इसके पीछे चिकित्सा शिक्षा विभाग का तर्क यह है कि इंदौर में बने ट्रांसप्लांट यूनिट में ही मरीज नहीं मिल रहे, ऐसे में भोपाल में यूनिट बनाने से क्या फायदा। हालांकि स्थिति इसके उलट है। राजधानी में कई ऐसे मरीज हैं जो इस बीमारी से जूझ रहे हैं और इलाज के लिए यहां वहां भटक रहे हैं। गौरतलब है कि हमीदिया अस्पताल में बोनमैरो ट्रांसप्लांट यूनिट शुरू होने से खून से जुड़ी बीमारियों का राजधानी में ही मरीजों को स्थायी इलाज मिलना शुरू हो सकेगा।
4 करोड़ से बननी थी यूनिट
कमला नेहरू गैस राहत अस्पताल में यूनिट बनाई जानी है। इसमें करीब चार करोड़ रुपए की लागत आएगी। पूरा खर्च गैस राहत विभाग उठाएगा। डॉक्टर व कर्मचारी हमीदिया अस्पताल के होंगे। इसके लिए मेडिसिन व सर्जरी विभाग के तीन डॉक्टरों की ट्रेनिंग भी हो चुकी है। हर हफ्ते शुक्रवार को मेडिसिन विभाग में हीमैटोलॉजी क्लीनिक शुरू किया गया है।
केस एक
भेल में ठेका कर्मचारी मचल सेन नौ वर्षीय बेटे के इलाज के लिए परेशान है। रक्त के लिए बार-बार परेशान होना पड़ता है। मचल का कहना है, भले ही सरकार ऑपरेशन मुफ्त कराए पर इंदौर जाना ही महंगा पड़ेगा। वहां रहने, खाने-पीनें में ही लाखों रुपए खर्च हो जाएंगे।
केस दो
गुलमोहर निवासी राकेश रिझारिया के बेटे का बोनमैरो ट्रांसप्लांट होना है। उनका कहना है कि हमीदिया में यूनिट बनती तो अच्छा था, इंदौर में बहुत पैसे खर्च हो जाएंगे। हम मजदूरी करते हैं, वहां जाने पर खाने, रहनें के पैसे कहां मिलेगा।
ब्लड कैंसर, थैलेसीमिया समेत कई बीमारियों का होता है इलाज
दिल्ली में हीमैटोलॉजिस्ट डॉ. राहुल भार्गव बताते हैं कि ब्लड कैंसर, थैलेसीमिया और खून से जुड़ी बीमारियों का इसमें स्थायी इलाज होता है। इसमें स्वस्थ्य व्यक्ति के बोनमैरो से स्टेम सेल लेकर मरीज के बोनमैरो में डाली जाती है। इसके बाद नई कोशिकाएं बनने लगती हैं और संक्रमण से मुकाबला करती हैं। इसके पहले मरीज को हाई डोज कीमोथैरेपी दी जाती है। इसके बाद शरीर में शुद्घ खून बनने लगता है।
इंदौर में शुरू हो चुकी है यूनिट
इंदौर के एमवाय अस्पताल और भोपाल के हमीदिया अस्पताल में यूनिट बनाने का निर्णय पिछले साल सरकार ने लिया था। इंदौर में यूनिट शुरू हो चुकी है। भोपाल में अगस्त तक तैयार हो जानी थी। जीएमसी के अधिकारी ने बताया कि अब यहां बोनमैरो ट्रांसप्लांट की जगह अभी बुजुर्गों के इलाज के लिए जीरियाट्रिक क्लीनिक बनाई जाएगी। इसके लिए अलग से डॉक्टर, स्टाफ होगा। 20 बिस्तर का वार्ड, आईसीयू, फि जियोथैरेपी यूनिट, जांच की सुविधाएं रहेंगी। पर इसे लेकर चिकित्सा शिक्षा विभाग की रुचि नहीं दिख रही है।