6 दिसंबर की वो रात जब सिसक कर रो रहे थे राष्ट्रपति
6 दिसंबर 1992…देर रात नई दिल्ली के 7 आरसीआर में प्रधानमंत्री सो रहे थे। दूसरी तरफ देश के सर्वोच्च पद पर बैठा एक व्यक्ति रो रहा था। यह घटना है उस दिन की जब अयोध्या में बाबरी ढांचा ढहा दिया गया था।एक कांग्रेसी नेता के रूप में शुरू हुआ था राजनीतिक सफर
भोपाल में जन्मे डॉ. शंकर दयाल शर्मा का राजनीतिक करियर एक छोटे से कांग्रेसी नेता के रूप में शुरू हुआ था। कांग्रेस पार्टी में धीरे-धीरे शंकरदयाल का कद बढ़ने लगा था। मध्य प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री थे और उन्होंने शिक्षा, कानून, सार्वजनिक निर्माण, उद्योग और वाणिज्य और राजस्व जैसे विभिन्न विभागों को संभाला।स्कूलों में जारी किया आदेश ‘ग’ से गधा पढ़ाओ
डॉ. शर्मा को एक सेक्युलर नेता माना जाता था। जब वे मध्यप्रदेश के शिक्षामंत्री थे तो, उन्होंने स्कूलों में आदेश जारी कर दिए थे कि ‘ग’ से ‘गणेश’ की जगह ‘ग’ से ‘गधा’ पढ़ाया जाए। इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया कि ‘गधा’ किसी धर्म का नहीं होता। शिक्षा को धर्म से नहीं जोड़ना चाहिए।एक किस्सा यह भी
बात 1968 की है जब कांग्रेस में फूट पडऩे लगी थी। एक गुट पीएम इंदिरा गांधी के साथ खड़ा था और दूसरा गुट तब के तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष एस निजलिंगप्पा के साथ। तब दो गुटों में बंटी कांग्रेस में एक नेता ऐसा भी था जिसे दोनों ही तरफ बड़ा आदर मिलता था। सुबह पार्टी अध्यक्ष के साथ होती थी, तो शाम को इंदिरा गांधी की दरबार में गुजरती थी। यह डा. शंकर दयाल शर्मा ही थे।1991 में ठुकराया था प्रधानमंत्री पद
1991 में राजीव गांधी के निधन के बाद सोनिया गांधी कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनीं थीं। 1991 में देश में कांग्रेस की बड़ी जीत हुई थी। पार्टी में मंथन चल रहा था पीएम किसे बनाया जाए, तब सोनिया को पार्टी और इंदिरा के सबसे वफादार शंकर दयाल की याद आई।इंदिरागांधी के संकटमोचक भी
डॉ. शंकर दयाल 1984 में इंदिरा गांधी के लिए संकट मोचक तक बन गए थे। 1983 के समय आंध्रप्रदेश में कांग्रेस को हराकर तेलुगु देशम पार्टी ने सरकार बनाई थी। मुख्यमंत्री बने एनटी रामाराव। रामाराव इलाज के लिए अमेरिका गए थे, तभी कांग्रेस के ही नेता बगावत कर मुख्यमंत्री पद की शपथ ले लेते हैं।एक नजर
– 19 अगस्त 1918 में भोपाल में हुआ था जन्म।
– 1940 में स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया।
– 1948 से 1949 के दौरान डॉ. शंकर दयाल शर्मा भोपाल राज्य के भारत में विलय के लिए आंदोलन के नेताओं में से एक थे, इसके लिए उन्हें आठ महीने की जेल की सजा भी काटनी पड़ी थी।
– भारत की आजादी के बाद 1952 में भोपाल के मुख्यमंत्री बने।
– 1984 से वह भारतीय राज्यों के राज्यपाल के नियुक्त किए जाते रहे।
– आन्ध्र प्रदेश के राज्यपाल रहते हुए बेटी और दामाद की हत्या।
– 1985 से 1986 तक पंजाब के राज्यपाल रहे।
– देश के 8वें उपराष्ट्रपति रहे।
– देश के 9वें राष्ट्रपति बने।
– 26 दिसंबर 1999 को देहांत।