माना जाता है कि महर्षि वाल्मीकि ने लवकुश का जन्मोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया था। उस समय बधाई गीत गाए गए थे और स्वर्ग से अप्सराएं तक उतर आई थीं। इस खुशी में बेड़िया जाति की हजारों नृत्यांगनाएं भी इस खुशी में जमकर नाची थीं। तभी से यह प्रथा आज तक निभाई जा रही है।
मन्नत पूरी होने पर करवाया जाता है राई नृत्य
सीता माता के इस मंदिर में यह मान्यता प्रचलित है कि यदि मंदिर में जो भी मन्नत मांगी जाती है वह पूरी हो जाती है। इसके बाद लोग श्रद्धा के साथ यहां राई और बधाई नृत्य करवाते हैं। इसके लिए बेड़िया जाति की महिलाएं करीला मंदिर में नृत्य करती हैं। इस मंदिर में ही माता जानकी के साथ ही वाल्मीकि और लव-कुश की भी प्रतिमाएं हैं। बताया जाता है कि जब बॉलीवुड स्टार संजय दत्त मुसीबत में फंस गए थे और जेल चले गए थे, तो उनके पिता स्व. सुनील दत्त ने भी इस मंदिर में मन्नत मांगी थी। उनका बेटा छूट आया था, फिर उन्होंने भी बेड़नियों का नृत्य करवाकर मन्नत पूरी की थी।
लवकुश और माता सीता के इस मंदिर में निःसंतान दंपती की सारी मनोकामना पूरी हो जाती है। उनकी झोली भर जाती है। इसके बाद उन्हें इस मंदिर में बेड़नियां नचाना होता है, इसके लिए बेड़नियों को न्योछावर देने की परंपरा है।
इस जगह के बारे में स्थानीय लोगों के बीच एक कथा जानकी मंदिर के बारे में 200 वर्षों पुरानी एक कथा आज भी प्रचलित है। यहां के लोगों का मानना है कि विदिशा जिले के ग्राम दीपनाखेड़ा के महंत तपसी महाराज को एक रात सपना आया कि करीला ग्राम में एक टीले पर स्थित आश्रम है, जिसमें माता जानकी और लवकुश कुछ समय तक रहे थे। यह वाल्मीकि आश्रम वीरान पड़ा है, जिसे जागृत करो। दूसरे दिन सुबह ही महाराज ने करीला पहाड़ी पर देखा तो वहां एक वीरान आश्रम था।वे खुद ही साफ-सफाई में जुट गए और उन्हें देख सैकड़ों लोग इसकी सफाई व्यवस्था में जुट गए। देखते ही देखते आश्रम निखर आया।
यहां आने वाले श्रद्धालु यहां जलने वाली ज्योति से निकली विभूति भी अपने साथ ले जाते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि यहां की विभूतिखेत में डालने से कीटाणुओं का नाश होता है। किसानों की मान्यता है कि इस भभूति को फसल पर डालने से चमत्कारी ढंग से इल्लियां गायब हो जाती हैं। किसान हर साल यहां की भभूति को अपने खेतों में डालते हैं।
करीला गांव का जानकी मंदिर दुनिया में खास इसलिए है कि यहां राम के साथ मूर्ति नहीं है। सभी जगह राम मंदिर में तो श्रीरामचंद्रजी के साथ सीतामाता की मूर्ति होती ही है, लेकिन इस मंदिर में खास बात यह है कि यहां सिर्फ और सिर्फ सीता माता की ही मूर्ति स्थापित है।
हर साल करीला में तीन दिवसीय मेला लगता है। इस मेले में लोगों की श्रद्धा इतनी है कि यहां हर साल करीब 25 लाख लोग माता जानकी के दरबार में मन्नतें लेकर आते हैं। इस बार भी रंगपंचमी के मौके पर इस मेले की जोर-शोर से की जा रही है।