छिंदवाड़ा के किसान अब आम फसलों या सब्जियों की बजाए मोती की खेती करेंगे। इससे वे कम जमीन में या घर पर भी खेती कर खासी कमाई कर सकते हैं। छिंदवाड़ा के कृषि विज्ञान केंद्र में किसानों को मोती की खेती CHHINDWARA PEARL FARMING करने के गुर सिखाए जा रहे हैं।
देश में मोती की खेती को प्रोत्साहित करने की कोशिश की जा रही है। मध्यप्रदेश में इसके लिए विशेष रूप से छिंदवाड़ा CHHINDWARA जिला चुना गया है। मोती की खेती PEARL FARMING के लिए छिंदवाड़ा जिले में किसानों को बाकायदा प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यहां कम जमीन में मोती की खेती की तकनीक बताई जा रही है।
यह भी पढ़ें : एमपी कांग्रेस में किस बड़े नेता का पत्ता कटा! भोपाल में फिर डेरा डालकर बैठ गए कमलनाथ
छिंदवाड़ा के कृषि विज्ञान केंद्र में केवल जिले के ही नहीं बल्कि आसपास के सिवनी और जबलपुर जिलों के किसान भी मोती की खेती के गुर सीख रहे हैं। प्रदेश में छिंदवाड़ा में सन 2019 में कृषि विज्ञान केंद्र चंदनगांव में मोती की खेती Chhindwara Pearl Farming के लिए पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया था। कृषि विज्ञान केंद्र के अधिकारियों और विशेषज्ञों ने मोती की खेती करने के लिए पहले खुद जयपुर जाकर इसकी ट्रेनिंग ली। कृषि विज्ञान केंद्र में मोती का उत्पादन भी शुरु किया गया फिर अन्य किसानों को इसके लिए तैयार किया।
ऐसे कर सकते हैं मोती पालन
मोती की खेती के लिए तालाब की जरूरत पड़ती है। खेत में 80 फीट लंबा और 50 फीट चौड़ा तालाब बनाकर मोतियों के बीज डाले जाते हैं। 12 फीट गहरे तालाब में करीब 18 महीने में मोती बनकर तैयार हो जाते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र की प्रोग्राम असिस्टेंट चंचल भार्गव बताती हैं कि मोती की खेती के लिए सीप जरूरी है। ये बाजार में मिल जाते हैं या नदियों से भी इकठ्ठे किए जा सकते हैं। हर सीप में छोटी सी शल्य क्रिया कर साधारण गोल या गणेश, पुष्प की आकृति के डिजाइनर वीड डालकर उसे बंद कर दिया जाता है। फिर इन सीपों को तालाब में छोड़ा जाता है। एक हेक्टेयर में औसतन 25 हजार सीपों में मोती पालन किया जा सकता है।
जैसे खेतों में तालाब बनाकर बड़े रूप में मोती की खेती की जाती है वैसे ही छोटे पैमाने पर इसे घर पर भी कर सकते हैं।घर में कांक्रीट के टैंक बनाकर मोती उत्पादन किया जा सकता है।