विकास वर्मा @ भोपाल. ट्रेन दुर्घटना में पति की मौत के बाद रीवा निवासी कामिनी पांडेय ने वर्ष 2005 में रेलवे से मुआवजे के लिए रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल (आरसीटी) की भोपाल बेंच में केस दायर किया। कामिनी को 10 साल तक केस में तारीख पर तारीख मिलती रहीं।
10 साल में 100 से अधिक तारीख मिलने के बाद कामिनी ने न्याय की उम्मीद ही छोड़ दी थी, लेकिन मार्च में आरसीटी की भोपाल बेंच में जब नए ज्यूडीशियल मेंबर मदन मोहन पारिख ने कार्यभार संभाला तो केस की अगली तारीख पर कामिनी की फाइल कोर्ट में आई। ज्यूडीशियल मेंबर ने फाइल देखते ही कहा कि इस मामले में सब कुछ साफ है तो अनावश्यक इस केस को इतना लंबा क्यों खींचा गया।
उन्होंने तत्काल रेलवे को आदेश जारी कर इस मामले में 4 लाख रुपए मुआवजा राशि चुकाने को कहा। कामिनी का केस तो एक उदाहरण भर है, नए ज्यूडीशियल मेंबर की कार्यशैली का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि पहले ही महीने के18 कार्यदिवस में 72 केसों का निपटारा कर दिया। वहीं अप्रैल महीने के 20 कार्यदिवस में 137 केसों में फैसला सुनाया। यह आरसीटी के इतिहास और अपने आप में रिकॉर्ड है।
2 महीने में 2400 पहुंच गई पेंडेंसी
पारिख ने 6 मार्च को भोपाल बेंच ज्वाइन की थी। इस वक्त यहां 2600 पेंडिंग केस थे। 38 कार्यदिवस में 209 केसों का निपटारा करके पेंडेंसी 2400 पर ले आए हैं। उनका मानना है कि जब किसी मामले में साक्ष्य कोर्ट में हैं तो फैसले के लिए आवेदक को इंतजार कराने का क्या औचित्य?
इन्हें तारीख पर तारीख में नहीं है विश्वास
पारिख तारीख पर तारीख में विश्वास नहीं रखते। इनका विश्वास केस को पूरी तरह समझ कर जल्द से जल्द निपटारा करने में है। ‘पत्रिका’ से हुईे बातचीत में उन्होंने बताया कि ग्रीष्मकालीन अवकाश से पहले तक 1997 से 2010 तक के सभी मामलों के निस्तारण का लक्ष्य तय किया है।
Hindi News/ Bhopal / सुपर फ़ास्ट जज: इन्होंने 38 दिन में सुना दिए 209 फैसले, बनाया रिकॉर्ड