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Year Ender 2020: कोरोना ने बदल दी भगवान की दिनचर्या

लॉक डाउन में पट रहे बन्द पर चलती रही पूजा अर्चना, मंदिरों की समय तालिका में परिवर्तन

भोपालDec 25, 2020 / 02:36 pm

Hitendra Sharma

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भोपाल. दुनिया में साल 2020 कभी ना भूलने वाले साल के रुप में स्मृति में रहेगा। इस वर्ष पूरी दुनिया कोरोना महामारी की चपेट में आई और लोगों के साथ साथ भगवान को भी मंदिरों में बंद रहना पड़ा। कोरोना संक्रमण के चरम के समय मंदिरों में विराजे भगवान की भी दिनचर्या बदल गई। भारत में लॉकडाउन में लगते ही मंदिरों के पट बंद हो गये, हालाकि पुजारी समय तालिका के हिसाब से पूजा करते रहे पर भगवान अपने भक्तों को दर्शन नहीं दे सके। लोग अपने प्रभु के दर्शन केवल ऑनलाइन ही दर्शन दे पाये।

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जहां दुनिया भर में कोरोना वायरस ने अपने पैर पसार लिये हैं। कोरोना वायरस ने देश में भी कई लोगों को अपनी चपेट में ले लिया। कोरोना का असर मंदिरों में भी देखने को मिला। मध्य प्रदेश के प्रमुख मंदिरों में भी कोरोना के चलते पूरी व्यवस्था बदलनी पड़ी। ये शायद सदियों में पहली बार हुआ था कि बाबा महाकाल मंदिर उज्जैन, ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग सहित प्रदेश के सभी मंदिरों के पट बंद कर दिये गये। उज्जैन में स्थित महाकाल मंदिर में भी कोरोना वायरस के चलते कुछ परिवर्तन किये गये हैं। भस्म आरती के बाद श्रद्धालु सिर्फ भगवान के दूर से दर्शन कर पाए। मंदिर प्रांगण में किसी को बैठने की अनुमति नहीं मिली। इसके अलाव भस्त आरती के साथ-साथ मंदिर प्रांगण में भी अन्य स्थानों पर भी अधिक भीड़ ना हो इसका भी निर्णय लिया गया।

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जब लॉकडाउन खुला और देश में मंदिरों में भक्तों को जाने की अनुमति मिली तो मंदिरों में कोरोना गाइडलाइन को सख्ती से पालन कराया गया। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन की व्यवस्था बदली, महाकाल मंदिर समिति ने महाकालेश्वर मंदिर में आरती और भगवान के दर्शन की व्यवस्था में परिवर्तन किया। नई व्यवस्था के तहत हर दिन सुबह 4 बजे से 6 बजे तक भस्म आरती, सुबह साढ़े सात से सवा आठ बजे तक द्योदक तथा सुबह 10.30 बजे से भोग आरती होने लगी। इसी प्रकार शाम को 5 बजे संध्या पूजा, साढ़े 6 बजे से शाम 7 बजे तक संध्या आरती हुई। जबकि रात साढ़े दस बजे से 11 बजे के बीच शयन आरती होने लगी। इसी आरती के बाद महाकाल मंदिर के पट बंद कर दिए जाने लगे।

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महाकाल मंदिर समिति ने कोरोना वायरस के डर से भस्म आरती में आम व वीआईपी श्रद्धालुओं के प्रवेश पर रोक लगा दी, सिर्फ पुजारी और पुरोहित ही मंदिर की भस्म आरती करने की अनुमति दी गई। इसके साथ ही जिन लोगों ने भस्म आरती के लिये 1 महीने पहले बुकिंग करवाई थी उनकी बुकिंग भी कैंसिल कर दी गई। जिसकी सूचना श्रृद्धालुओं को एसएमएस द्वारा दी गई है। कोरोनाकाल में महाकाल मंदिर में एडवांस बुकिंग के जरिए ही भक्तों को महाकाल के दर्शन कराए गये। अब भी भक्त महाकालेश्वर एप व मंदिर की वेबसाइट पर निःशुल्क एडवांस बुकिंग कराकर भगवान महाकाल के दर्शन कर रहे हैं। कोरोना के गाइडलाइन के मुताबिक फिलहाल भक्तों का गर्भगृह में जाने पर पाबंदी रही। भक्तों को हार-फूल, पूजन सामग्री और प्रसाद भी चढ़ाने नहीं दिया। यहां तक कि शिवलिंग पर जल भी चढ़ाने की अनुमति नहीं दी गई।
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वायरस के डर से 10 फीट दूर से दर्शन
खंडवा. कोरोना वायरस के डर से अब मंदिरों में भी भक्तों की भगवान से दूरी बढ़ा दी गई है। देश के चौथे प्रणव ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर मंदिर में बुधवार से ज्योतिर्लिंग पर जल, फूल, विल्बपत्र, प्रसाद, नारियल चढ़ाने पर आगामी आदेश तक प्रतिबंध लगा दिया गया है। साथ ही भक्तों को ज्योतिर्लिंग मंदिर के पीछे वाले श्री सुखदेव मुनि गेट से प्रवेश कराकर 10 फीट दूर से दर्शन कराकर चांदी गेट से निकाला जाता था।

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कोरोना वायरस का असर के चलते मंदिरों में भक्तों का आना बंद हुआ इसके साथ ही हवन-पूजन,अनुष्ठान और यज्ञ पर भी रोक लगी। धार्मिक कार्यक्रमों के बंद होने से प्रदेश के सभी छोटे-बड़े मंदिरों की कमाई पर बड़ा झटका लगा। महाकाल, ओमकारेश्वर, मैहर और खजराना जैसे बड़े मंदिरों में दानपेटियां खाली पड़ी रहीं। दो करोड़ महीने दान पाने वाले महाकाल मंदिर में ऑनलाइन दो लाख ही दान आया। ये बड़े मंदिरों के हालात हैं तो छोटे मंदिरों का आर्थिक ढांचा ही चरमरा गया। प्रदेश के करीब 22 लाख मंदिरों के पुजारियों पर रोजी-रोटी का संकट में आ गई। सरकार ने आठ करोड़ की राशि जारी की लेकिन ये नाकाफी है, इससे महज 25 हजार पुजारियों को ही फायदा पहुंच सका। वहीं मस्जिदों के इमाम, चर्च के पादरी और गुरुद्वारों के ग्रंथी और सेवादार भी आर्थिक संकट से जूझते रहे।

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प्रमुख मंदिरों में दान की स्थिति

– महाकाल मंदिर, उज्जैन : द्वादश ज्योतिर्लिंग में सबसे प्रमुख भगवान महाकाल प्रदेश के उज्जैन में हैं। सामान्य दिनों में महाकाल के दर्शन के लिए देशभर से श्रद्वालु आते हैं। मंदिर में दो करोड़ रुपए महीने से ज्यादा की आमदनी होती है। लेकिन लॉकडाउन के चलते महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति को अपने कर्मचारियों को वेतन देने में मुश्किल हो रही है। मंदिर का खर्च एक करोड़ रुपए महीने से ज्यादा है। मंदिर के प्रशासक सुजान सिंह रावत कहते हैं कि मार्च में सवा लाख और अप्रैल में सवा दो लाख का दान ही ऑनलाइन आया है।

ओमकारेश्वर मंदिर,खंडवा : द्वादश ज्योतिर्लिंग में खंडवा जिले में स्थित ओमकारेश्वर धाम भी आता है। यहां पर सामान्य दिनों में भक्तों की आमद से महीने में10-15 लाख से ज्यादा की दान की राशि आती है। लॉकडाउन के बाद से ये दान आना बंद हो गया है।

खजराना गणेश मंदिर,इंदौर : मंदिर के मुख्य पुजारी सतपाल महाराज कहते हैं कि लॉकडाउन के कारण भक्त भगवान विनायक के दर्शन नहीं कर पा रहे हैं। मंदिर की कमाई महीने में 40 लाख रुपए थी जो अब शून्य है।

शारदा देवी,मैहर : सतना जिले में स्थित मां शारदा देवी के मंदिर में लॉकडाउन में 80000 की आय हुई है। लॉकडाउन के पहले रोजाना 3 से 3.50 लाख रुपए की आय होती थी। मंदिर बंद होने के कारण दर्शनार्थी नहीं पहुंचे। ऑनलाइन दान से 80 हजार रुपए आए।

सलकनपुर धाम : मां विजयासन देवी के सलकनपुर धाम में सामान्य दिनों में 15-20 लाख रुपए महीने की आय होती है। माता के दरबार में भक्तों की बहुत आस्था है लेकिन लॉकडाउन के बाद से सिर्फ मंदिर के पुजारी ही माता की पूजा अर्चना करने मंदिर जा रहे हैं। यहां की आय शून्य हो गई है।

नलखेड़ा धाम : मां बगलामुखी के धाम नलखेड़ा में सभी धार्मिक अनुष्ठान बंद हैं। ये वो धाम है जहां राजनेता सरकार बनाने और गिराने के साथ ही शत्रु विजय, चुनाव में जीत के लिए यज्ञ कराने आते हैं लेकिन अब न तो मंत्रोच्चार सुनाई देता है और ही हवन का धुआं उठता है। हां पर 15-20 लाख रुपए महीने की आमदनी होती है लेकिन अब सब शून्य है।

ट्रस्ट के जिम्मे मंदिरों का प्रबंधन
बड़े मंदिरों में दान की राशि का सारा प्रबंधन ट्रस्ट के जरिए होता है। मंदिरों में भगवान के श्रृंगार की सामग्री के साथ उनके हवन-पूजन और प्रसाद पर बड़ी राशि खर्च होती है। इसके अलावा मन्दिर समिति स्टाफ का खर्च, मन्दिर के कर्मचारियों का वेतन भी इस दान राशि से ही दिया जाता है। महाकाल मंदिर में अन्नक्षेत्र चलता है जहां पर बड़ा खर्च होता है। इसके अलावा मंदिरों के मेंटनेंस पर भी एक निश्चित धनराशि का व्यय किया जाता है। समय और परिस्थिति के हिसाब से मंदिरों में विकास कार्य किए जाते हैं। ये सारा खर्च मंदिरों में होने वाली चढ़ोत्री और दान राशि से ही किया जाता है जिसका पूरा हिसाब-किताब मंदिर ट्रस्ट रखता है।

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