ये है पूरा मामला
दरअसल, साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने
भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) के पीड़ितों के उपचार और उनके पुनर्वास के लिए 20 निर्देश दिए और एक मॉनिटरिंग कमिटी का गठन भी किया था। इस कमिटी को 3 महीने में हाईकोर्ट MP High Court) के सामने रिपोर्ट पेश करनी थी। 2015 में हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की गई जिसमे कहा गया कि कमेटी की अनुशंसाओं को लागू नहीं किया जा रहा है।
इसमें अब सरकार का कहना है कि 2014 से पहले के मेडिकल रिकॉर्ड की हालत खराब है। इसीलिए एक दिन में सिर्फ 3 हजार पेज ही किए जा सकते। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया को पूरा करने में लगभग 550 दिनों का समय लगेगा। इसमें नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर (NIC) ने ई-हॉस्पिटल परियोजना के तहत क्लाउड सर्वर के लिए प्रस्ताव दिया गया है। हालांकि, यह प्रस्ताव अभी वित्त विभाग के अप्रूवल को लेकर अटका हुआ है।
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एमपी हाईकोर्ट की युगलपीठ ने सरकार और संबंधित अधिकारियों पर गंभीरता न दिखाने का बड़ा आरोप लगाया है। कोर्ट ने प्रदेश सरकार और अधिकारियों की इस मामले को लेकर गंभीरता पर सवाल भी उठाए है। कोर्ट का कहना है कि इस काम में देरी
त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) पीड़ितों के हितों के खिलाफ मानी जाएगा। हाईकोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया है कि जल्द से जल्द वित्तीय और तकनीकी बाधाओं को दूर कर डिजिटाइजेशन की प्रक्रिया जल्द से जल्द शुरू की जाए।