scriptInteresting News: एक सेक्युलर शिक्षा मंत्री, स्कूलों को दिए थे आदेश ‘ग’ से गणेश नहीं… ‘ग’ से ‘गधा’ पढ़ाओ | Dr shankar dayal sharma birth anniversary 19 august interesting story facts political career | Patrika News
भोपाल

Interesting News: एक सेक्युलर शिक्षा मंत्री, स्कूलों को दिए थे आदेश ‘ग’ से गणेश नहीं… ‘ग’ से ‘गधा’ पढ़ाओ

Dr Shankar Dayal Sharma: यहां हम बात कर रहे हैं पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा की, 19 अगस्त 1918 को भोपाल में जन्में डॉ. शंकर दयाल का छोटे से नेता से लेकर शिक्षामंत्री बनने तक का सफर…लेकिन वो देश के राष्ट्रपति भी होंगे ये किसी ने सोचा तक नहीं था, पत्रिका.कॉम आपको बता रहा है उनके जीवन से जुड़े ऐसे ही दिलचस्प किस्से…

भोपालAug 19, 2024 / 08:49 am

Sanjana Kumar

dr shankar dayal sahrma
Interesting News: डॉ. शंकर दयाल शर्मा वही व्यक्ति थे, जिन्होंने प्रधानमंत्री का पद ठुकरा दिया था। लेकिन जब भारत के 9वें राष्ट्रपति बने तो हमेशा उन्हें यह दुख सताता रहा कि वे कभी अपने घर तक नहीं जा सके। उन गलियों तक नहीं जा सके, जहां उन्होंने बचपन के दिन बताए थे। पुराने भोपाल की बुलियादाई की गली में डॉ. शंकर दयाल शर्मा का पैतृक निवास रहा है, यहीं उन्होंने अपने दोस्तों के साथ बचपन बिताया था। यहां जानें पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा के राजनीतिक जीवन के रोचक किस्से…

6 दिसंबर की वो रात जब सिसक कर रो रहे थे राष्ट्रपति

6 दिसंबर 1992…देर रात नई दिल्ली के 7 आरसीआर में प्रधानमंत्री सो रहे थे। दूसरी तरफ देश के सर्वोच्च पद पर बैठा एक व्यक्ति रो रहा था। यह घटना है उस दिन की जब अयोध्या में बाबरी ढांचा ढहा दिया गया था।
दरअसल तत्कालीन राष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा इतने हताश और असहाय महसूस कर रहे थे कि उनकी आंखों में आंसू थे और देश के प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहाराव अपने सरकारी बंगले में सो रहे थे। डॉ. शर्मा बाबरी विध्वंस रोकने के लिए हस्तक्षेप करना चाहते थे, लेकिन उनका यह प्रयास विफल रहा। कुछ वर्षों पहले आई एक पुस्तक में यह जिक्र मिलता है।

एक कांग्रेसी नेता के रूप में शुरू हुआ था राजनीतिक सफर

भोपाल में जन्मे डॉ. शंकर दयाल शर्मा का राजनीतिक करियर एक छोटे से कांग्रेसी नेता के रूप में शुरू हुआ था। कांग्रेस पार्टी में धीरे-धीरे शंकरदयाल का कद बढ़ने लगा था। मध्य प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री थे और उन्होंने शिक्षा, कानून, सार्वजनिक निर्माण, उद्योग और वाणिज्य और राजस्व जैसे विभिन्न विभागों को संभाला।
जब उन्हें शिक्षा मंत्री बनने का अवसर मिला, तब उन्होंने स्कूलों में धर्मनिरपेक्ष शिक्षाशास्त्र पर जोर दिया और धार्मिक पूर्वाग्रह से बचने के लिए पाठ्यपुस्तकों को संशोधित किया गया।

स्कूलों में जारी किया आदेश ‘ग’ से गधा पढ़ाओ

डॉ. शर्मा को एक सेक्युलर नेता माना जाता था। जब वे मध्यप्रदेश के शिक्षामंत्री थे तो, उन्होंने स्कूलों में आदेश जारी कर दिए थे कि ‘ग’ से ‘गणेश’ की जगह ‘ग’ से ‘गधा’ पढ़ाया जाए। इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया कि ‘गधा’ किसी धर्म का नहीं होता। शिक्षा को धर्म से नहीं जोड़ना चाहिए।

एक किस्सा यह भी

बात 1968 की है जब कांग्रेस में फूट पडऩे लगी थी। एक गुट पीएम इंदिरा गांधी के साथ खड़ा था और दूसरा गुट तब के तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष एस निजलिंगप्पा के साथ। तब दो गुटों में बंटी कांग्रेस में एक नेता ऐसा भी था जिसे दोनों ही तरफ बड़ा आदर मिलता था। सुबह पार्टी अध्यक्ष के साथ होती थी, तो शाम को इंदिरा गांधी की दरबार में गुजरती थी। यह डा. शंकर दयाल शर्मा ही थे।
इंदिरा के दरबार में डॉ. शर्मा की उपस्थिति से कांग्रेस अध्यक्ष नाराज थे। इंदिरा के समर्थक इन्हें सच्चा देशभक्त मानते थे, वहीं कांग्रेस अध्यक्ष एस निजलिंगप्पा इन्हें विभीषण कहने लगे थे। कांग्रेस टूट चुकी थी। इंदिरा को अलग पार्टी बनानी पड़ी।
नई पार्टी में शंकरदयाल को वरिष्ठ महासचिव बनाया गया। वे अध्यक्ष भी बने। तो इंदिरा की कैबिनेट में मंत्रालय भी मिला। तब तक एस निजलिंगप्पा शंकर दयाल के नाम से इतने नाराज हो चुके थे कि उन्होंने उनसे मिलना भी बंद कर दिया, यहां तक कि बोलचाल भी बंद कर दी थी।
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1991 में ठुकराया था प्रधानमंत्री पद

1991 में राजीव गांधी के निधन के बाद सोनिया गांधी कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनीं थीं। 1991 में देश में कांग्रेस की बड़ी जीत हुई थी। पार्टी में मंथन चल रहा था पीएम किसे बनाया जाए, तब सोनिया को पार्टी और इंदिरा के सबसे वफादार शंकर दयाल की याद आई।
सभी कांग्रेसी नेता उनके नाम पर सहमत थे। नेहरू-गांधी परिवार की वफादार अरुणा आसिफ अली डॉ. शर्मा से मिलने गई। सोनिया का संदेश दिया। पार्टी चाहती है आप देश के 10वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लें। डॉ. शर्मा ने उम्र का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री का पद ठुकरा दिया। इसके बाद नरसिंहराव देश के प्रधानमंत्री बने।

इंदिरागांधी के संकटमोचक भी

डॉ. शंकर दयाल 1984 में इंदिरा गांधी के लिए संकट मोचक तक बन गए थे। 1983 के समय आंध्रप्रदेश में कांग्रेस को हराकर तेलुगु देशम पार्टी ने सरकार बनाई थी। मुख्यमंत्री बने एनटी रामाराव। रामाराव इलाज के लिए अमेरिका गए थे, तभी कांग्रेस के ही नेता बगावत कर मुख्यमंत्री पद की शपथ ले लेते हैं।
रामाराव लौटकर दिल्ली कूच करते हैं। देश में इंदिरा के खिलाफ आवाजें उठने लगती हैं। तब इंदिरा गांधी डॉ. शर्मा को आंध्र प्रदेश का गवर्नर बनाकर भेज देती हैं। शंकर दयाल रामाराव को फिर से सीएम पद की शपथ दिलवा देते हैं और इंदिरा गांधी विरोधी लहर कमजोर होने लगती है।

एक नजर


– 19 अगस्त 1918 में भोपाल में हुआ था जन्म।
– 1940 में स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया।
– 1948 से 1949 के दौरान डॉ. शंकर दयाल शर्मा भोपाल राज्य के भारत में विलय के लिए आंदोलन के नेताओं में से एक थे, इसके लिए उन्हें आठ महीने की जेल की सजा भी काटनी पड़ी थी।
– भारत की आजादी के बाद 1952 में भोपाल के मुख्यमंत्री बने।
– 1984 से वह भारतीय राज्यों के राज्यपाल के नियुक्त किए जाते रहे।
– आन्ध्र प्रदेश के राज्यपाल रहते हुए बेटी और दामाद की हत्या।
– 1985 से 1986 तक पंजाब के राज्यपाल रहे।
– देश के 8वें उपराष्ट्रपति रहे।
– देश के 9वें राष्ट्रपति बने।
– 26 दिसंबर 1999 को देहांत।

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