सिंधिया (Scindia) हर बार दशहरे के वक्त अपने गृहनगर में ही रहते हैं और राजपरिवार के मुखिया के रूप में मांडरे की माता परिसर में पहले शमीपूजन और फिर गोरखी स्थित अपने कुलदेवता के मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं, जिसके बाद शाम को महल में दरबार सजता है। यह परंपरा इस बार 2022 में भी निभाई गई, लेकिन इससे इतर सिंधिया (Scindia) का यह दौरा राजनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण ( BJP politics heats ) माना जा रहा है।
यहां उन्होंने (Scindia) अपने समर्थकों से मुलाकात कर एक बार फिर उन्हें नसीहत दी कि चुनाव की तैयारियों में जुट जाएं। वहीं केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ( Narendra singh Tomar ) भी इस समय तीन रोज से ग्वालियर में ही थे, लेकिन पार्टी का काम आ जाने के चलते उन्हें दशहरे से एक दिन पहले उन्हें दिल्ली लौटना पड़ा। उनका यह दौरा भी चुनावी मंधन और मेल मुलाकातों में बीता।
वहीं जानकारों के अनुसार ग्वालियर भाजपा के मूल व नवागत खेमे में बटे होने से इंकार नहीं किया जा सकता, लेकिन ग्वालियर से जुड़े दोनों कैबिनेट मंत्री पार्टी को एकजुट बताने की कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहे हैं। पार्टी के चुनाव प्रबंधकों की कोशिश यही है कि मिशन 23 पर गुटबाजी की कोई छाया न पड़े।
रामलीला का स्थान बदला, लेकिन भीड़ और ज्यादा बढ़ी
रियासतकाल के समय से ही ग्वालियर के छत्री बाजार में हर साल भव्य स्तर पर रामलीला का आयोजन होता रहा है। मौजूदा वक्त की तीन पीढ़ियां इस ऐतिहासिक रामलीला की साक्षी भी रही हैं, जहां दशहरे की पूर्व संध्या पर सिंधिया (Scindia) परिवार के मुखिया आरती करने बिना नागा आते रहे हैं। कोरोना काल में दो साल तक यह सिलसिला अवरुद्ध रहने के बाद, इस बार फिर से रामलीला का आयोजन भव्य स्तर पर हुआ।
अंतर बस यह रहा कि इस बार छत्री मैदान में खेल विभाग द्वारा स्टेडियम निर्माण कर दिए जाने के कारण स्थान परिवर्तन करना पड़ा और छत्री मैदान से स्थानांतरित कर यह आयोजन नगर के मध्य में स्थित फूलबाग मैदान में किया गया। स्थान परिवर्तन से इस ऐतिहासिक धार्मिक सांस्कृतिक आयोजन के प्रति ग्वालियरवासियों के लगाव पर कोई असर नहीं पड़ा है। फूलबाग में भी दर्शकों की उतनी ही भीड़ उमड़ी, जितनी कि छत्री मैदान में उमडती थी।
खुशी काफूर, लेकिन नई उम्मीदबंधी
दिग्विजय सिंह के कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने के ऐलान से उनके समर्थक खेमे में जो खुशी का माहौल बना था, उस उत्साह पर उनके चुनाव न लड़ने के ऐलान से पानी फिर गया। वहीं अब समर्थकों को उम्मीद बंधी है कि मल्लीकार्जुन खड़गे के इस्तीफे से राज्यसभा में खाली हुआ नेता प्रतिपक्ष का पद दिग्विजय को मिल सकता है।