कांग्रेस नेता (congress leader) जयराम रमेश ने गुरुवार को दोपहर में ताजा ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने सिंधिया की गद्दारी का जिक्र करते हुए लिखा कि इतिहास की कोई किताब उठा लीजिए। 1857 में रानी झांसी के साथ गद्दारी के मुद्दे पर सभी इतिहासकार एकमत हैं। आपके नए भगवान सावरकर ने भी अपनी किताब ‘1857 का स्वातंत्र समर’ में रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे और अन्य लोगों के साथ सिंधिया की गद्दारी का जिक्र किया है। इतिहास आप पढ़िये…।
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सिंधिया बोले- हम अंग्रेजों के विरुद्ध खड़े थे
इस पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने तुरंत ही पलटवार कर दिया। सिंधिया ने अपने ट्वीट में लिखा है कि कभी 1857 के वीर शहीद तात्या टोपे के वंशज पराग टोपे की ख़ुद की लिखी किताब ‘Operation Red Lotus’ पढ़िए; ज्ञात हो जाएगा कि किस प्रकार हम मराठे, सिंधिया, पेशवा और झाँसी के नेवालकर अंग्रेजों के विरुद्ध एक साथ थे। मराठा आज भी एक हैं। कृपया यह “विभाजनकारी” राजनीति बंद करें।
जयराम बोलेः लाभभोगी रहे सिधियां
बुधवार को भी जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा था कि गुलाम नबी आजाद और ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों ही कांग्रेस सिस्टम और पार्टी नेतृत्व के बड़े लाभभोगी रहे हैं। लेकिन, अब हर गुजरते दिन के साथ, वे प्रमाण देते हैं कि इस उदारता के वे योग्य नहीं थे। वे अपना असली चरित्र दिखा रहे हैं, जिसे उन्होंने इतने लंबे समय तक छुपा कर रखा था।
सिंधिया का जवाबः कांग्रेस में नहीं बची मर्यादा सिंधिया ने लिखा कि मुंह में राम बगल में छुरी। आपके ऐसे वक्तव्य साफ दर्शाते हैं कि कितनी मर्यादा व विचारधारा कांग्रेस में बची है। वैसे भी आप केवल स्वयं के प्रति समर्पित हैं, इसी से आपकी राजनीति जीवित हैं। मैं और मेरा परिवार हमेशा जनता के प्रति जवाबदेह रहे हैं।
जयराम रमेश का ट्वीटः सिंधिया अंग्रेजों का मित्र
इसके थोड़ी देर पहले जयराम रमेश ने ट्वीट में सिंधिया को अंग्रेजों के मित्र कहते हुए सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता शेयर की। जिसमें लिखा था कि अंग्रेजों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।
सिंधिया का जवाबः नेहरू की किताब बढ़ लेना
जयराम रमेश के कविता के जरिए हमला करने पर सिंधिया ने भी पंडित जवाहरलाल नेहरू की किताब के जरिए जवाब दिया है। सिंधिया ने ट्वीट पर कहा कि कविताएं कम और इतिहास ज्यादा पढ़ें। उन्होंने (मराठों ने) दिल्ली साम्राज्य को जीता। मराठा ब्रिटिश वर्चस्व को चुनौती देने के लिए बने रहे, लेकिन मराठा शक्ति ग्वालियर के महादजी सिंधिया की मृत्यु के बाद टुकड़ों में बंट गईं। मराठों ने 1782 में दक्षिण में अंग्रेजों को हराया था। उत्तर में ग्वालियर के सिंधिया का प्रभुत्व था और दिल्ली के गरीब असहाय सम्राट को नियंत्रित किया। पंडित जवाहरलाल नेहरू की किताब glimpses of world history.
सिंधिया के समर्थन में उतरे मंत्री
इधर, सिंधिया समर्थक मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर भी ट्वीटर की इस जंग में कूद गए। तोमर ने कांग्रेस नेता जयराम रमेश के लिए कहा है कि कांग्रेस में सिर्फ़ एक तरह के ही लोग अब बच गए है जैसे जयराम रमेश , ना ज़मीन से जुड़ाव ना अपना जनाधार बस दिन भर गांधी परिवार की चाटुकारिता व देश विरोधी बहस।