पानसेमल के समीप महाराष्ट्र में स्थित ग्राम असलोद से नाना बाबा ने ये कावड़ प्रारंभ की थी। उसके बाद पानसेमल तहसील के जलगोन गांव में रहने वाले उखाजी महाराज ने 52 वर्ष पूर्व यह यात्रा शुरू की। जब उन्हें ज्ञात हुआ कि नासिक जिले में स्थित नांदूरी गढ़ पर विराजित मां सप्तशॄंगी निवासिनी देवी का शरद पूर्णिमा (कोजागिरी पूर्णिमा) को पावन जल से महाजलाभिषेक होता है, तो उखाजी महाराज की माता में असीम भक्ति का संचार हुआ।
उखाजी महाराज के ब्रह्मलीन होने के बाद उनकी कावड़ की जिम्मेदारी पानसेमल निवासी पं. भट्टू उमाकांत कुलकर्णी को सौंपी गई। वे अपने गुरु के संकल्प का भक्ति पूर्वक पालन कर रहे है। उखाजी महाराज की कावड़ की इतनी प्रसिद्ध हो गई कि पानसेमल से लेकर माता के गढ़ तक अन्नदाताओं ने अपने भंडार खोल दिए। सैकड़ों पद यात्रियों को दोपहर और रात्रि भोजन एवं विश्राम की सेवा देने लगे।
7 दिन तक चलेंगे पैदल यात्री
इस बार क्षेत्र से करीब एक दर्जन से भी अधिक मंडल 21 व 22 अक्टूबर को नगर व अन्य गावों से रवाना हुए हैं। कावड़ पदयात्रा संचालक पं. भट्टू कुलकर्णी महाराज ने बताया कि पहले हमारे द्वारा पहले चरण में उज्जैन से 7 दिनों में कावड़ पानसेमल लाई जाती है। दूसरे चरण में पानसेमल से फिर 7 दिन पैदल चल शरद पूर्णिमा (कोजागिरी पूर्णिमा) को पहुंचकर रात्रि में होने वाले माताजी के अलौकिक महाजलाभिषेक में जल अर्पण करते है।