गुप्त नवरात्र मुख्य रूप से देश के उत्तरी राज्यों में ज्यादा मनाई जाती है। इनमें उत्तराखंड, हिमाचल सहित देश के कई राज्य शामिल हैं। वहीं गुप्त नवरात्र का त्योहार मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल सहित और जिलों में भी मनाया जाता है। इस दौरान लोग देवी मां के मंदिरों में जाकर वहां पूजा अर्चना करते आसानी से देखे जा सकते हैं।
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार गुप्त नवरात्र में मां भगवती के गुप्त स्वरूप की पूजा की जाती है, इसलिए इसे गुप्त नवरात्र कहा जाता है। इस नवरात्र में मुख्य रूप से तंत्र साधना पर बल दिया जाता है, मां दुर्गा के काली स्वरूप की पूजा की जाती है। मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों के साथ गुप्त नवरात्र में 10 महाविद्या की पूजा की जाती है।
हिंदू-धर्म के अनुसार, एक वर्ष में चार नवरात्र होती है। वर्ष के प्रथम मास अर्थात चैत्र में प्रथम नवरात्र होती है। चौथे माह आषाढ़ में दूसरी नवरात्र होती है। इसके बाद अश्विन मास में प्रमुख नवरात्र होती है। इसी प्रकार वर्ष के ग्यारहवें महीने अर्थात माघ में भी गुप्त नवरात्र मनाने का उल्लेख एवं विधान देवी भागवत तथा अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।
इनमें अश्विन मास की शारदीय नवरात्र को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है। इस दौरान गरबों के माध्यम से माता की आराधना की जाती है। दूसरी प्रमुख नवरात्र चैत्र मास की होती है। इन दोनों नवरात्रियों को क्रमश: शारदीय व वासंती नवरात्र के नाम से भी जाना जाता है। इसके अतिरिक्त आषाढ़ तथा माघ मास की नवरात्र गुप्त रहती है। इसके बारे में अधिक लोगों को जानकारी नहीं होती, इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्र कहते हैं।
इसलिए कहलाते हैं गुप्त नवरात्र?
माघ मास की नवरात्र को गुप्त नवरात्र कहते हैं, क्योंकि इसमें गुप्त रूप से शिव व शक्ति की उपासना की जाती है। जबकि चैत्र व शारदीय नवरात्र में सार्वजनिक रूप में माता की भक्ति करने का विधान है।
माघ शुक्ल पंचमी को ही देवी सरस्वती प्रकट हुई थीं। इन्हीं कारणों से माघ मास की नवरात्र में सनातन, वैदिक रीति के अनुसार देवी साधना करने का विधान निश्चित किया गया है। गुप्त नवरात्र विशेष तौर पर गुप्त सिद्धियां पाने का समय है। साधक इन दोनों गुप्त नवरात्र (माघ तथा आषाढ़) में विशेष साधना करते हैं तथा चमत्कारिक शक्तियां प्राप्त करते हैं।
नवरात्र: कलश स्थापना से आरंभ…
चैत्र और शारदीय नवरात्र की तरह ही माघ के गुप्त नवरात्र में भी कलश स्थापना की जाती है। यह साधना चैत्र और शारदीय नवरात्र से कठिन होती है लेकिन मान्यता है कि इस साधना का फल चौंकाने वाला होता है। इसलिए तंत्र विद्या में विश्वास रखने वाले तांत्रिकों के लिए यह नवरात्र बहुत मायने रखते हैं।
गुप्त नवरात्र: पौराणिक कथा
मान्यता है कि ऋषि श्रंगी के पास एक बार एक स्त्री आई और बोली कि गुरुवर मेरे पति दुर्व्यसनों से घिरे हैं जिसके कारण मैं किसी भी प्रकार के धार्मिक कार्य व्रत उपवास अनुष्ठान आदि नहीं कर पाती। मैं मां दुर्गा की शरण लेना चाहती हूं लेकिन मेरे पति के पापाचारों से मां की कृपा नहीं हो पा रही मेरा मार्गदर्शन करें।
तब ऋषि बोले वासंतिक और शारदीय नवरात्र में तो हर कोई पूजा करता है सभी इससे परिचित हैं। लेकिन इनके अलावा वर्ष में दो बार गुप्त नवरात्र भी आते हैं इनमें 9 देवियों की बजाय 10 महाविद्याओं की उपासना की जाती है।
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इस पूजा को करने से मां दुर्गा की कृपा से तुम्हारा जीवन खुशियों से भर जाएगा। उसने मां दुर्गा की कठोर साधना की। उसका घर खुशियों से भर गया।
गुप्त नवरात्र: पूजा विधि
प्रतिपदा के दिन 9 दिनों तक व्रत का संकल्प लेकर घर की स्थापना की जाती है। प्रतिदिन सुबह-शाम व्रती मां दुर्गा की पूजा करते हैं। अष्टमी या नवमी के दिन कन्याओं के पूजन के साथ व्रत का समापन किया जाता है।
वहीं तंत्र साधना वाले साधक इन दिनों में माता के नवरूपों के बजाए 10 महाविद्याओं की साधना करते हैं। ये 10 महाविद्याएं मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी हैं।
नवरात्रि : पूजा सामग्री
मां दुर्गा की प्रतिमा अथवा चित्र, लाल चुनरी, आम की पत्तियां, चावल, दुर्गा सप्तशती की किताब, लाल कलावा, गंगा जल, चंदन, नारियल, कपूर, जौ के बीच , मिट्टी का बर्तन, गुलाल, सुपारी , पान के पत्ते, लौंग, इलायची।
: सुबह-शाम दुर्गा चालीसा और दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। : दोनों वक्त की पूजा में लौंग और बताशे का भोग लगाएं। : मां दुर्गा को सदैव लाल रंग का पुष्प ही चढ़ाएं।
1. नवरात्रि का पहला दिन: मां शैलपुत्री…
नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। माँ पार्वती माता शैलपुत्री का ही रूप हैं और हिमालय राज की पुत्री हैं। माता नंदी की सवारी करती हैं। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल का फूल है। नवरात्रि के पहले दिन लाल रंग का महत्व होता है। यह रंग साहस, शक्ति और कर्म का प्रतीक है। नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना पूजा का भी विधान है।
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥ स्रोत पाठ:
‘प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन।
मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम॥’ मां शैलपुत्री को ये लगाएं भोग:
मां शैलपुत्री के चरणों में गाय का घी अर्पित करने से भक्तों को आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है और उनका मन एवं शरीर दोनों ही निरोगी रहता है।
2. नवरात्रि का दूसरा दिन : मां ब्रह्मचारिणी…
नवरात्रि का दूसरा दिन माता ब्रह्मचारिणी को समर्पित होता है। माता ब्रह्मचारिणी मां दुर्गा का दूसरा रूप हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब माता पार्वती अविवाहित थीं तब उनको ब्रह्मचारिणी के रूप में जाना जाता था।
यदि मां के इस रूप का वर्णन करें तो वे श्वेत वस्त्र धारण किए हुए हैं और उनके एक हाथ में कमण्डल और दूसरे हाथ में जपमाला है। देवी का स्वरूप अत्यंत तेज़ और ज्योतिर्मय है। जो भक्त माता के इस रूप की आराधना करते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन का विशेष रंग नीला है जो शांति और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है।
मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप:
मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप देवी ब्रह्मचारिणी का है जो पूर्ण रूप से ज्योतिर्मय है। मां ब्रह्मचारिणी सदैव शांत और संसार से विरक्त होकर तपस्या में लीन रहती हैं। कठोर तप के कारण इनके मुख पर अद्भूद तेज और आभामंडल विद्यमान रहता है।
मां के हाथों अक्ष माला और कमंडल होता है। मां को साक्षात ब्रह्म का स्वरूप माना जाता है और ये तपस्या की प्रतिमूर्ति भी हैं। मां ब्रह्मचारिणी के स्वरूप की उपासना कर सहज की सिद्धि प्राप्ति होती है।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।। ब्रह्मचारिणी की ध्यान :
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥ परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥ ब्रह्मचारिणी की स्तोत्र पाठ :
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥ शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥
त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥ पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो। अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।
3. नवरात्रि के तीसरे दिन : मां चंद्रघण्टा…
नवरात्र के तीसरे दिन माता चंद्रघण्टा की पूजा की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि माँ पार्वती और भगवान शिव के विवाह के दौरान उनका यह नाम पड़ा था। शिव के माथे पर आधा चंद्रमा इस बात का साक्षी है। नवरात्र के तीसरे दिन पीले रंग का महत्व होता है। यह रंग साहस का प्रतीक माना जाता है।
मां चंद्रघण्टा का स्वरूप:
मां के माथे पर घंटे के आकार में अर्धचंद्र है। जिसके चलते इनका यह नाम पड़ा मां का यह रूप बहुत शांतिदायक है। इनके पूजन से मन को शांति की प्राप्ति होती है। ये भक्त को निर्भय कर देती हैं। देवी का स्मरण जीवन का कल्याण करता है।
इनका रंग उज्ज्वल है। इनसे स्वर्ण के समान आभा निकलती है, इसलिए जहां इनका आगमन होता है, वहां से अशुभता का अंधेरा दूर हो जाता है। इनके तीन नेत्र, दस भुजाएं हैं।
मां के इस रूप से भक्त के मन में साहस आ जाता है, क्योंकि ये सत्य की रक्षा के लिए सदैव युद्ध के लिए तैयार रहती हैं। इन्होंने कमल का पुष्प, कमंडल आदि शुभ चिह्न धारण किए हैं। वहीं, धनुष-बाण, खड्ग, तलवार, त्रिशूल व गदा भी धारण करती हैं। इन्होंने गले में श्वेत पुष्पों का हार पहना है। मां का वाहन सिंह है जो साहस व शक्ति का प्रतीक है। इनकी प्रसन्नता के लिए इन मंत्रों का पाठ करें-
ध्यान मंत्र:
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥
स्तोत्र मंत्र :
आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥
कवच :
रहस्यं श्रुणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघन्टास्य कवचं सर्वसिध्दिदायकम्॥
बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोध्दा बिना होमं।
स्नानं शौचादि नास्ति श्रध्दामात्रेण सिध्दिदाम॥
कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्॥
ये भोग पसंद करतीं हैं मां:
मां चंद्रघंटा मां चंद्रघंटा को दूध और उससे बनी चीजों का भोग लगाएं और और इसी का दान भी करें। ऐसा करने से मां खुश होती हैं और सभी दुखों का नाश करती हैं। इसमें भी मां चंद्रघंटा को मखाने की खीर का भोग लगाना श्रेयकर माना गया है।
4. नवरात्रि के चौथे दिन: मां कुष्माण्डा…
नवरात्रि के चौथे दिन माता कुष्माडा की आराधना होती है। शास्त्रों में माँ के रूप का वर्णन करते हुए यह बताया गया है कि माता कुष्माण्डा शेर की सवारी करती हैं और उनकी आठ भुजाएं हैं। पृथ्वी पर होने वाली हरियाली माँ के इसी रूप के कारण हैं। इसलिए इस दिन हरे रंग का महत्व होता है।
देवी कुष्मांडा का स्वरूप:
इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है। मां की आठ भुजाएं हैं। अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं।
इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है।
श्लोक:सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च | दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ||
5. नवरात्रि का पांचवां दिन: मां स्कंदमाता…
नवरात्र के पाँचवें दिन माँ स्कंदमाता का पूजा होता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है। स्कंद की माता होने के कारण माँ का यह नाम पड़ा है। उनकी चार भुजाएँ हैं। माता अपने पुत्र को लेकर शेर की सवारी करती है। इस दिन धूसर (ग्रे) रंग का महत्व होता है।
मां स्कंदमाता का स्वरूप :
स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णत: शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह भी इनका वाहन है।
सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी ।। या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। ध्यान :
वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम।।
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम।
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम।
कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम॥
नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम।
समग्रतत्वसागररमपारपार गहराम॥
शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम।
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रीन्तिभास्कराम॥
महेन्द्रकश्यपार्चिता सनंतकुमाररसस्तुताम।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलादभुताम॥
अतक्र्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तता विशेषतत्वमुचिताम॥
नानालंकार भूषितां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम।
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेन्दमारभुषताम॥
सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्रकौरिघातिनीम।
शुभां पुष्पमालिनी सुकर्णकल्पशाखिनीम॥
तमोन्धकारयामिनी शिवस्वभाव कामिनीम।
सहस्त्र्सूर्यराजिका धनज्ज्योगकारिकाम॥
सुशुध्द काल कन्दला सुभडवृन्दमजुल्लाम।
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरं सतीम॥
स्वकर्मकारिणी गति हरिप्रयाच पार्वतीम।
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम॥
पुन:पुनर्जगद्वितां नमाम्यहं सुरार्चिताम।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवीपाहिमाम॥
ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मघरापरा।
हृदयं पातु सा देवी कार्तिकेययुता॥
श्री हीं हुं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा।
सर्वांग में सदा पातु स्कन्धमाता पुत्रप्रदा॥
वाणंवपणमृते हुं फ्ट बीज समन्विता।
उत्तरस्या तथाग्नेव वारुणे नैॠतेअवतु॥
इन्द्राणां भैरवी चैवासितांगी च संहारिणी।
सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै॥
भोग :
मां स्कंदमाता पंचमी तिथि के दिन पूजा करके भगवती दुर्गा को केले का भोग लगाना चाहिए और यह प्रसाद ब्राह्मण को दे देना चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है।
6. नवरात्रि के छठवां दिन: मां कात्यायिनी…
माँ कात्यायिनी दुर्गा जी का उग्र रूप है और नवरात्रि के छठे दिन माँ के इस रूप को पूजा जाता है। माँ कात्यायिनी साहस का प्रतीक हैं। वे शेर पर सवार होती हैं और उनकी चार भुजाएं हैं। इस दिन केसरिया रंग का महत्व होता है।
नवरात्रि के छठे दिन देवी के छठे स्वरूप मां कात्यायिनी का पूजन किया जाता है। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं।
सच्चे मन से अराधना करने वाले भक्तों के सभी पाप माफ कर देती हैं शक्ति स्वरूप मां कात्यायिनी। एक मान्यता के अनुसार किसी का विवाह नहीं हो रहा या फिर वैवाहिक जीवन में कुछ परेशानी है तो उसे शक्ति के इस स्वरूप की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
एक पौराणिक कथा के अनुसार कात्य गोत्र में विश्व प्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की उपासना की और कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो।
मां भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसलिए यह देवी कात्यायिनी कहलाईं।
मां भगवती का दाम्पत्य दीर्घसुख प्राप्ति मंत्र जाप इस प्रकार है:
एतत्ते वदनं सौम्यम् लोचनत्रय भूषितम्।
पातु नः सर्वभीतिभ्यः कात्यायिनी नमोस्तुते।।
ऐसा है मां का स्वरूप
इनका वाहन सिंह है और इनकी चार भुजाएं हैं। इनके एक हाथ में तलवार है और एक हाथ में पुष्प है।
मंत्र: चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना।
कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनि।।
कवच-
कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
चढ़ावा: इस दिन प्रसाद में मधु यानी शहद का प्रयोग करना चाहिए। देवी मां को प्रसन्न करने के लिए गुड का दान करना चाहिए और नारंगी रंग के कपड़ें पहनने चाहिए।
7. नवरात्रि का सातवां दिन: मां कालरात्रि…
नवरात्र के सातवें दिन माँ के उग्र रूप माँ कालरात्रि की आराधना होती है। पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि जब माँ पार्वती ने शुंभ-निशुंभ नामक दो राक्षसों का वध किया था तब उनका रंग काला हो गया था। हालाँकि इस दिन सफेद रंग का महत्व होता है।
मां कालरात्रि का स्वरुप:
मां दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। मां कालरात्रि के पूरे शरीर का रंग एक अंधकार की तरह है, इसलिये शरीर काला रहता है। इनके सिर के बाल हमेशा खुले रहते हैं।
गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्मांड के सदृश गोल हैं। इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें नि:सृत होती रहती हैं। मां की नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ (गदहा) है। ये ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं।
शत्रुबाधा से मुक्ति के लिए:
दुश्मनों से जब आप घिर जायें और हर ओर विरोधी नजऱ आयें, तो ऐसे में आपको माता कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से हर तरह की शत्रुबाधा से मुक्ति मिल जाती है।
त्रैलोक्यमेतदखिलं रिपुनाशनेन त्रातं समरमुर्धनि तेस्पि हत्वा।
नीता दिवं रिपुगणा भयमप्यपास्त मस्माकमुन्मद सुरारिभवम् नमस्ते।। देवी कालरात्रि के मंत्र : 1- या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।। वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।। देवी कालरात्रि के ध्यान :
करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम।
कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥ दिव्यं लौहवज्र खड्ग वामोघोध्र्व कराम्बुजाम।
अभयं वरदां चैव दक्षिणोध्वाघ: पार्णिकाम् मम॥
घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम॥ सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम।
एवं सचियन्तयेत् कालरात्रिं सर्वकाम् समृध्दिदाम॥ देवी कालरात्रि के स्तोत्र पाठ :
हीं कालरात्रि श्री कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥ क्लीं हीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥ देवी कालरात्रि के कवच :
ऊँ क्लीं मे हृदयं पातु पादौ श्रीकालरात्रि।
ललाटे सततं पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥ रसनां पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम।
कटौ पृष्ठे महेशानी, कर्णोशंकरभामिनी॥
तानि सर्वाणि मे देवीसततंपातु स्तम्भिनी॥ ध्यान रखें– देवी की पूजा के बाद शिव और ब्रह्मा जी की पूजा भी अवश्य करनी चाहिए।
भोग :
मां कालरात्रि को शहद का भोग लगाएं।
8. नवरात्रि का आठवां दिन: मां महागौरी…
महागौरी की पूजा नवरात्रि के आठवें दिन होती है। माता का यह रूप शांति और ज्ञान की देवी का प्रतीक है। इस दिन गुलाबी रंग का महत्व होता है जो जीवन में सकारात्मकता का प्रतीक होता है।
मां महागौरी का स्वरूप…
मां की वर्ण पूर्णत: गौरवर्ण है। इनके गौरता की उपमा शंख, चन्द्र और कुन्द के फूल से दी जाती है। आठ वर्षीय महागौरी के समस्त वस्त्र तथा आभूषण आदि भी श्वेत हैं। इनकी चार भुजाएं है तथा वाहन वृषभ (बैल) है। मां की मुद्रा अत्यन्त शांत है और ये अपने हाथों में डमरू, त्रिशूल धारण किए वर मुद्रा और अभय-मुद्रा धारिणी है।
रामचरितमानस के अनुसार भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए इन्होंने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर एकदम काला पड़ गया। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने इनके शरीर को गंगाजी के पवित्र जल से मलकर धोया तब वह विद्युत प्रभा के समान अत्यन्त कान्तिमान (गौर) हो उठा। तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा।
नवदुर्गाओं की तरह ही मां महागौरी की पूजा आराधना की जाती है। इनकी पूजा करने के लिए भक्त को नवरात्रा के आठवें दिन मां की प्रतिमा अथवा चित्र लेकर उसे लकड़ी की चौकी पर विराजमान करना चाहिए।
इसके पश्चात पंचोपचार कर पुष्पमाला अर्पण कर देसी घी का दीपक तथा धूपबत्ती जलानी चाहिए। मां के आगे प्रसाद निवेदन करें, प्रसाद दूध का ही होना चाहिए। इसके बाद साधक अपने मन को महागौरी के ध्यान में लीन कर निम्न मंत्र का कम से कम 108 बार जप करना चाहिए:
ॐ ऎं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ॐ महागौरी देव्यै नम:
यह मंत्र नवार्ण मंत्र के समान ही है। इस मंत्र से मां अत्यन्त प्रसन्न होती है तथा भक्त की समस्त इच्छाएं पूर्ण करती हैं।
9. नवरात्रि का नवां दिन: मां सिद्धिदात्री…
नवरात्रि के आखिरी दिन मां सिद्धिदात्री की आराधना होती है। ऐसा कहा जाता है कि जो कोई माँ के इस रूप की आराधना सच्चे मन से करता है उसे हर प्रकार की सिद्धि प्राप्त होती है। माँ सिद्धिदात्री कमल के फूल पर विराजमान हैं और उनकी चार भुजाएँ हैं।
कमल आसन पर विराजमान
मां सिद्धिदात्री कमल आसन पर विराजमान रहती हैं, मां की सवारी सिंह हैं. देवी ने सिद्धिदात्री का यह रूप भक्तों पर अनुकम्पा बरसाने के लिए धारण किया है। देवता, ऋषि-मुनि, असुर, नाग, मनुष्य सभी मां के भक्त हैं। देवी जी की भक्ति जो भी हृदय से करता है मां उसी पर अपना स्नेह लुटाती हैं। मां का ध्यान करने के लिए आप…
मंत्र- “सिद्धगन्धर्वयक्षाघरसुरैरमरैरपि सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी..” का जाप कर सकते हैं।
मां सिद्धिदात्री का मंत्रया देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।
देवी सिद्धिदात्री का ध्यान
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम। पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम॥ प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम॥ सिद्धिदात्री की स्तोत्र पाठ
कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भव सागर तारिणी सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥