राजस्थान के इन जिलों में ऐसे विद्यालय, जहां के बच्चों को कंठस्थ है गीता के श्लोक
-प्रतिदिन वंदना सभा में गीता के श्लोक व अन्य मंत्रों का करवाया जा रहा अभ्यास
-पंचपदीय शिक्षण से संस्कृत भाषा एवं भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने का प्रयास
राजस्थान के इन जिलों में ऐसे विद्यालय, जहां के बच्चों को कंठस्थ है गीता के श्लोक
कानाराम मुण्डियारभीलवाड़ा. टेक्सटाइल सिटी भीलवाड़ा व नवगठित शाहपुरा जिले में 23 ऐसे विद्यालय हैं, जहां के विद्यार्थी वंदना सभा (प्रार्थना सभा) में प्रतिदिन 75 श्लोक का उच्चारण करने के बाद अपनी नियमित पढ़ाई शुरू करते हैं। भीलवाड़ा विद्या भारती शिक्षण संस्थान के तहत संचालित आदर्श विद्या मंदिर विद्यालयों में संस्कृत भाषा एवं भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए बच्चों को प्रार्थना सभा में संस्कृत के श्लोक, मंत्रों का उच्चारण करवाया जा रहा है। बच्चों को अधिकतर श्लोक कंठस्थ हैं।
नवगठित शाहपुरा जिले के कोटड़ी कस्बे में संचालित आदर्श विद्या मंदिर माध्यमिक विद्यालय के बच्चों को गीता के 18 अध्याय के सभी श्लोक कंठस्थ है। प्रतिदिन वंदना सभा (प्रार्थना सभा) में इन बच्चों की एक लय के साथ समधुर व कर्णप्रिय आवाज के साथ गीता के श्लोक सुनकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो रहा है। इस विद्यालय मेंं 1160 विद्यार्थी पढ़ते हैं। कक्षा 3 से 10 तक के 870 बच्चों को अष्टादश श्लोक की गीता के 18 अध्याय के सभी श्लोक कंठस्थ है। संस्कृति से ओत-प्रोत शैक्षिक माहौल के कारण बच्चों को गायत्री मंत्र, सरस्वति वंदना सहित कई अन्य मंत्र भी कंठस्थ है।
आदर्श विद्या मंदिर विद्यालय कोटड़ी के प्रधानाचार्य ओंकारलाल माली ने बताया कि पंचपदीय शिक्षण पद्धति के तहत संस्कृत भाषा व भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए विद्यार्थियों को प्रतिदिन 33 मिनट की वंदना सभा में विद्यार्थी नियमित रूप से गीता के 18 अध्याय के श्लोक व अन्य मंत्र बोलते हैं। प्रार्थना सभा में दीप प्रज्वलन, सरस्वति वंदना, गायत्री मंत्र व गीता के श्लोक उच्चारण के बाद अंत में राष्ट्रगान करवाया जा रहा है। ज्ञात है कि राजस्थान में 973 आदर्श विद्या मंदिर विद्यालय संचालित है। जहां बच्चों को नियमित पाठ्यक्रम के अलावा सनातन संस्कृति के ग्रंथों का अध्ययन करवाकर नैतिक व आध्यात्मिक उत्थान की शिक्षा दी जा रही है।
बच्चों में संस्कारों का बीजारोपण- पंचपदीय शिक्षण के जरिए बच्चों में राष्ट्रीयता का भाव बढ़ता है। बच्चों का नैतिक, आध्यात्मिक, बौद्धिक व मानसिक विकास प्रभावी तरीके से होता है। इसलिए बच्चों को ऐसे संस्कार दिए जा रहे हैं।
पहाड़ों का सुन्दर तरीके से अभ्यास- बच्चों को एक साथ पहाड़ों का अभ्यास भी बेहतरीन तरीके से करवाया जा रहा है। खाली कांलाश के दौरान भी बच्चे एक साथ एक स्वर में पहाड़े बोलते हैं। जिसको सुनकर हर कोई आनंदित हो सकता है। बच्चे बिना किसी हिचक व रूकावट के पहाड़े बोल रहे हैं।