इस्पात नीति के तहत बढ़ा रहे उत्पादन क्षमता
पत्र में कहा गया है कि भारत सरकार के इस्पात मंत्रालय के निर्देश पर सेल का इस्पात नीति 2030 के तहत क्षमता विस्तार किया जा रहा है। इसके तहत सेल को विस्तारीकरण के लिए एक लाख दस हजार करोड़ की राशि का निवेश वित्त वर्ष 2030-31 तक करने की योजना है। सेफी का तर्क है कि भविष्य में इस मद में की जाने वाली निवेश की राशि से आरआईएनएल व नगरनार इस्पात संयंत्र, एफएसएनएल जैसी इकाईयों का रणनीतिक विलय किया जाए। सेल के विस्तारीकरण के लक्ष्य को शीघ्र ही प्राप्त किया जा सकता है। वहीं इन कंपनियों के कार्मिकों के हितों की रक्षा व क्षेत्र के सामाजिक दायित्वों का निवर्हन को भी प्राथमिकता देते हुए इसका बेहतर संचालन किया जा सकता है।
राष्ट्रीय संपत्तियों को बिकने से बचाएं
उन्होंने पत्र में बताया है कि इससे इन राष्ट्रीय संपत्तियों को बिकने से बचाया जा सकेगा। इन इकाईयों से जुड़े परिवारों, समाजों को प्राप्त प्रत्यक्ष रोजगार व इससे सृजित अपरोक्ष रोजगार को सुरक्षित रखा जा सकेगा। सरकार का यह कदम जहां क्षेत्र के विकास को एक नई गति देगा। वहीं बस्तर जैसे दुर्गम वनांचल क्षेत्र में सामाजिक, आर्थिक व अधोसंरचना विकास को नई दिशा देने में सफल हो सकेगी। वर्तमान में भारत सरकार ने राष्ट्रीय और सामाजिक विकास को पहली प्राथमिकता दी है। भारत सरकार ने इस तरह के रणनीतिक विलय बैंको में किया है।
सेफी ने मांग किया है कि विनिवेश किए जाने वाले इन इकाईयों की क्षमता पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाए, तो इन इकाईयों के अलग-अलग क्षमताओं व उपलब्ध संसाधनों को मिलाकर एक लाभकारी रणनीति बनाई जा सकती है। इसमें इन इकाईयों को विनिवेश की जरूरत नहीं होगी। उदाहरण के लिए आरआईएनएल में कुशल व तकनीकी क्षमता से परिपूर्ण करीब 4800 अधिकारी व करीब 9500 कर्मचारी हैं। एक दशक पहले आरआईएनएल में 30,000 करोड़ रूपए का निवेश कर उसकी उत्पादन क्षमता को 3 एमटी से बढ़ाकर 7.3 एमटी किया था। अब कच्चे माल की कमी के कारण व विस्तारीकरण के कर्ज के ब्याज के बोझ के चलते 7.3 क्षमता के संयंत्र से मात्र 4 एमटी का उत्पादन लिया जा रहा है। इससे कंपनी के लाभार्जन की क्षमता को न्यूनतम कर दिया है।
एनएमडीसी के बस्तर में स्थापित नगरनार इस्पात संयंत्र जिसकी क्षमता 3 एमटी है व जिसे करीब 24,000 करोड़ की लागत से तैयार किया गया है, के पास लौह अयस्क प्रचुर मात्रा में उपलब्धता है। इसे चलाने के लिए मात्र 200 अधिकारी व 1000 कर्मचारी उपलब्ध है, जो कि अपर्याप्त है। इस संयंत्र के प्रचालन के लिए वर्तमान में मेकॉन को जिम्मेदारी दी गई है। मेकॉन को इस्पात संयंत्र प्रचालन का कोई पूर्व अनुभव नहीं है। इन परिस्थितियों में इस संयंत्र की भी लाभार्जन क्षमता भारी रूप से प्रभावित हुई है।
आरआईएनएल, नगरनार इस्पात संयंत्र व सेल के रणनीतिक विलय से जहां एक इकाई को कच्चा माल उपलब्ध हो पाएगा। वहीं दूसरी इकाई को तकनीकी क्षमता से परिपूर्ण मानव संसाधन मिलने में सहुलियत होगी। इस प्रकार इस्पात मंत्रालय के अधीन यह सार्वजनिक उपक्रम एक दूसरे की पूरक बनकर लाभार्जन करने लगेगी, जो भारत सरकार को आर्थिक संबलता देगा। एफएसएनएल जो कि इस्पात क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों के साथ अनेक परियोजनाओं में भागीदार है।