यहां का महामूर्खाधिराज सम्मेलन विख्यात है। इसमें शहर की सबसे बड़ी शख्सियत एक दिन खुशी-खुशी मूर्खाधिराज का ताज पहनती है। इसके बाद पूरे शहर में उसका जुलूस निकाला जाता है। मित्र मंडली तरुण समाज समिति ने करीब पांच दशक पहले होली पर यह अनूठी परम्परा शुरू की थी।
इस कार्यक्रम के पीछे मंशा यह थी कि होली की मस्ती और स्वांग बृज में रचे-बसे रहें। शुरुआत के दो-तीन साल महामूर्खाधिराज को गधे पर बिठाकर शहर भर से निकाला जाता था। इसके बाद अब महामूर्खाधिराज बनी शख्सियत को ट्रॉली में बिठाकर शहरभर में निकाला जाता है। समय के साथ कुछ परिवर्तन भी इसमें किए जा रहे हैं।
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महामूर्खाधिराज शहर के गणमान्य नागरिक को बनाया जाता है, जिसे वह सहर्ष ही स्वीकार करता है। मूर्खाधिराज बने व्यक्ति को बड़ी टोपी पहनाई जाती है। ट्रॉली में बैठे व्यक्ति के पीछे बैनर लगा होता है, जिस पर महामूर्खाधिराज लिखा होता है।
महामूर्खाधिराज बनने वाले को गोभी, गाजर, बैंगन आदि की माला भी पहनाई जाती है। पास बैठे व्यक्ति के हाथ में दूध की बोतल होती है, जो मूर्खाधिराज बने व्यक्ति को अपने हाथों से दूध पिलाता नजर आता है। हंसी-ठिठोली के बीच यह शोभायात्रा शहर के कुम्हेर गेट से शुरू होकर बिजली चौराहे तक निकलती है।
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प्रमुख रूप से पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्व. राजेश पायलट, पूर्व मंत्री डॉ. दिगम्बर सिंह, पूर्व राज्यमंत्री डॉ. सुभाष गर्ग, पूर्व मंत्री कृष्णेन्द्र कौर दीपा, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गिर्राज प्रसाद तिवारी एवं पूर्व विधायक विजय बंसल के साथ शहर की तमाम हस्तियां यह ताज अपने सिर पर रख चुकी हैं।
महामूर्खाधिराज की शोभायात्रा को कोरोना ने ब्रेक लगा दिया था। कोरोना काल में ब्रेक लगने के बाद यह तीन से चार साल तक बंद रही। अब इस साल इसे फिर से निकाला जा रहा है। इसकी तैयारियां समिति की ओर से शुरू कर दी गई हैं।