कोठीबाजार निवासी शंकर धर्माधिकारी के भतीजे विनय धर्माधिकारी बताते हैं कि 1947 में देश के स्वतंत्र होने के बाद जब भारतीय संविधान बनाने की बारी आई तो गांधी जी ने शंकर त्र्यंबक धर्माधिकारी को संविधान सभा का सदस्य नामित किया, लेकिन उन्होंने यह कहकर पद लेने से मना कर दिया कि मैंने स्वतंत्रता आंदोलन में इसलिए भाग नहीं लिया था कि मुझे कोई पद चाहिए, लेकिन गांधीजी नहीं माने और उन्होंने एक पत्र लिखा।
आदिवासियों के लिए दिए सुझाव
गांधीजी ने पत्र में लिखा, आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र की आम गरीब जनता की आवश्यकता को जिस तरह से आप संविधान सभा में रख सकेंगे उससे संविधान सभा का प्रतिपादन बेहतर होगा। इसके बाद शंकर धर्माधिकारी ने संविधान सभा का सदस्य बनकर संविधान को बनाने में अपने महत्वपूर्ण सुझाव दिए। उनके दिए सुझाव आज भी संविधान के आधार स्तंभ है। आदिवासियों के लिए जितनी भी योजनाएं और संविधान में प्रावधान किए गए हैं वह शंकर त्र्यंबक धर्माधिकारी की देन है।