चुनावी माहौल का जायजा लेने सबसे पहले पश्चिम महाराष्ट्र के सोलापुर पहुंचा तो आम मतदाता असमंजस में डूबा, पार्टियों की टूट-फूट से हैरान, निराश और अपने फायदे की चीज ढूंढता मिला। यहां रोजगार, पानी, महंगाई और विकास जैसे मुद्दे हैं। लेकिन गौण हैं। दोनों गठबंधनों की लोकलुभावन घोषणाएं मतदाताओं को ज्यादा आकर्षित कर रही हैं और असरदार भी साबित हो सकती हैं। महाराष्ट्र के इस जिले में सबसे अधिक 36 चीनी मीलें है। यह चीनी के कटोरे के उपनाम से विख्यात है लेकिन, सियासी रिश्तों की कड़वाहट जुबान पर आ गई है। जनता की प्रतिक्रिया भी तीखी है।
दोनों गठबंधनों में कई प्रमुख एक नया खतरा
सामाजिक कार्यकर्ता पराग शाह कहते हैं, राजनीति विकृत हो गई है। दोनों गठबंधनों में कई प्रमुख बन गए हैं। यह एक नए खतरे जैसा है। लोग मुद्दे भूल गए हैं। मुफ्त में मिलने वाली चीजों पर ज्यादा फोकस है। जातिगत समीकरण, नेताओं के चेहरे और पार्टियों को देखकर लोग वोट करने लगे हैं। सोलापुर का चादर और तौलिया देश-विदेश में विख्यात था। लेकिन, यह उद्योग 40 फीसदी तक डाउन है। किसी तरह सत्ता हासिल करना एक मात्र उद्देश्य रह गया है। पार्टियों के विभाजन से निजी रिश्तेे भी खराब हुए हैं। चुनावों में एक-दूसरे को सबक सीखाने की भावना दिखती है।
क्या कहते हैं मतदाता!
अंबेडकर चौक पर अतुल शिंदे ने पहले बात करने से इनकार किया फिर अनमने अंदाज में बोले-किसे वोट दें? आज जिसको वोट देते हैं वह कल किसी और पार्टी में चला जाता है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटे अशोक इंगले ने कहा सरकारी नौकरी तो है नहीं। प्राइवेट जॉब भी नहीं मिल रहे। सब पुणे, बेंगलूरु और हैदराबाद का रुख कर रहे हैं। सोलापुर जिला कार्यालय में गांव से लेकर शहर तक के आए कई लोग मिले। दीपक जाधव कहते हैं कि इस जिले में गन्ना, तूर दाल, अंगूर और प्याज की खेती खूब होती है। लेकिन भाव नहीं मिलते। किसानों के सामने यह बड़ी समस्या है। अच्छी बात यह है कि यहां किसान आत्महत्या की घटनाएं ना के बराबर है। शिवसेना और एनसीपी के विभाजन पर रविंद्र गोरे कहते हैं कि इस बार के चुनाव से साफ हो जाएगा कि जनता किसे असली मानती है। उद्धव ठाकरे या शिंदे गुट को। एनसीपी में भी असली कौन का फैसला हो जाएगा। नेशनल हाई-वे के विकास से प्रभाकर प्रभावित नजर आते हैं। एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के कार्यकाल की भी तुलना हो रही है।
एनसीपी के गढ़ में भाजपा की पैठ
दरअसल, पिछले ढाई दशकों से यह क्षेत्र अविभाजित एनसीपी का गढ़ रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि शरद पवार जब यहां के पालक मंत्री थे तो उन्होंने काफी काम किया। लेकिन भतीजे अजीत पवार के अलग होने के बाद सियासी समीकरण बदल गया है। यह कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे का भी क्षेत्र है और यहां की सांसद उनकी बेटी प्रणीति शिंदे हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में भाजपा ने यहां अच्छी पैठ बनाई है। पीएम मोदी यहां 6 जनसभा कर चुके हैं। पीएम मोदी के नेतृत्व और एकनाथ शिंदे सरकार की ओर से चलाई गई लाडकी बहन योजना से महिलाएं प्रभावित नजर आती हैं।
आपसी टक्कर
जिले की 11 सीटों में से 3 विधानसभा सीटों पर बंटी हुई शिवसेना के उम्मीदवार एक-दूसरे को टक्कर दे रहे हैं। वहीं अजीत पवार और शरद पवार की विभाजित एनसीपी उम्मीदवार 2 क्षेत्रों में आमने-सामने हैं। भाजपा 6 सीटों पर कांग्रेस 3 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। महाविकास आघाड़ी और महायुति के बीच लगभग बराबरी और कांटे का मुकाबला है। उम्मीदवारों की जीत-हार का अंतर कम रहने की उम्मीद है।