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बस्सी

किसानों के लिए मुसीबत बन रहा मौसम का मिज़ाज़, जानें क्यों और कैसे बढ़ रहा आर्थिक बोझ?

किसान जब फसल उगाने के लिए बीज खरीदता है तो उसको तैयार फसल का कई गुना अधिक दाम चुकाना पड़ता है, लेकिन जब उसी बीज की फसल को तैयार होने के बाद मण्डी या बाजार में बेचता है तो उस बीज की कम कीमत मिलती है।

बस्सीJun 20, 2023 / 02:05 pm

Nupur Sharma

Weather Becoming Trouble For Farmers, Prices Of Seeds Rising

बस्सी। किसान जब फसल उगाने के लिए बीज खरीदता है तो उसको तैयार फसल का कई गुना अधिक दाम चुकाना पड़ता है, लेकिन जब उसी बीज की फसल को तैयार होने के बाद मण्डी या बाजार में बेचता है तो उस बीज की कम कीमत मिलती है। अब खरीफ की फसलों की बुवाई का वक्त आ गया है। किसान को बाजार में खाद बीज की दुकानों पर डेढ़ किलो बीज की कीमत 700 रुपए चुकानी पड़ रही है। जब किसान की फसल पककर तैयार हो जाएगी तो उनकी फसलों के दाम गिर जाएंगे और यही बाजरा उसको पन्द्रह सौ रुपए प्रति क्विंटल बेचने को मजबूर होना पड़ेगा। यही नहीं किसान को बीज के साथ दीमक एवं सफेद लटों की दवाईयों में भी लूटा जा रहा है। यह केवल बाजरे के बीज की ही बात नहीं है, सभी फसलों के बीज की यही स्थिति है।


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बीज पर हर वर्ष बढ़ रहे दाम
जयपुर ग्रामीण इलाके बस्सी, चाकसू एवं जमवारामगढ़ उपखण्डों में पिछले कई वर्षों से खरीफ की फसलों के बाजरे के बीज में प्रति डेढ़ किलो की पैकिंग पर प्रति वर्ष 70 से 100 रुपए बढ़ रहे हैं। जबकि उनकी तैयार फसलों के भाव पिछले कुछ वर्षों से उतने नहीं बढ़ रहे हैं, जितने भाव बीज के बढ़ रहे हैं। इस इलाके में खाद बीज की दुकानों पर एक प्रसिद्ध कम्पनी के बाजरे का बीज की डेढ़ किलोग्राम बीज की एक पैकिंग की थैली 600 से 630 रुपए के बीच बिक रही थी, इस वर्ष बाजार में इसी कम्पनी की यही पैकिंग 700 रुपए में मिल रही है। यदि एक किसान को एक बीघा पक्के में बाजरे की बुवाई करनी है तो उसको कम से कम दो थैली यानि तीन किलो बीज की आवश्यकता होती है। इस पर उसको एक बीघा में ही करीब डेढ़ रुपए अधिक चुकाने पड़ेंगे।

कीटनाशक के कोई मोलभाव नहीं
जब से इलाके में खरीफ की फसलों में सफेद लट का प्रभाव हुआ है, तब से बाजरे के बीज के बीज के साथ कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग भी करना जरूरी होता है। बाजार में कीटनाशक दवाइयों के तो कोई मोलभाव ही नहीं है।


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बाजार में प्राइवेट कम्पनियों का बीज आ रहा है, व्यापारी मनमाने दाम वसूल रहे हैं। सरकारी संस्थाएं मुनाफा कम मिलने के चक्कर में बीज नहीं ला रही है।-मुरारीलाल मीना, सहायक कृषि अधिकारी बस्सी

https://youtu.be/X8s4BMzF0DE

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