जुर्माने की माफी इस शर्त पर मिली है कि अमृत-2 प्रोजेक्ट के 2731 करोड़ रुपए केन्द्र सरकार ने नहीं दिए तो वो भी मध्य प्रदेश सरकार को देने होंगे। एमपीपीसीबी की रिपोर्ट के अनुसार, अभी प्रदेश की 83 डंपसाइट पर 35.25 लाख टन लीगेसी वेस्ट है। माना जा रहा है कि, प्रदेश सरकार इस गैप को भरने के लिए पर्यटकों और नागरिकों और कार्पोरेट पर यूजर टैक्स लगाकर कोई कारगर रास्ता तलाशेगी।
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सुनवाई में यह हुआ तय
एनजीटी की प्रिंसिपल बेंच में 10 नवंबर को सुनवाई की। इसमें मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैस और अन्य अधिकारी ऑनलाइन पेश हुए। सुनवाई में सीएस ने बताया कि, सीवेज प्रबंधन के लिए मप्र में 9688 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। इसमें 2731 करोड़ केंद्र का शेयर है बाकी राज्य सरकार खर्च करेगी। ट्रिब्यूनल ने कहा कि, अगर केंद्र का शेयर नहीं मिले तो वो भी राज्य को देना होगा। 6 माह में एमएसडब्ल्यू और सीवेज प्रबंधन का गैप पूरा न होने पर और ज्यादा हर्जाना लगेगा।
फंड जुटाने का करें इंतजाम
एनजीटी ने कहा है कि, राज्य सरकार अपने स्तर पर सॉलिड वेस्ट के निस्तारण के लिए अलग मैकेनिज्म बनाए, ताकि फंड का इंतजाम हो सके। जैसे नागरिकों, कॉर्पोंरेट्स, व्यापारियों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर यूजर चार्ज लगा सकते हैं। पर्यटक पर कचरा बढ़ाने पर टैक्स लगाया जा सकता है।
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सामुदायिक सहभागिता बढ़ाएं
एनजीटी ने कहा है कि, कचरा प्रबंधन में कम्युनिटी इंवॉल्वमेंट बढ़ाएं। वेस्ट मैनेजमेंट की प्लानिंग और एग्जीक्यूशन में वेलफेयर एसोसिएशन कॉरपोरेट्स, धार्मिक, शैक्षणिक और चैरिटेबल संस्थानों की मदद लें।डिस्ट्रिक्ट एनवायरनमेंट प्लान के डेटा का उपयोग करें।
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