वायु की गुणवत्ता सुधारने सीपीसीबी ने भी नहीं दिया साथ
रोड स्वीपिंग मशीन, एंटी स्मोग गन खरीदने के लिए भेजा था ढाई करोड़ का प्रस्ताव, पांच महीने बीत गए कोई प्रतिक्रिया नहीं आई सामने
वायु की गुणवत्ता सुधारने सीपीसीबी ने भी नहीं दिया साथ
भिवाड़ी. नेशनल कैपिटल रीजन (एनसीआर) में ग्रेप की बंदिश हो या उद्योग धंधों के लिए सख्त नियम, सभी की पालना भिवाड़ी को करनी पड़ती है। भिवाड़ी ने पहली बार अपने हक की मांग सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) से की लेकिन पांच महीने बाद भी उस प्रस्ताव पर कोई अमल नहीं हुआ है। अगर सीपीसीबी इस प्रस्ताव को स्वीकार कर नगर परिषद को राशि या संसाधन देती तो इससे वायु प्रदूषण की दिशा में उचित कदम उठाने में मदद मिलती।नगर परिषद ने वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए उपकरण खरीदने करीब ढाई करोड़ रुपए की मांग की थी। इस राशि से एक रोड स्वीपिंग मशीन और चार एंटी स्मोग गन खरीदने का प्रस्ताव था।
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आयोग के पास यहां से आता है फंड
एनसीआर क्षेत्र में दो हजार सीसी से अधिक क्षमता के वाहनों पर एक प्रतिशत पर्यावरण सेस लगता है। इस सेस की राशि सीपीसीबी के पास पर्यावरण सुरक्षा कोष में जमा होती है। इस राशि का उपयोग वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए जरूरी संसाधन खरीदने में किया जाता है। भिवाड़ी भी एनसीआर में आता है और केंद्रीय वायु गुणवत्ता आयोग द्वारा लगाए जाने वाले ग्रेप को झेलता है लेकिन यहां संसाधनों की काफी कमी है। वायु गुणवत्ता को सुधारने के लिए रोड स्वीपिंग मशीन, एंटी स्मोग गन और पौधारोपण ही कारगर हथियार हैं। नगर परिषद के पास अभी तक एक रोड स्वीपिंग मशीन, एंटी स्मोग गन और वॉटर टैंकर है। परिषद का क्षेत्र बड़ा होने और साथ में औद्योगिक क्षेत्र होने से यह साधन नाकाफी ही साबित होते हैं। आयोग की गाइडलाइन की पालना के लिए किराए पर उपकरण लेकर काम चलाना पड़ता है लेकिन उससे भी हल नहीं निकलता।
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साधन बढ़़ेंगे तो दिखेगा असर
इसके लिए नगर परिषद ने सीपीसीबी से ढाई करोड़ रुपए की मांग रखी थी, जिससे कि एक रोड स्वीपिंग मशीन और चार एंटी स्मोग गन खरीदी जा सकें। सीपीसीबी एनसीआर में आने वाली नगर निकाय को वायु प्रदूषण कम करने के लिए फंड देती है। भिवाड़ी से इस तरह की मांग पहली बार की गई है। रोड स्वीपिंग मशीन से सफाई में धूल नहीं उड़ती, मशीन द्वारा धूल को सोखा जाता है। जबकि एंटी स्मोग गन से हवा में काफी ऊंचाई तक बारीक बूंद से छिडक़ाव किया जाता है, जिससे कि धूल के छोटे कण खत्म हो जाते हैं। पहली बार आयोग को भेजे गए प्रस्ताव पर अभी तक कोई निर्णायक पहल नहीं हुई है, जबकि भिवाड़ी को संसाधनों की हमेशा जरूरत रहती है।
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पांच महीने खराब रहती है हवा
एनसीआर में आने की वजह से भिवाड़ी का वायु गुणवत्ता सूचकांक पांच महीने खराब रहता है। ग्रेप की पाबंदी लागू होने से उद्योगों को बंद करना पड़ता है। सरकारी कार्यालयों को धूल-मिट्टी नियंत्रण एवं पानी छिडक़ाव के लिए जूझना पड़ता है। अगर यहां की हवा को स्वच्छ रखा जाए तो उद्योगों को बंद नहीं करना पड़ेगा।
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पांच महीने पहले आयोग को प्रस्ताव भेजा गया था लेकिन आयोग ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। अगली बैठक में इस मामले को आयोग सदस्यों के सामने रखा जाएगा।
रामकिशोर मेहता, आयुक्त, नगर परिषद
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