मूलत: मांडल के रहने वाले छोगालाल आठ साल पहले तक मजदूरी किया करते थे। उम्र के साथ शरीर कमजोर हुआ तो मजदूरी छोड़नी पड़ी। इसी बीच, बेटे भैंरू की आंखों की रोशनी चली गई। ऐसे में उसे पालने का जिम्मा बूढ़े पिता छोगाराम के कंधों पर फिर आ गया। बुढ़ापे में मजदूरी नहीं मिली तो पांसल चौराहा इलाके में मांग कर गुजर-बसर करने लगे। पिता-पुत्र जैसे-तैसे पेट भरने के बाद चौराहे पर ही सड़क किनारे सो जाते हैं। रोजाना सुबह पांसल चौराहे पर मातारानी मंदिर में दर्शन से उनके दिन की शुरुआत होती है।
छोटी उम्र में चल बसी पुत्रवधू
छोगाराम ने बताया कि बेटे भैंरू का बचपन में विवाह हो गया था। कुछ समय बाद पुत्रवधू की मौत हो गई। छोगाराम के नौ भाई थे, जिनमें आठ अब इस दुनिया में नहीं हैं। पूरे परिवार में दोनों ही बचे हैं। भैंरू की मां भी बेटे की आंखों की रोशनी जाने से पहले ही चल बसी थी।
नहीं मिल रही पेंशन, खो गए दस्तावेज
छोगाराम ने बताया कि उसे और बेटे को पेंशन व सरकारी सुविधा नहीं मिल रही हैं। उसके पहचान पत्र व अन्य दस्तावेज खो गए। ऐसे में पेंशन पाने का रास्ता नहीं सूझता। चौराहे के पास दुकानदार चाय पिला देते हैं। लोग मदद कर देते हैं तो पिता-पुत्र खाना खा लेते हैं।