उसे सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी। आक्सीजन लेवल महज 42 प्रतिशत था। जांच में पता चला कि उसके फेफड़े पूरी तरह खराब हो गए थे, वह एआरडीएस से पीड़ित निकली। फेफड़े खराब हो जाने से उसे पर्याप्त आक्सीजन नहीं मिल पा रही थी। उन्हें तुरंत रेस्पिरेटरी इंटेंसिव केयर यूनिट (आरआइसीयू) में भर्ती कर वेंटीलेटर पर रखा गया। बाद में एक्मो मशीन की मदद से सांस देना शुरु किया। करीब 14 दिन तक एक्मो लगाकर कृत्रिम सांस दी गई। इससे फेफड़ों को आराम मिल गया और चूंकि फेफड़े सेल्फ रिकवर आर्गन होते हैं इसलिए खुद ब खुद ठीक हो गए।
एक्मो मशीन न केवल बहुत महंगी होती है बल्कि इसका संचालन भी बेहद कठिन है। प्राइवेट अस्पतालों में इस मशीन का रोज के ढाई लाख रुपए तक लिए जाते हैं लेकिन एम्स में युवती को निशुल्क मशीन लगाई गई।
एक्मो मशीन यानि एक्सट्राकार्पोरियल मेंब्रेन आक्सीजिनेशन (ईसीएमओ) लाइफ सपोर्ट सिस्टम जैसी है। इससे मरीज के खराब अंग और दिल की गति ठीक हो जाती है। यह अत्याधुनिक तकनीक है जिससे शरीर से रक्त निकालकर उसमें से कार्बन डाइआक्साइड को बाहर कर उसे ओक्सिजनेट किया जाता है। इसके बाद रक्त को फिर शरीर में भेजते हैं।