ए श्रेणी के मामलों की माह में चार बार सुनवाई
एसडीएम ने वर्ष 1973 से वर्ष 2004 तक चल रहे करीब 65 मामलों को ए श्रेणी में रखा है। इन मामलों की सुनवाई के लिए सप्ताह में प्रत्येक सोमवार को तारीख दी जाएगी।
बी श्रेणी के मामलों की माह में दो बार सुनवाई
सूत्रों के अनुसार वर्ष 2005 से वर्ष 2011 तक के करीब 247 मामले विचाराधीन हैं। इसके लिए बी 1, बी 2 व बी 3 तीन श्रेणियां बनाई गई हैं। बी-1 श्रेणी में वर्ष 2005 से वर्ष 2006 तक के करीब 83 मामलों को रखा है। इनकी सुनवाई महीने में पहले व तीसरे मंगलवार को, बी 2 श्रेणी में वर्ष 2007 से वर्ष 2009 तक के करीब 85 मामलों की सुनवाई महीने में दूसरे व चौथे मंगलवार को एवं बी-3 श्रेणी में वर्ष 2010 से वर्ष 2011 तक के करीब 79 मामलों की सुनवाई के लिए महीने का पहला व तीसरा बुधवार तय किया गया है। यानी बी श्रेणी के मामलों की सुनवाई महीने में दो बार होगी।
एसडीएम न्यायालय की नई व्यवस्था के तहत सी श्रेणी में वर्ष 2012 से वर्ष 2015 तक के चार वर्ग बनाए गए हैं। इसमें सी-1 श्रेणी में वर्ष 2012 के करीब 68 राजस्व मामलों के लिए दूसरा बुधवार, सी-2 श्रेणी में वर्ष 2013 के करीब 64 मामलों के लिए महीने का चौथा बुधवार, सी-3 श्रेणी में वर्ष 2014 के करीब 55 मामलों के लिए पहला गुरुवार एवं तीसरा गुरुवार एवं सी-4 श्रेणी में वर्ष 2015 के करीब 85 प्रकरणों के लिए तीसरा गुरुवार निर्धारित किया गया है। यानी महीने में इस श्रेणी के प्रकरणों की सुनवाई एक बार होगी।
डी श्रेणी की माह में दो-तीन बार सुनवाई
सूत्रों की माने तो डी श्रेणी में वर्ष 2016 में करीब पौने पांच सौ प्रकरण विचाराधीन बताए गए हैं। वर्ष 2016 के प्रकरणों की गम्भीरता को देखते हुए 5 श्रेणी बनाई गई है। इसके चलते डी-1 श्रेणी के मामलों की सुनवाई माह के दूसरे गुरुवार को, डी-2 के मामलों की सुनवाई माह के चौथे गुरुवार को, सी-3 प्रकरणों की माह के पहले शुक्रवार, थ्री-4 के मामलों की माह के तीसरे शुक्रवार एवं डी-5 श्रेणी के मामलों की सुनवाई माह के चौथे शुक्रवार को की जा रही है।
2017 के मामलों की सुनवाई एक या दो बार
सूत्रों के अनुसार एसडीएम न्यायालय में 01 जनवरी 2017 में करीब पौने दो सौ विचाराधीन बताए गए हैं। इनको दो श्रेणी डी-सिक्स व डी-सेवन में रखा गया है। इसके लिए दूसरे शुक्रवार एवं विशिष्ट दिन सुनवाई की जा रही है।
सूत्रों की मानें तो इस व्यवस्था से दो-दो, तीन-तीन माह में मामलों की तारीखें नहीं ली जाएंगी। इससे प्रकरणों को गति मिलेगी। फैसला भी जल्द होगा। पहले आगे की तारीख देने के लिए कैलेण्डर देखना पड़ता था, लेकिन अब दिन-वार तय हो जाने से इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। अधिवक्ता एवं पक्षकार पहले से ही तैयार होंगे।
नई व्यवस्था सही नहीं है। इससे पक्षकारों को लाभ नहीं है। यदि किसी मामले को निस्तारित करना है तो किया जा सकता है। नई व्यवस्था की जरूरत नहीं है।
आर.एल. शर्मा, अधिवक्ता, बार एसोसिएशन बस्सी