अस्पताल को खुले 9 माह हो गए। आउटडोर समय के बाद अस्पताल पहुंचने वाली मरीज महिलाओं और बच्चों को अगले दिन का इंतजार करना पड़ता है या सीधे अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है। आपातकालीन कक्ष में केवल एक चिकित्सक सेवाएं देते हैं। उनके पास नर्सिंग स्टाफ भी नहीं है। एेसे में अपातकालीन कक्ष में पहुंच रहे मरीजों को इंजेक्शन भी लगाना हो तो उन्हें भर्ती करना ही पड़ेगा।
READ: दूषित सब्जी खाने माता-पिता व पुत्र की हालत बिगड़ी, घर में पड़े थे अचेत, पड़ौसियों ने पहुंचाया अस्पताल, भीलवाड़ा रैफर इस प्रक्रिया में मरीज के साथ-साथ परिजनों को भी परेशान झेलनी पड़ती है। आपातकालीन चिकित्सा कक्ष में केवल डॉक्टर रूम है। यहां न नर्सिंग स्टाफ है और न इंजेक्शन व दवा। एेसे में चिकित्सक भी हर पांचवें मरीज को केवल इंजेक्शन के लिए भर्ती करने में परेशान होते है।
आउटडोर बंद होते ही दवा वितरण केन्द्र पर ताले जनाना अस्पताल में आउटडोर बंद होने के साथ ही दवा केन्द्र भी बंद हो जाता है। आपात कक्ष में इलाज को पहुंच रही महिलाओं व बच्चों की दवा के लिए परिजनों को एमजीएच भेजा जाता है। इतना समय गुजरने के बावजूद अस्पताल प्रशासन यहां व्यापक सुविधाएं उपलब्ध नहीं करा पाया।
अस्पताल में प्रसूताओं की सोनोग्राफी भी नहीं होती है। कई बार आवश्यकता पडऩे पर बच्चों के एक्सरे कराने पड़ते हैं। वे यहां नहीं होते है। प्रसूताओं व बच्चों को इन सुविधाओं के लिए महात्मा गांधी चिकित्सालय ही जाना पड़ता है। अस्पताल में रक्त की जांचे भी पूरी नहीं होती है। लैब के नाम पर केवल सेम्पल कलेक्शन रूम बना रखा है।
डॉ. एसपी आगीवाल, प्रमुख चिकित्सा अधिकारी, एमजीएच भीलवाड़ा