scriptकुप्रथा से दिला रहे समाज को आजादी | Freedom from evil practices to the society | Patrika News
भरतपुर

कुप्रथा से दिला रहे समाज को आजादी

भरतपुर . आजादी के जश्न के बीच कुप्रथा से आजादी की बात सभी के जेहन में है। सामाजिक कुप्रथा की बेडिय़ों को तोडऩे के लिए हर कोई आतुर है, लेकिन जाट समाज ने इसके लिए आगे आकर अभिनव पहल की है। समाज की पहल का ही नतीजा है कि जाट समाज जिले में मृत्युभोज जैसी कुप्रथा से पूरी तरह आजाद हो चुका है।

भरतपुरAug 14, 2021 / 08:52 pm

Meghshyam Parashar

कुप्रथा से दिला रहे समाज को आजादी

कुप्रथा से दिला रहे समाज को आजादी

भरतपुर . आजादी के जश्न के बीच कुप्रथा से आजादी की बात सभी के जेहन में है। सामाजिक कुप्रथा की बेडिय़ों को तोडऩे के लिए हर कोई आतुर है, लेकिन जाट समाज ने इसके लिए आगे आकर अभिनव पहल की है। समाज की पहल का ही नतीजा है कि जाट समाज जिले में मृत्युभोज जैसी कुप्रथा से पूरी तरह आजाद हो चुका है। राजस्थान जाट महासभा के प्रदेश महामंत्री राकेश फौजदार बताते हैं कि यह कुप्रथा पूरे समाज को कचोट रही थी। सामाजिक चर्चा के बीच यह बात समाज के प्रबुद्ध लोगों को भी अखर रही थी। इस बीच जाट महासभा के जिलाध्यक्ष डॉ. प्रेम सिंह कुंतल ने इसके लिए बीड़ा उठाया और डेढ़ सौ गांवों की पंचायत बुलाकर मृत्युभोज जैसी कुप्रथा को बंद करने के लिए समाज को राजी किया। पंचायत में इस पहल की सराहना हुई और समाज ने खुद ही इसे हाथोंहाथ लिया। ऐसे में जाट समाज इस कुप्रथा से आजाद होने वाला समाज बन गया। फौजदार बताते हैं कि जाट समाज ने दो साल लगातार इसके लिए गांव-गांव जाकर लोगों से समझाइश की। साथ ही यह भी बताया कि मृत्यु निवारण अधिनियम 1960 के तहत यह कानूनन अपराध है। अदालत भी इसे जुर्म की नजर देखती है। हर गांव और ढाणी में इस अधिनियम से जुड़े तथ्य बताए गए। साथ ही गांवों में पंचायत करके लोगों को जागरूक किया। अंत में इसके बेहतर परिणाम सामने और समाज ने इस कुप्रथा से पूरी तरह मुक्ति पा ली। फौजदार बताते हैं कि इस पहल के सामाजिक स्तर पर भी बेहतर नतीजे सामने आ रहे हैं। जाट समाज की पहल के बाद मृत्युभोज जैसी कुप्रथा के खात्मे के लिए अन्य समाज भी आगे आ रहे हैं। यह समाज में बदलाव की नई कहानी लिखेगा।
सिख समाज ने पेश की मिसाल

भरतपुर . देश में आई कोरोना की पहली लहर ने हर किसी को खौफ से भर दिया है। घरों में कैद लोग जिंदगी बचाने के जतन में जुटे थे तो मजदूर पलायन को विवश थे। जिंदगी बचाने के लिए रोजी-रोटी का जुगाड़ हर किसी के लिए मुश्किल हो रहा था। इस बीच मजदूरों के पलायन की पीड़ा सिख समाज को कचोट गई। ऐसे में सिख समाज भूख-प्यासे नंगे पैर सड़कों पर दौड़ती जिंदगी का सहारा बनने की ठानी और इसी दिन से गुरुद्वारे में लंगर की व्यवस्था की गई। पहले कोरोना काल में प्रतिदिन एक से डेढ़ हजार पैकेट प्रशासन एवं लुपिन के सहयोग से मजदूरों को वितरित किए गए।
गुरुद्वारा सिंह सभा के अध्यक्ष इन्द्रपाल सिंह बताते हैं कि कुछ मजदूर साधनों के अभाव में पैदल ही दूरदराज की यात्रा कर रहे थे। कई मजदूरों के साथ छोटे बच्चे थे। फैक्ट्री सहित अन्य चीजें बंद होने से उनके खाने के लाले पड़ गए थे। इस बीच गुरुद्वारा सिंह सभा ने ऐसे मजदूरों की पीड़ा हरने के लिए गुरुद्वारे में कोरोना प्रोटोकाल के तहत खाना बनाना शुरू कर दिया। जिला प्रशासन को करीब 1500 पैकेट रोज भोजन के उपलब्ध कराए गए। इन पैकेटों का वितरण लुपिन संस्थान के सहयोग से किया गया। इसके अलावा आरबीएम एवं जनाना अस्पताल में भर्ती मरीजों के लिए भी प्रतिदिन भोजन पहुंचाया गया। बाहर जाने की पाबंदी के बीच गुरुद्वारे में ही रोटी, दाल, सब्जी चावल आदि बनाकर पैकिंग कराकर उन्हें मजदूरों के अलावा हर जरूरतमंद तक पहुंचाया गया। इन्द्रपाल ङ्क्षसह बताते हैं कि पीडि़ता मानवता से बढ़कर दुनिया में कुछ भी नहीं है। गुरुद्वारा इसके लिए अपनी अलग पहचान रखता है। इसी सेवा भाव के उद्देश्य से पीडि़त मानवता की सेवा के लिए यह भोजन पहुंचाने का काम किया गया।
चिकित्सा विभाग ने की सराहना

सिख समाज की इस पहल की चिकिसा विभाग ने भी खासी सराहना की थी। तत्काली सीएमएचओ डॉ. कप्तान सिंह ने इन्द्रपाल ङ्क्षसह को लिखे पत्र में कहा था कि देश व समाज वैश्विक कोरोना महामारी से जूझ रहा है। यह समय की मांग है कि हम एक-दूसरे की मदद करें। आपदा की इस घड़ी में जरूरतमंदों व कोरोना से लड़ रहे कोरोना योद्धाओं को भोजन उपलब्ध कराने का जो बीड़ा उठाया है। वह वाकई में प्रशंसनीय है।

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