यह दास्तां मध्यप्रदेश में इन्दौर के समीप राहु ग्राम व हाल शास्त्रीनगर (भीलवाड़ा) निवासी जन कवि रतन कुमार ‘ चटूल’ की है। केसरीमल दुग्गड़ के परिवार में जन्मे पुत्र रतन को आजादी से पहलेमांग करने पर बड़े भाई ने नीमच से 110 रुपए में साइकिल खरीदकर दी जो आज तक नहीं छूटी। उस समय साइकिल का मन्दिर के बाहर पण्डित से उद्घाटन भी कराया और नई साइकिल को देखने गांव के 340 लोग पहुंचे। साइकिल के अलावा किसी वाहन पर बैठना उन्हें पसंद नहीं। आपात स्थिति में भी अन्य वाहन पर बैठने से उन्हें चिड़ थी। 83 वर्ष की उम्र हो गई पर मानते ही नहीं।
अब भी सभी काम साइकिल पर ही करते है।
परिजन साइकिल छोडऩे की जिद्द करते है तो साइकिल ही सांस बताकर फिर सैर को निकल जाते हैं। रतन वर्षों पहले कई समाचार पत्रों के सम्पादकीय सहित अन्य विभागों में सेवाएं दे चुके हैं। उन्हें कविता लिखने का भी पुराना शौक है। इसके चलते उन्हे लोग जन कवि ‘चटूल ‘ के नाम से भी पूकारते है। ‘चटूल’ प्रतिदिन रात को गहन चिंतन के बाद सुबह उठते ही पहले ताजा विषय पर अपनी कविता लिखते है उसके बाद ही पानी पीकर अन्य काम शुरू करते है। उनकी रचनाएं लम्बे समय तक नियमित दैनिक समाचार पत्रों के साथ ही कई पुस्तकों में प्रकाशित हो चुकी है।