- ये पैनल फोटो-कैटलिटिक वाटर स्प्लिटिंग प्रक्रिया का उपयोग करते हैं, जिसमें पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित किया जाता है। पानी हवा में भाप और नमी के रूप में मौजूद होता है, जिसे ये पैनल अपने बेस में लगे ट्यूबों में कैप्चर करते हैं। जैसे ही धूप इन पर पड़ती है, यह कैटलिटिक कन्वर्जन प्रक्रिया शुरू हो जाती है और हाइड्रोजन और ऑक्सीजन अलग हो जाते हैं। इस सोलर सेल के भारतीय बाजार में आने का इंतजार है, जो हमारे घरों को आत्मनिर्भर और पर्यावरण के अनुकूल बनती है, इस प्रणाली का उपयोग दुनिया के विभिन्न हिस्सों में किया जा रहा है, और कई कंपनियां इस दिशा में काम कर रही हैं।
- सोलर पैनल पर पड़ने वाली धूप से हाइड्रोजन बनेगा और इससे ही बिजली बनेगा। पैनल से बनने वाली हाइड्रोजन को टैंकों में स्टोर करके भी रखा जा सकेगा। इस हाइड्रोजन से हाइड्रोजन फ्यूल बनाकर इसका वाहनों में भी उपयोग किया जा सकेगा। कई जापानी कंपनियां हाइड्रोजन फ्यूल सेल पर काम कर रही हैं। यह तकनीक विकसित होती है, तो आप अपनी कार को भी इस प्रणाली से चला सकते हैं। इस सिस्टम से आपका जीवन और घर आत्मनिर्भर हो सकता है। यानि बाहर से बिजली आपूर्ति से लेकर फ्यूल व कीचन गैस की आपूर्ति की जरूरत नहीं होगी।
सोलर पैनल्स में तेजी से बदलाव हो रहे हैं। अगले एक से डेढ़ साल में भारतीय बाजारों में हाइड्रोजन सोलर पैनल आने की उम्मीद है। भोपाल में काफी संभावनाएं है।
- संयम इंदुरख्या, एक्सपर्ट सोलर एनर्जी