नई दिल्ली/भोपाल। करीब एक दशक के इंतजार के बाद मध्यप्रदेश सरकार से हरी झंडी पाने वाले इंदौर और भोपाल मेट्रो के पहिए राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में अटक सकते हैं। केंद्र सरकार की नई नीति के मुताबिक, नए मेट्रो की मंजूरी देने से पहले शहरी विकास मंत्रालय परियोजना की आर्थिक व्यवहार्यता और परिवहन के अन्य विकल्पों की उपलब्धता पर विचार करता है। इन दोनों ही कसौटियों पर इंदौर-भोपाल मेट्रो मुश्किल में पड़ सकती है।
केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, बीते महीने में हुए अर्बन मोबिलिटी इंडिया कॉन्फ्रेंस के बाद केंद्र सरकार इस नतीजे पर पहुंची है कि किसी भी मेट्रो परियोजना को सिर्फ डीपीआर के आधार पर ही मंजूरी नहीं देनी है। अधिकारी के मुताबिक, अब सरकार शहरी परिवहन के लिए मेट्रो को सबसे अंतिम विकल्प मान रही है।
ऐसे में जिस भी राज्य से मेट्रो परियोजना के प्रस्ताव आएंगे, उनसे पहले अन्य वैकल्पिक शहरी परिवहन पर विचार करने को कहा जाएगा। यदि राज्य सरकार मेट्रो परियोजना पर ही आगे बढऩा चाहती है, तो भी केंद्र पहले परियोजना की आर्थिक व्यवहार्यता जांचेगा। यदि परियोजना आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं पाई गई तो केंद्र से उसे मंजूरी नहीं मिलेगी। अधिकारी ने कहा कि इंदौर और भोपाल मेट्रो के लिए केंद्र सरकार को अपनी इक्विटी के तौर पर करीब 2900 करोड़ रुपए देने होंगे। एक ही राज्य के दो शहरों के लिए इतनी बड़ी राशि को मंजूरी मिलना कठिन होगा।
बीआरटीएस बढ़ाने को कह सकते हैं
अधिकारी के मुताबिक, अन्य शहरी परिवहन विकल्प के रूप में इंदौर और भोपाल दोनों शहरों में बीआरटीएस मौजूद है। ऐसे में शहरी विकास मंत्रालय मध्यप्रदेश सरकार से इन बीआरटीएस को ही विकसित करने को कह सकता है।
मप्र चाहे तो अपने खर्च से शुरू कर सकता है
अधिकारी ने स्पष्ट किया कि केंद्र से मंजूरी न मिलने के बावजूद राज्य सरकार मेट्रो परियोजना पर काम शुरू कर सकती है, लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से मिलने वाली 20 फीसदी इक्विटी नहीं मिलेगी। केंद्र की भागीदारी के बिना अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से लोन मिलना भी मुश्किल हो जाएगा।
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