सिंधिया Jyotiraditya Scindia now in BJP द्वारा भाजपा की सदस्यता लेने के दौरान भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा JP nadda व विनय सहस्त्रबुद्धे, धर्मेंद्र प्रधान, अरुण कुमार व वीडी शर्मा vd sharma मंत्री भी मौजूद रहे। सिंधिया के भाजपा ज्वाइन political drama in mp करने के साथ ही मध्यप्रदेश में Madhya Pradesh Government Crisis सियासी हलचलें अत्यधिक तेज हो गईं। इससे पहले मंगलवार को ही दिल्ली स्थित भाजपा कार्यालय में उनकी ज्वाइनिंग की चर्चाएं चल रही थीं।
ज्योतिरादित्य Jyotiraditya Scindia सिंधिया के मंगलवार को ही भाजपा में आने के कयास इसलिए भी लगाए जा रहे थे, क्योंकि एक तो हर ओर उनकी ओर मोदी की मुलाकात का जिक्र चल रहा था, वहीं मंगलवार को वे दिल्ली में ही थे और इसी दिन bjp delhi office भाजपा कार्यालय में पाल्यामेंट्री बोर्ड की बैठक meeting भी थी। लेकिन 7 बजे शुरू होने वाली इस बैठक से करीब 1.30 घंटे पहले ही गृहमंत्री अमित शाह amit shah सहित भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह, नितीन गडकरी के अलावा कई बड़े भाजपा sr. leaders of bjp नेता दिल्ली स्थित भाजपा bjp office कार्यालय में पहुंच गए।
जानकारों की मानें तो मध्यप्रदेश में विधानसभा 2018 के दौरान हुई सियासी जंग congress in danger का आज पटाक्षेप हो गया। दरअसल 2018 विधानसभा चुनाव में जीत के बाद जहां सिंधिया को सीएम नहीं बनाए जाने पर भी उनके समर्थक दिल्ली पहुंच गए थे,वहीं इस दौरान कांग्रेस की ओर से कमलनाथ के हाथ में मप्र की कमान सौंपी गई।
इसके बाद अभी पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस के विधायकों के resignation of Jyotiraditya Scindia लापता होने के साथ एक बार फिर मप्र की सियासत में नया ड्रामा शुरू हो गया था। वहीं मामला संभलने से पहले ही बताया जाता है कि राज्यसभा की सीट व कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष को लेकर फिर से कांग्रेस में खींचतान शुरू हो गई, जिसके चलते सिंधिया की ओर से आखिरकार 10 मार्च 2020 की सुबह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को इस्तीफा Jyotiraditya Scindia resignation भेजने के साथ ही पीएम मोदी से मुलाकात की गई। जिसके बाद से सिंधिया के जल्द ही भाजपा ज्वाइन करने की चर्चा शुरू हो गई।
सुबह जब मध्य प्रदेश की राजनीति के ‘महाराज’ यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया Jyotiraditya Scindia ने कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी soniya gandhi को कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से अपना इस्तीफा भेजा था, तब तक उन्होने किसी अन्य पार्टी की सदस्यता नहीं ली थी, लेकिन पीएम मोदी से मुलाकात political crisis in mp के बाद ये माना जा रहा था कि वह जल्द ही बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। कई लोगों का मानना है कि ऐसा कर वो अपनी दादी विजयाराजे सिंधिया के ‘सपने’ को साकार कर देंगे।
इससे पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस sindia left congress से चार बार सांसद और केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं। जनसंघ jansangh की संस्थापक सदस्यों में रहीं राजमाता के नाम से मशहूर विजयाराजे सिंधिया चाहती थीं, कि उनका पूरा परिवार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) bjp में लौट आए, उस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया कांग्रेस में थे। ऐसे में अब ज्योतिरादित्य के भाजपा में आने से कांग्रेस अब सिंधिया राजपरिवार का एक भी सदस्य नहीं रह जाएगा। जानकारों का मानना है कि ऐसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया भी राजमाता सिंधिया के उस सपने को साकार करते नजर आ रहे हैं।
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कांग्रेस ऐसे हुई सिंधिया राजपरिवार शून्य…
ग्वालियर पर राज करने वाली राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने 1957 में कांग्रेस से अपनी राजनीति politics की शुरुआत की। वह गुना guna seat लोकसभा सीट से सांसद चुनी गईं। सिर्फ 10 साल में ही उनका मोहभंग political drama in mp हो गया और 1967 में वह जनसंघ में चली गईं। विजयाराजे सिंधिया की बदौलत ग्वालियर क्षेत्र में जनसंघ मजबूत हुआ और 1971 में इंदिरा गांधी की लहर के बावजूद जनसंघ यहां की तीन सीटें जीतने में कामयाब रहा। खुद विजयाराजे सिंधिया भिंड से, अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से और विजय राजे सिंधिया के बेटे और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया गुना से सांसद बने।
गुना पर सिंधिया परिवार का कब्जा लंबे समय तक रहा। माधवराव सिंधिया सिर्फ 26 साल की उम्र में सांसद चुने गए थे लेकिन वह बहुत दिन तक जनसंघ political drama in mp में नहीं रुके। 1977 में आपातकाल के बाद उनके रास्ते जनसंघ और अपनी मां विजयाराजे सिंधिया से अलग हो गए। 1980 में माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीतकर केंद्रीय मंत्री भी बने।
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संभाले रखी पिता की कांग्रेसी विरासत
वहीं तमाम सिंधिया घराने के भाजपा में होने के बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया jyotiraditya अपने पिता की विरासत संभालते हुए कांग्रेस से जुड़े और वहीं मजबूत नेता बने रहे। 2001 में एक हादसे में माधवराव सिंधिया की मौत हो गई। गुना सीट पर उपचुनाव हुए तो ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद चुने गए। 2002 में पहली जीत के बाद ज्योतिरादित्य jyotiraditya scindia सिंधिया कभी चुनाव नहीं हारे थे लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें करारा झटका लगा। कभी उनके ही सहयोगी रहे कृष्ण पाल सिंह यादव ने ही सिंधिया को हरा दिया।
ज्योतिरादित्य सिंधिया jyotiraditya scindia को डबल झटका
मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सरकार तो बनाई, लेकिन बहुत कोशिशों के बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया jyotiraditya scindia सीएम नहीं बन सके। इसके छह महीने बाद ही लोकसभा चुनाव में हार सिंधिया के लिए दूसरा बड़ा झटका साबित हुई। सीएम ना बन पाने के बावजूद लगभग 23 विधायक ऐसे हैं, जिन्हें सिधिया के खेमे का माना जाता है। इसमें से छह को मंत्री भी बनाया गया। इन्हीं में से कुछ विधायकों ने कमलनाथ kamalnath की सरकार को मुश्किल में डाल दिया।
लोकसभा चुनाव में हार के बाद से ज्योतिरादित्य jyotiraditya scindia सिंधिया को अब तक मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष congress president का पद भी नहीं मिलना भी आग में घी का काम कर गया। इसी बीच शिवराज सिंह चौहान shivraj singh से मुलाकात ने विवाद को और हवा दे दी। हालांकि, ज्योतिरादित्य jyotiraditya सिंधिया scindia ने कहा कि वह कांग्रेस कभी नहीं छोड़ने वाले हैं। नवंबर 2019 में कांग्रेस पार्टी के सभी पदों को छोड़कर दबाव बनाने की कोशिश की, लेकिन उनकी यह कोशिश भी काम नहीं आई।
ज्योतिरादित्य सिंधिया को इस बार वह आर-पार के मूड में देखा जा रहा था। बीजेपी BJP भी मौके के इंतजार में थी, जिसके बाद सिंधिया ने आखिरकार कांग्रेस को अलविदा कहते हुए भाजपा का दामन थाम लिया, ऐसे में सिंधिया के बीजेपी में जाते ही पूरा का पूरा congress without scindia family सिंधिया परिवार बीजेपी में लौट आया है।