शाहपुरा। उत्तराखण्ड में ग्लेशियर टूटने से मची तबाही को आज 9 साल बीत गए, लेकिन अपनों को खोने वाले बहुत से परिवार मौत के उस मंजर को आज भी भूल नहीं पा रहे हैं। केदारनाथ दर्शन को गए देश-विदेश के श्रद्धालुओं ने उस आपदा का मंजर देखा था। सैंकड़ों श्रद्धालु उस प्राकृतिक आपदा में समाकर काल कवलित हो गए, जिनका आज तक पता नहीं चला। अपनों को ढूंढने गए परिजन रौंगटें खड़े करने वाले आपदा के उस मंजर को याद कर आज भी सिहर उठते हैं। उस त्रासदी ने कई परिवारों को तबाह कर दिया, जो आज भी अपनों को याद कर सिसक उठते हैं।
जयपुर जिले के सबसे अधिक लोग हुए लापता
उस त्रासदी में राजस्थान के करीब 499 लोग लापता हुए थे। जिनमें जयपुर जिले के सबसे अधिक 225 यात्री गुम हुए हैं। किसी परिवार के माता-पिता तो किसी परिवार का जवान बेटा। यहां से गए परिजनों ने करीब एक माह तक लापता हुए अपनों को खूब ढूंढा लेकिन दूर-दूर तक तबाही के निशान के सिवा कुछ नहीं मिला। ऐसे में थकहार कर वापस लौट गए। जयपुर की बस्सी तहसील के 61 केदारनाथ यात्री आज तक वापस नहीं लौटे। विराटनगर के खातोलाई गांव में भी 4 दम्पति सहित 16 लोग उस त्रासदी का शिकार हुए। जिनका आज तक पता नहीं चला। उनके परिजन आज भी मौत के उस मंजर को भूल नहीं पा रहे हैं।
हर आहट पर लगता है बेटा लौट आया हो
काछवालों की ढाणी खातोलाई निवासी 77 वर्षीय प्रभाती देवी की बूढी आंखें आज भी दरवाजे की ओर टकटकी लगाए रहती है। उसे हर आहट पर लगता है कि उसका केदारनाथ में लापता हुआ बेटा प्रहलाद शर्मा वापस लौट आया। प्रहलाद(37) घर में एकमात्र कमाने वाला था। अब उसकी पत् नी संजू देवी पर वृद्ध सास प्रभाती देवी, दो बेटियों आशा व कृष्णा और बेटे राहुल की जिम्मेदारी है। परिजन उस मंजर को आज भी भूल नहीं पा रहे हैं। विराटनगर के खातोलाई गांव में करीब एक दर्जन परिवारों को इसी तरह का दर्द है। त्रासदी में किसी ने माता-पिता खो दिए तो किसी ने पति, भाई और बेटा।
चार बहन-भाइयों ने माता-पिता को खोया, त्रासदी के नाम से ही छलक पड़े आंसू
सेवदा वाली ढाणी निवासी दम्पति घीसी देवी व बनवारी लाल शर्मा भी त्रासदी में लापता हो गए। उनके तीन बेटे और एक बेटी है, जिनके सिर से माता-पिता दोनों का साया उठ गया। बेटा संदीप और सत्यनारायण से जब उस त्रासदी के बारे में बात की तो उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े। उनका कहना है कि त्रासदी के उस मंजर को कभी नहीं भूल सकते। बेटा सत्यनारायण गांव के ६ लोगों के साथ माता-पिता को ढूंढने भी गया और एक माह तक ख्ूाब ढूंढा, लेकिन नहीं मिले। थकहार कर एक माह बाद खाली हाथ वापस लौट आए। जाटा वाली ढाणी निवासी मूली देवी भी उस त्रासदी का शिकार हो गई। अब उनके पति रामेश्वर प्रसाद पलसानिया ही बेटा हितेश और बेटी मंजू के लिए माता-पिता दोनों की भूमिका निभाकर पालन पोषण कर रहे है। मां को खोने वाले दोनों बच्चों से उस त्रासदी के बारे में पूछा तो उनकी आंखों से आंसू बह निकले। ऐसे और भी बहुत से परिवार है, जिनके कई अपने वापस नहीं लौटे।
मूंडिया चाकसू निवासी दयाराम जाट के माता-पिता भी 2013 में केदारनाथ की यात्रा पर गए थे, जो उस त्रासदी का शिकार हो गए। दयाराम ने बताया कि वहां बादल फटने से हुई त्रासदी में माता-पिता दोनों लापता हो गए। घटना बाद वहां जाकर 10 दिन तक उनको खूब तलाश किया लेकिन उनका पता नहीं चला। उस समय सरकार ने आश्रितों को सरकारी नौकरी देने की घोषणा की थी, लेकिन अभी तक नहीं मिली।
खातोलाई विराटनगर निवासी पीडि़त परिवारों के आश्रित संदीप शर्मा, महेन्द्र शर्मा, सूरजमल जाट, सीताराम जाट, जुगलकिशोर शर्मा ने बताया कि केन्द्र व राज्य सरकार से सहायता राशि तो मिल चुकी, लेकिन उत्तराखंड सरकार से 1.5 लाख का पैकेज और राजस्थान सरकार से अनुकम्पा नौकरी का अभी तक इंतजार है।