सारे काम रोक दिए जाते हैं
जून माह में हर साल चार दिन तक मनाए जाने वाले रजो पर्व की परंपरा के पीछे मान्यता की बाबत बताया गया कि राज्य के लोग मानते हैं कि भूदेवी (पृथ्वी) भगवान विष्णु की पत्नी हैं। बारिश आने वाली होती है तो भूदेवी को रजस्वला से होकर गुजरना पड़ता है। उनका यह पीरियड तीन से चार दिन तक का होता है। इस दौरान खेतीबारी, बुआई कटाई यानी जमीन से जुड़े सारे काम रोक दिए जाते हैं ताकि भूदेवी को खुश रखते हुए आराम दिया जा सके।
घर का सारा काम पुरुष करते हैं
पर्व का पहला दिन रज होता है। दूसरा दिन मिथुन संक्रांति तथा तीसरा दिन पीरियड्स खत्म होने का माना जाता हैं। उसे बासी-रज कहा जाता है। सोजा-बोजा (सजावट, गीत संगीत) से शुरू हुए रजोपर्व का समापन चौथे दिन वासुमति स्नान (गाधुआ) अर्थात भूदेवी स्नान के साथ होता है। रजोत्सव के पांचवे दिन स्त्रियां बाल धोकर शुभ कार्यों में भाग लेने लगती हैं। पीठा, चाकुली पीठा मुख्य खाना होता है। ओडिशा में चारों दिन बालिकाएं और युवतियां नए कपड़े पहनती हैं। सजती हैं, मेहंदी लगाती हैं। झूला झूलना आदि करती हैं। विवाहित महिलाएं तीन व कहीं कहीं चार दिनों तक कोई काम नहीं करती हैं। घर का सारा काम पुरुष करते हैं। चाहे वह खाना बनाना ही क्यों न हो।
घरों में बनाते हैं पकवान
अधिकतर घरों में रजपर्व शुरू होने से पहले ही पकवान बना लिए जाते हैं। गांवों में देसी खेलकूद का माहौल रहता है। पेड़ों पर झूले लग जाते हैं। घर-घर मुख्य डिश पीठा बनाया जाता है। पान खाना एक परंपरा है। पुरी, कटक, जगतसिंहपुर, भद्रक, केंद्रपाड़ा, बालासोर, गंजाम जिलों का यह प्रमुख त्योहार है।
धरती को स्त्री का दर्जा
भारत में धरती को हमेशा स्त्री का दर्जा दिया गया है। जिस तरह सामान्य तौर पर स्त्री के रजस्वला होने के बाद यह माना जाता है कि वह संतानोत्पत्ति में सक्षम है। ठीक उसी तरह अषाढ़ मास में भूदेवी रजस्वला होती हैं और खेतों में बीज डाला जाता है ताकि फसल पैदावार अच्छी हो। स्थानीय भाषा में रज पर्व को रजो पर्व कहा जाता है।