भोपाल। सोमवार को भगवान शिव की पूजा करने की परंपरा काफी समय पुरानी है। पुरातन काल से ही लोग इस दिन शिव की पूजा करते आए हैं। वहीं यह भी माना जाता है कि भगवान् शंकर अर्थात शिव की उपासना हर वार को अलग फल प्रदान करती है।
पुराणशिरोमणि शिवमहापुराण के अनुसार-
आरोग्यंसंपद चैव व्याधीनांशांतिरेव च।
पुष्टिरायुस्तथाभोगोमृतेर्हानिर्यथाक्रमम्॥
अर्थात स्वास्थ्य, संपत्ति, रोग-नाश, पुष्टि, आयु, भोग तथा मृत्यु की हानि के लिए रविवार से लेकर शनिवार तक भगवान् शंकर की आराधना करनी चाहिए। सभी वारों में जब शिव फलप्रद हैं तो फिर सोमवार का आग्रह क्यों? यह प्रश्न अधिकांश भक्तों के मन में कई बार कौंधता है। पंडित सुनील शर्मा का कहना है कि इस संबंध में कई मान्यताएं हैं, जो इस प्रकार हैं…
1. पुराणों के अनुसार सोम का अर्थ चंद्रमा होता है और चंद्रमा भगवान् शंकर के शीश पर मुकुटायमान होकर अत्यन्त सुशोभित होता है। माना जाता है कि जैसे क्षमाप्रार्थना के बाद भगवान् शिव ने चंद्रमा को उसके अपराधी होते हुए भी क्षमा कर अपने शीश पर स्थान दिया, वैसे ही भगवान् हमें भी सिर पर नहीं तो चरणों में जगह अवश्य देंगे। यह याद दिलाने के लिए सोमवार को ही लोगों ने शिव का वार बना दिया गया।
2. इसके अलावा सोम का अर्थ सौम्य होता है। भगवान् शिव अत्यन्त शांत समाधिस्थ देवता हैं। इस सौम्य भाव को देखकर ही भक्तों ने इन्हें सोमवार का देवता मान लिया। सहजता और सरलता के कारण ही इन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है।
3. वहीं कुछ भक्तों का मानना है कि सोम का अर्थ होता है उमा के सहित शिव। केवल कल्याणकारी शिव की उपासना न करके साधक भगवती शक्ति की भी साथ में उपासना करना चाहता है क्योंकि बिना शक्ति के शिव के रहस्य को समझना अत्यन्त कठिन है। इसलिए भक्तों ने सोमवार को शिव का वार स्वीकृत किया।
4. कुछ भक्तों का यह भी मत है कि सोम में ॐ समाया हुआ है। भगवान् शंकर ॐकार स्वरूप हैं। ॐकार की उपासना के द्वारा हीं साधक अद्वय स्थिति में पहुंच सकता है। इसलिए इस अर्थ के विचार के लिए भगवान् सदाशिव को सोमवार का देव कहा जाता है।
5. एक अन्य मत के मुतबिक वेदों ने सोम का जहां अर्थ किया है वहां सोमवल्ली का ग्रहण किया जाता है। जैसे सोमवल्ली में सोमरस आरोग्य और आयुष्यवर्धक है वैसे ही शिव हमारे लिए कल्याणकारी हों, इसलिए सोमवार को महादेव की उपासना की जाती है।
6. इसके अतिरिक्त सोम का अर्थ चंद्रमा है और चंद्रमा मन का प्रतीक है। जड़ मन को चेतनता से प्रकाशित करने वाला परमेश्वर ही है। मन की चेतनता को पकड़कर हम परमात्मा तक पहुंच सकें, इसलिए देवाधिदेव भूतभावन पूतपावन परमेश्वर की उपासना सोमवार को की जाती है।
वहीं मान्यता यह भी है कि चंद्रमा इसी दिन भगवान शिव की पूजा करते थे जिससे उन्हें निरोगी काया मिली। इसलिए भी सोमवार को भगवान शिव की पूजा की जाती है। इस दिन भगवान शिव की आराधना का अर्थ है चंद्रदेव को भी प्रसन्न करना। कहा जाता है कि सोमवार को भगवान शिव की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। पंडित कहते हैं कि अगर हर सोमवार शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित किया जाए तो व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
ये 10 चीजें भगवान शिव को हैं बेहद प्रिय…
पंडित शर्मा के अनुसार संहारक भगवान शिव की मन से की गई आराधना भोले बाबा को खुश करने के लिए बहुत है। इनकी पूजा में शिवलिंग अभिषेक और उस पर अर्पित की जाने वाले चीजें अलग-अलग महत्व रखती हैं।
1. जल मंत्रों का उच्चारण करते हुए शिवलिंग पर जल चढ़ाने से हमारा स्वभाव शांत और स्नेहमय होता है।
2. केसर शिवलिंग पर केसर अर्पित करने से हमें सौम्यता मिलती है।
3. चीनी (शक्कर) महादेव का शक्कर से अभिषेक करने से सुख और समृद्धि बढ़ती है। ऐसा करने से मनुष्य के जीवन से दरिद्रता चली जाती है।
4. इत्र शिवलिंग पर इत्र लगाने से विचार पवित्र और शुद्ध होते हैं। इससे हम जीवन में गलत कामों के रास्ते पर जाने से बचते हैं।
5. दूध शिव-शंकर को दूध अर्पित करने से स्वास्थ्य हमेशा अच्छा रहता है और बीमारियां दूर होती हैं।
6. दही पार्वतीपति को दही चढ़ाने से स्वभाव गंभीर होता है और जीवन में आने वाली परेशानियां दूर होने लगती हैं।
7. घी भगवान शंकर पर घी अर्पित करने से हमारी शक्ति बढ़ती है।
8. चंदन शिवजी को चंदन चढ़ाने से हमारा व्यक्तित्व आकर्षक होता है। इससे हमें समाज में मान-सम्मान और यश मिलता है।
9. शहद भोलेनाथ को शहद चढ़ाने से हमारी वाणी में मिठास आती है।
10. भांग औघड़-अविनाशी शिव को भांग चढ़ाने से हमारी कमियां और बुराइयां दूर होती हैं।
इन बातों का रखें खास ख्याल…
शिव पूजा में बहुत सी ऐसी चीजें अर्पित की जाती हैं जो अन्य किसी देवता को नहीं चढ़ाई जाती, जैसे- आक, बिल्वपत्र, भांग आदि। इसी तरह शिव पूजा में कई ऐसी चीजें होती हैं जो आपकी पूजा का फल देने की बजाय आपको नुकसान पहुंचा सकती हैं…
1. हल्दी: हल्दी खानपान का स्वाद तो बढ़ाती है साथ ही धार्मिक कार्यों में भी हल्दी का महत्वपूर्ण स्थान माना गया है। लेकिन शिवजी की पूजा में हल्दी नहीं चढ़ाई जाती है। हल्दी उपयोग मुख्य रूप से सौंदर्य प्रसाधन में किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पुरुषत्व का प्रतीक है, इसी वजह से महादेव को हल्दी नहीं चढ़ाई जाती।
2. फूल: शिव को कनेर और कमल के अलावा लाल रंग के फूल प्रिय नहीं हैं। शिव को केतकी और केवड़े के फूल चढ़ाने का निषेध किया गया है।
3. कुमकुम या रोली: शास्त्रों के अनुसार शिव जी को कुमकुम और रोली नहीं लगाई जाती है।
4. शिव पूजा में वर्जित है शंख: शंख भगवान विष्णु को बहुत ही प्रिय हैं लेकिन शिव जी ने शंखचूर नामक असुर का वध किया था इसलिए शंख भगवान शिव की पूजा में वर्जित माना गया है।
5. नारियल पानी: नारियल पानी से भगवान शिव का अभिषेक नहीं करना चाहिए क्योंकि नारियल को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है इसलिए सभी शुभ कार्य में नारियल का प्रसाद के तौर पर ग्रहण किया जाता है। लेकिन शिव पर अर्पित होने के बाद नारियल पानी ग्रहण योग्य नहीं रह जाता है।
6. तुलसी दल: तुलसी का पत्ता भी भगवान शिव को नहीं चढ़ाना चाहिए। इस संदर्भ में असुर राज जलंधर की कथा है जिसकी पत्नी वृंदा तुलसी का पौधा बन गई थी। शिव जी ने जलंधर का वध किया था इसलिए वृंदा ने भगवान शिव की पूजा में तुलसी के पत्तों का प्रयोग न करने की बात कही थी।
शिव पूजन में चढ़ने वाली चीजें
जल, दूध, दही, शहद, घी, चीनी, ईत्र, चंदन, केसर, भांग. इन सभी चीजों को एक साथ मिलाकर या एक-एक चीज शिवलिंग पर चढ़ा सकते हैं। शिवपुराण में बताया गया है कि इन चीजों से शिवलिंग को स्नान कराने पर सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।
ये 10 चीजें और उनसे मिलने वाले फल…
1. मंत्रों का उच्चारण करते हुए शिवलिंग पर जल चढ़ाने से हमारा स्वभाव शांत होता है। आचरण स्नेहमय होता है।
2. शहद चढ़ाने से हमारी वाणी में मिठास आती है।
3. दूध अर्पित करने से उत्तम स्वास्थ्य मिलता है।
4. दही चढ़ाने से हमारा स्वभाव गंभीर होता है।
5. शिवलिंग पर घी अर्पित करने से हमारी शक्ति बढ़ती है।
6. ईत्र से स्नान करवाने से विचार पवित्र होते हैं।
7. शिवजी को चंदन चढ़ाने से हमारा व्यक्तित्व आकर्षक होता है। समाज में मान-सम्मान प्राप्त होता है।
8. केशर अर्पित करने से हमें सौम्यता प्राप्त होती है।
9. भांग चढ़ाने से हमारे विकार और बुराइयां दूर होती हैं।
10. शकर चढ़ाने से सुख और समृद्धि बढ़ती है।
शिव पूजन की सामान्य विधि…
आप जिस दिन भी शिव पूजन करना चाहते हैं, उस दिन सुबह स्नान आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पवित्र हो जाएं। इसके बाद घर के मंदिर में ही या किसी शिव मंदिर जाएं। मंदिर पहुंचकर भगवान शिव के साथ माता पार्वती और नंदी को गंगाजल या पवित्र जल अर्पित करें। जल अर्पित करने के बाद शिवलिंग पर चंदन, चावल, बिल्वपत्र, आंकड़े के फूल और धतूरा चढ़ाएं।
पूजन में इस मंत्र का जप करें…
मन्दारमालांकलितालकायै कपालमालांकितशेखराय।
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय।।
पूजा संपन्न करने के लिए भगवान शिव को घी, शक्कर का भोग लगाएं और इसके बाद धूप, दीप से आरती करें।
श्रावण और शिव से जुड़ी कथायें…
सावन महीने के बारे में सबसे प्रचलित पौराणिक कथा के मुताबिक शिव पत्नी देवी सती के अपने पिता दक्ष के घर योगशक्ति से शरीर त्यागने से पूर्व उन्होंने शिव जी को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था।
इसीलिए उन्होंने अपने दूसरे जन्म में पार्वती के रूप में भगवान शिव जी की पूजा की और सावन के महीने में कठोर तप किया। इस पूजा से प्रसन्न होकर शिवजी ने उनसे विवाह कर लिया। तभी से ये महीना शिव जी के लिए प्रिय हो गया।
ये कथा स्वयं शिवजी ने सनत कुमारों को सुनाई थी, जब उन्होंने सावन का महीना प्रिय होने के बारे में पूछा था। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि सावन के महीने में भगवान शिव जी ने समुद्र मंथन से निकला विष पीकर सृष्टि की रक्षा की थी। यहीं कारण है कि इस महीने को शिव जी का प्रिय महीना माना जाता है।