लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस की करारी हार के बाद राहुल गांधी ( Rahul Gandhi ) ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद अब पार्टी का नया अध्यक्ष चुना जा रहा है। यह दो दशक के बाद पहला मौका होगा जब कांग्रेस में गांधी परिवार के बाहर का कोई अध्यक्ष बन सकता है। युवा नेता के रूप में ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम सबसे आगे माना जा रहा है।
राज्यसभा और लोकसभा में कांग्रेस ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 ( Article 370 ) हटाने का विरोध किया। विरोध करने वालों में खुद कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी शामिल थे, लेकिन सिंधिया ने इस फैसले का समर्थन किया था। ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थन के बाद से कहा जा रहा है कि कांग्रेस में दो खेमों में बांट गई है। एक खेमा धारा 370 के विरोध में है तो दूसरा खेमा धारा 370 का समर्थन कर रहा है।
जुलाई महीने में ज्योतिरादित्य सिंधिया एक दिन के दौरे पर भोपाल आए थे। इस दौरान सिंधिया ने कहा था- राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद कांग्रेस में संकट की घड़ी है। ऐसे में हम सबको फिर से एक साथ मिलकर कांग्रेस को मजबूत करना होगा। सिंधिया ने कहा था कि कांग्रेस को ऊर्जावान नेतृत्व की जरूरत है। जो एक बार फिर से पार्टी को खड़ा कर सके।
मुबंई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम अध्यक्ष पद के लिए आगे किया था। मिलिंद देवड़ा ने कांग्रेस अध्यक्ष के लिए पार्टी के दो युवा नेताओं के नाम सुझाया था। साथ ही उन्होंने कहा था कि इन दोनों नेताओं में कांग्रेस अध्यक्ष बनने के गुण हैं। मिलिंद देवड़ा ने जिन नेताओं के नाम सुझाए थे उनमें राजस्थान के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट और पूर्व सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम हैं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया 2019 में गुना-शिवपुरी संसदीय सीट से अपना लोकसभा चुनाव हार गए थे। गुना-शिवपुरी संसदीय सीट को सिंधिया परिवार का गढ़ माना जाता है इस बार सिंधिया अपने गढ़ को नहीं बचा पाए थे।
ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे माधवराव सिंधिया के बेटे हैं। सिंधिया 2002 के उपचुनाव में जीत दर्जकर पहली बार सांसद बने थे। 2002 से 2019 तक वो लगातार सांसद रहे। 2019 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। सिंधिया यूपीए के दोनों कार्यकाल में केन्द्रीय मंत्री भी रहे हैं। राहुल गांधी ने सिंधिया को 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए पश्चिमी उत्तरप्रदेश का प्रभार भी सौंपा था पर यूपी में कांग्रेस केवल एक ही सीट जीत पाई थी।