढाई माह बाद वापस शुरू होने के कारण महिलाओं की आर्थिक स्थिति में वापस सुधार आना शुरू हो गया है।
100 पापड़ बेलने पर इतना मेहनताना पापड़ों के अलग-अलग कारखानों के संचालकों ने अपनी आय के मुताबिक पापड़ बेलाई की दर निर्धारित की हुई है। सौ पापड़ बेलने पर एक महिला को 30 से 38 रुपए का मेहनताना मिलता है। यह राशि महिलाएं संभाल कर रखती है, ताकि घरों में कोई आर्थिक संकट उत्पन्न होने पर कुछ मदद कर सकें। पापड़ बेलने वाली महिला नानू देवी प्रजापत ने बताया कि लॉकडाउन के समय घर के सभी पुरुष सदस्य बेरोजगार हो गए थे। कहीं से भी आमदनी नजर नहीं आ रही थी। ऐसे में पापड़ बेल कर एकत्रित की गई जमा पूंजी से ही घर का खर्च चलाना पड़ा था।
बीकानेर में 400 कारखानें भुजिया-पापड़ के लिए विश्व में विख्यात इस शहर में पापड़ के करीब ४०० कारखानें हैं जहां पर सुबह पांच बजे से ही लोवा बनाने और गिनने का काम शुरू हो जाता है। तीन घंटों में ही लोवा वितरण का काम पूरा हो जाता है। इन लोवा से ही पापड़ की बेलाई की जाती है।
हाथ की बेलाई से पापड़ स्वादिष्ट
हाथ से बेला गया पापड़ स्वादिष्ट और अच्छा होता है। बीकानेर में इस समय तीस प्रतिशत पापड़ की बेलाई मशीनों से होती है। जबकि अभी भी 70 प्रतिशत बेलाई हाथों से की जाती है। हाथों से बेलाई करने पर कुछ लोग आटा का उपयोग करते हैं। इससे पापड़ बेलने पर सरल होता है और तुलाई में भी भारी हो जाता है।घर खर्च चलाने में उपयोगी मदद
अब फिर से गति पकडऩे लगा काम बीकानेर में करीब चालीस हजार महिलाएं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से इस काम से जुड़ी हुई है। जो अपना घर खर्च चलाने में सहायता करती है। 22 मार्च के बाद से पापड़ बेलने का काम बंद हो गया था। अब वापस धीरे-धीरे गति पकड़ रहा है। बीकानेर में पापड़ के चार सौ कारखानें स्थापित है।
– नवरत्न सिंघवी, पापड़ व्यवसायी, बीकानेर