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यही नहीं कई बार मृतक के परिजन बताते हैं कि मृतक के शरीर में किसी जगह पर फ्रैक्चर था। यह पता लगाने के लिए एक्स-रे का उपयोग होता है कि हकीकत में फ्रैक्चर था या नहीं। पहले इसके लिए मृतक के शव को काटना पड़ता था। एम्स-रे से विक्षिप्त शव के पोस्टमार्टम के बाद उम्र पता करना आसान हो जाता है। सबसे बड़ी सुविधा यह है कि ऑनलाइन दूसरे विभागों को भी एक्सरे की इमेज भेजकर विशेषज्ञ की राय ली जा सकती है। इससे मौत का सही कारण आसानी से पता चल जाता है।
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एम्स एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राघवेन्द्र बिदुआ ने बताया कि जीवित व्यक्ति की तरह शव को भी सम्मान दिया जाना बहुत जरूरी है ताकि अंतिम समय में लोग अपने प्रियजन के शरीर को बगैर क्षत-विक्षत हु विदाई दे सकेंगे, डिजिटल एक्सरे से पोस्टमार्टम का काम आसान हो जाता है।
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चूहे कुतर जाते हैं शव
भोपाल के हमीविया अस्पताल की मॉर्चुरी में शहर ही नहीं आसपास के जिलों से भी शव पोस्टमार्टम के लिए आते हैं। एम्स में जहां हर दिन महज दो से तीन पोर्स्टमार्टम होते हैं वहीं हमीदिया में 15 से 20 पोस्टमार्टम किए जाते हैं। इसके बावजूद यहां 50 साल पुरानी मॉर्चुरी में काम हो रहा है।
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केन्द्रीय गृह विभाग के मेडिको लीगल संस्थान और जीमसी के फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग के अधीन मॉर्चुरी में ना तो डॉक्टर हैं ना इंतजाम। शंवों को खुले में ही रखना पड़ता है। यही नहीं हमीदिया अस्पताल के नए दो हजार बिस्तरों भवन में भी मॉर्चुरी नहीं बनाई गई। मेडिकोलीगल संस्थान डायरेक्टर, डॉ.अशोक शर्मा ने बताया कि हम इस बारे में शासन को कई बार पत्र लिख चुके हैं। नई बिल्डिंग में भी जगह नहीं तैयार की गई। इस मॉर्चुरी को अपडेट करने को कहा था वह भी नहीं हुआ। पोस्टमार्टम करने के लिए स्टाफ तक नहीं है।
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