किले की प्रसिद्धि झारकोन के रूप में भी…
गुना आरोन रोड पर स्थित बजरंगगढ़ किले ( myth of Bajrang garh kila ) की प्रसिद्धि झारकोन के रूप में भी है। यह किला गुना से 8 किमी दक्षिण-पश्चिम में बना है। इसे मराठा शासकों द्वारा 1775 में बनवाया गया था। इतना ही नहीं, इस किले के परिसर में तोपखाना, रंग महल और मोती महल भी है।
अब इस तरह संवर रहा है किला…
जिले की पहचान बजरंगगढ़ किला पर पुरातत्व विभाग पांच साल से काम कर रहा है। अब तक करीब 300 लाख रुपए खर्च कर परकोटा, महल के हिस्से और दरवाजों को ठीक किया है।
इसलिए खोद दिया गया था किला…
इस किले से जुड़ी एक किंवदंती ( Myth of Bajrang garh kila ) ने इसे भारी नुकसान पहुंचाया। माना जाता था कि इस किले के शासकों के पास पारस पत्थर ( Paras Mani ) था। उन्होंने उसे इसकी किसी दीवार में ही लगा दिया था।
ऐसे में कई बार इस बात की कहानियां सामने आती रहीं कि किले में घूमने के दौरान फलां व्यक्ति का लोहे का सामान सोने का बन गया। बहरहाल इस अफवाह( Myth of Bajrang garh kila ) का घातक असर यह हुआ और पारस पत्थर की खोज में लोगों ने किले में जगह-जगह खुदाई करना शुरू कर दी। ऐसे में पत्थर तो नहीं मिला ( Myth of Bajrang garh kila ) , लेकिन किला जरूर समाप्त होने के कगार पर पहुंच गया।
बजरंगगढ़ के किले के जीर्णोद्धार के दौरान इससे ही जुड़ी दो संरचनाओं का भी पता चला, जिनके बारे में कम ही लोग जानते हैं। यह दो संरचनाएं किले से करीब एक किमी दूर नदी के दूसरे ओर बनी हैं। इनका इस्तेमाल निगरानी और राजा की शिकारगाह के रूप में हुआ करता था।
बजरंगगढ़ किला समिति के सदस्यों के अनुसार नदी के दूसरी ओर बनी शिकारगाहें कभी बेहद घने जंगल के बीच हुआ करती थीं। करीब 50 साल पहले तक भी यहां घना मौजूद था।
उसमें यह दोनों बुर्जनुमा संरचनाएं छिपी हुई थीं। इनका इस्तेमाल निगरानी के लिए भी होता था। इनके जरिए आसपास के बड़े इलाके पर नजर रखी जा सकती थी। अगर किसी तरह का खतरा होता तो बुर्ज पर तैनात सिपाही आग जलाकर या धुंआ करके किले के सुरक्षातंत्र को सचेत कर देते थे। वहीं जब राजा शिकार पर जाते थे तो यह उनकी शिकारगाह के रूप में इस्तेमाल होता था।
दरअसल पुरातत्व विभाग द्वारा 2014 से कराए जा रहे संरक्षण कार्य ने बजरंगगढ़ किले की तस्वीर बदल दी है। जो किला लगभग नष्ट होने की कगार पर था, इस काम से वह बेहतर स्थिति में आ गया है। हालांकि अभी भी कई हिस्सों में काम बाकी है। किले के बुर्ज, रानी महल और बाउंड्रीवॉल के संरक्षण का काम हुआ है।
किले की मरम्मत के लिए 2011 में ही राशि स्वीकृत हो गई थी, लेकिन काम शुरू होने में तीन साल लग गए। 2014 में काम शुरू हुआ और लगभग डेढ़ साल तक चला। हाल ही में इसे पूरा किया गया है। बीच-बीच में काम प्रभावित रहा। यह काम 2012 में हो जाना चाहिए था।
-1710-20 के दौरान इस दुर्ग का निर्माण विक्रमादित्य ने कराया था, जो राघौगढ़ के शासक धीरसिंह के पुत्र थे। उस वक्त बजरंगगढ़ को झारकोन जागीर के नाम से जाना जाता था। -1776 में राजा बलवंत सिंह ने किले के मुख्य द्वार का निर्माण कराया था। 19वीं शताब्दी में इस किले पर फ्रांसीसी जनरल द्वारा हमला किया गया, जिसके बाद इसका पतन हो गया।