भोपाल

एमपी में यूपी की तर्ज पर शराबबंदी की तैयारी, नई शराब नीति से पहले जानें सरकारी दावों की हकीकत

Liquor Ban in MP: एमपी में यूपी की तर्ज पर शराब नीति लागू करने की तैयारी कर रही सरकार, पहले की सरकारें भी कर चुकी हैं कई घोषणाएं, यहां जानें एमपी में शराबबंदी की असलियत…

भोपालJan 17, 2025 / 09:26 am

Sanjana Kumar

Liquor Ban in MP: शराबबंदी को लेकर सरकारी दावे फेल, अहाते बंद, तो सड़क पर शराब पीने लगे लोग.

Liquor Ban in MP: हरिचरण यादव. पड़ोसी राज्य गुजरात की तर्ज पर प्रदेश में भी कई बार नशे से पीछा छुड़ाने के प्रयास हुए, लेकिन ये परवान नहीं चढ़ सके। पुरानी सरकार के अहाते बंद करने के जिस फैसले को बीते साल हाथों-हाथ लिया गया, वही फैसला अब एक बड़े वर्ग को परेशान करने लगा है। जो पहले अहातों में शराब पीते थे, उनमें से कई अब शराब दुकानों के सामने सड़कों, चौक-चौराहे व मोहल्लों में नशा कर रहे हैं।
सामाजिक मामलों के जानकारों का कहना है, नशे की जड़ें शराब की दुकानें हैं, न कि अहाते, लेकिन सरकार ने शराब दुकानों की बजाय अहाते बंद किए। इससे लोग सड़कों पर ही शराब पीने लगे। नई शराब नीति आने वाली है। राजस्व का बड़ा हिस्सा शराब से आ रहा है। बीते साल शराब से 13,900 करोड़ का राजस्व मिला। इस वित्तीय वर्ष में 15,900 करोड़ का अनुमान है।

पुरानी सरकार के ये वादे, जो जमीन पर नहीं उतरे

1.शराब पीकर गाड़ी चलाते पहली बार पकड़ाए तो 6 माह, दूसरी बार में 2 साल और तीसरी बार में आजीवन ड्राइविंग लायसेंस रद्द करेंगे।
हकीकत… एक भी मामले में कार्रवाई नहीं।

2.शराब छोड़ो, दूध पियो अभियान को सशक्त करेंगे।

हकीकत… अभियान ही लापता।

3.जहां दुकानों का विरोध, वहां जनप्रतिनिधि, पुलिस-प्रशासन की सजगता से दुकान का स्थान बदलेंगे। जरूरी हुआ तो नीलामी नहीं।
हकीकत… इसका पालन नहीं। लोग दुकानों से त्रस्त हैं। सीएम हेल्पलाइन व निकायों के टोल फ्री नंबर पर हर माह 5 से 8 शिकायतें।

दावा था…

अहाते बंद करेंगे, किए भी। लेकिन अब लोग सड़कों पर ही शराब पी रहे हैं। पॉलीटेक्निक चौराहे और हबीबगंज नाका समेत कई स्थानों पर शाम के बाद रोज ऐसे ही नजारे दिख रहे हैं।

फिर शराबबंदी की चर्चा जोरों पर

नई शराब नीति आने से पहले इस बार धार्मिक नगरों में शराबबंदी की चर्चा जोरों पर है। सरकार ने इसके संकेत दिए हैं। पुराने फैसलों की तरह यह भी कितना कारगर होगा, इस पर संशय है, क्योंकि इसे भी नशे से लड़ाई का स्थाई समाधान नहीं माना जा रहा है। उधर कर्ज में उलझी सरकार के सामने राजस्व बड़ी चुनौती है।
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