20 हजार क्विंटल शहद का उत्पादन
जिले में 10 हजार से ज्यादा किसान मधुमक्खी पालन से जुड़े हैं। इनके पास 75 हजार से ज्यादा मधुमक्खी बॉक्स हैं। प्रत्येक बॉक्स में औसतन 50-60 हजार मधुमक्खियां होती हैं। महात्मा गांधी सेवा आश्रम जौरा, खादी ग्रामोद्योग आयोग, कृषि विज्ञान केंद्र और भारत सरकार के संयुक्त प्रयासों से जिले में संचालित ‘हनी मिशन’ के तहत प्रतिवर्ष 20 हजार क्विंटल शहद का उत्पादन भी करते हैं। 1000 के करीब महिलाएं भी इस व्यवसाय से जुड़ी हैं।
मधुमक्खियां को पलायन करा ले जाते थे
अंचल में 15 जून से 15 अप्रैल तक ही मधुमक्खियों के लिए पर्याप्त फ्लोरा उपलब्ध रहता है। इसके बाद फसलें पकने और कटने से समस्या आने पर मधुमक्खी पालक उत्तरप्रदेश में मक्का और हरी सब्जियों की खेती वाले क्षेत्रों में मधुमक्खियां को पलायन करा ले जाते थे।
कृत्रिम भोजन व्यावहारिक और कारगर नहीं
मईऔर जून माह में मधुमक्खियों को कृत्रिम भोजन देकर भी नहीं बचाया जा सकता है। इसलिए हरी सब्जी और फसलों वाले क्षेत्रों मेंं इन्हें ले जाना पड़ता है, लेकिन इस बार ऐसा संभव नही हो पाने से मधुमक्खियों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। ऐसे में सरकार को मधुमक्खियों को पलायन कराने की व्यवस्था करनी चाहिए।
8-10 किसानों ने किया था कारोबार शुरू
वर्ष 2001-02 में गांधी सेवा आश्रम के जागरूकता अभियान और राज्य सरकार के निर्देश पर कृषि विज्ञान केंद्र मुरैना ने 8-10 किसानों के साथ शहद उत्पादन और मधुमक्खी पालन का काम शुरूकिया था। अब इससे 10 हजार किसान जुडकऱ सालाना 25-30 करोड़ का शहद उत्पादन करते हैं। गैपरा के मधुमक्खी पालक किसान रामअवतार त्यागी कहते हैं उनके पास 1000 बॉक्स मधुमक्खियों के हैं, लेकिन इन दिनों उनके लिए भोजन का प्रबंध नहीं हो पाता है। रामकुमार धाकड़ का भी ऐसा ही मानना है। मुरैना जिले के शहद उत्पादक किसानों के पास अभी 700 टन के करीब शहद बचा है।
निर्यात पर 40 फीसदी असर, मदद की दरकार
कोरोना संक्रमण के चलते निर्यात होने वाले शहद की मांग मे 40 प्रतिशत तक की गिरावट आई है। घरेलू बाजार में बिकने वाले (मल्टीफ्लोरा, नीम, युकिलिप्टस, शीशम, बरशीम, अजवाइन, जामुन,लीची के फूल से बने) शहद के उत्पादन में भी लगभग 30 प्रतिशत की कमी आई है। ऐसे ेेमें शहद उत्पादकों को सरकारी मदद की दरकार है। मार्च 2020 में समाप्त वित्तवर्ष में भारत ने लगभग 50 हजार मीट्रिक टन शहद का निर्यात किया था। वित्तवर्ष 2018 -19 में1,000 करोड़ रुपए के लिए 6 2,500 मीट्रिक टन शहद का निर्यात हुआ था।
मधुमक्खी पालक किसान इस समय परेशान हैं। लॉक डाउन में मधुमक्खियों का पलायन नहीं हुआ तो वे मर जाएंगी। अभी तो शक्कर एवं अन्य कृत्रिम भोजन से काम चलाया जा रहा है। सरसो, तिली, बरसीम अरहर, ढेंचा फसलें अब नहीं बचीं। गुना-अशोक नगर भी नहीं जा पा रहे हैं।
प्रफुल्ल श्रीवास्तव, विशेषज्ञ व प्रबंधक, गांधी सेवाश्रम जौरा
मधुमक्खियों को पलायन की अनुमति दी जा सकती है। वहां तो सोशल डिस्टेंसिंग का भी पूरा पालन होता है, जिले में 375 लाख के करीब मधुमक्खियां पालीं जा रही हैं, उनके लिए कृत्रिम भोजन ज्यादा दिनों तक संभव नहीं है। मधुमक्खियां का पलायन न होने पर वे मर सकती हैं, जिससे शहद का उत्पादन बहुत कम हो जाएगा।
डॉ. वायपी सिंह, विशेषज्ञ व सह संचालक, आंचालिक कृषि अनुसंधान केंद्र, मुरैना।