नाक के नीचे कारोबार…और पुलिस बेखबर
स्र्माट पुलिसिंग का दावा करने वाली भोपाल पुलिस को गुजरात एटीएस ने इस छापेमारी की जानकारी नहीं दी। मप्र इंटेलिजेंस को भी भनक नहीं लगी। एटीएस भी कार्रवाई से अनजान रही। गुजरात एटीएस अन्य राज्यों में कार्रवाई नहीं कर सकती। इसलिए एनसीबी को अभियान में शामिल करना पड़ा।
सवालों के घेरे में उद्योग विभाग भी
बगरोदा की जिस फैक्टरी में ड्रग्स बन रहा था। उसकी लीज जयदीप सिंह के नाम है। जयदीप ने ये फैक्टरी कुछ महीने पहले ए.के. सिंह को बेची थी, जिसे अवैध तरीके से अमित चतुर्वेदी को किराये पर दे दिया गया। जबकि, इंडस्ट्रियल एरिया में लीज पर ली गई जमीन को किराए पर नहीं दिया जा सकता है। ऐसे में उद्योग विभाग भी सवालों के घेरे में है।
एमडी के नशेडिय़ों को आते हैं खुदकुशी के विचार
नशा छुड़ाने वाले डॉक्टर्स का कहना है कि एमडी (मिथाइलीनडाईऑक्सी मैथाम्फेटामाइन यानी एक्सटैसी) चीनी जैसा सफेद होता है। इसका नशा शुरुआत में स्फूर्ति एवं उत्साह महसूस कराता है। व्यक्ति कई घंटे नशे में रहता है। बाद में यह सिर में चढ़ जाता है। लगातर सेवन से व्यक्ति हमेशा तनाव रहता है। फिर धीरे-धीरे डिप्रेशन में चला जाता है। जीवन में नकारात्मकता आने लगती है। बाद में खुदकुशी करने की सोचने लगता है।
1929 में मेफेड्रोन की इजाद
मेफेड्रोन ड्रग को ड्रग्स माफिया म्याऊं-म्याऊ, एम-कैट, व्हाइट मैजिक ड्रग आदि के नाम से बेचते हैं। यह सिंथेटिक उत्तेजक ड्रग है । जिसे मिथाइलप्रोपियोफेनोन, ब्रोमीन, डाइक्लोरोमेथेन जैसे कई केमिकल से बनाते हैं।1929 में इसे दवााओं के रूप में इजाद किया गया। बाद में यह यूरोपीय देशों में नशे के रूप में प्रयोग होने लगा। इसलिए 2008 में इजराइल में सबसे पहले इस पर बैन लगा।मेफेड्रोन का शरीर पर असर
मेफेड्रोन ड्रग कैप्सूल और पाउडर फॉर्म में मिलता है। इसका असर शरीर के न्यूरोन्स पर पड़ता है इससे डोपामाइन एंजाइम का उत्सर्जन बढ़ जाता है। शरीर में उत्तेजना आती है।बहुत मंहगी बिकती है
एक ग्राम सिंथेटिक ड्रग्स मेफेड्रोन यानी एमडी की कीमत क्वालिटी के हिसाब से एक हजार रुपए से लेकर 15 हजार तक है।
सभी फैक्ट्रियों में होगा सर्वे
फैक्टरी किनके पास थी, हम नहीं जानते। क्योंकि, वो हमारे एसोसिएशन के सदस्य नहीं थे। लेकिन, इस मामले के बाद पुलिस के साथ मिल कर सभी फैक्टरियों का सर्वे करवाया जाएगा।– नवनीत व्यास, अध्यक्ष, बगरोदा इंडस्ट्रियल एसोसिएशन