1900 से 1965 तक यह रेलमार्ग चला। फिर 2006 से 2019 तक थार एक्सप्रेस संचालित हुई ,लेकिन पुलवामा हमले के बाद दोनों देश इस मार्ग को बंद किए हुए है। भारत-पाक के लाखों शरणार्थी इस आस में है कि यह मार्ग खुले तो आ-जा सके। आजादी से पहले जोधपुर और कराची के व्यापारिक संबंध थे।
इन संबंधों के चलते रेल लाइन बिछाने का सुझाव तात्कालीन महाराजा जोधपुर सरदारसिंह ने दिया। इसके पहले चरण में जोधपुर-बालोतरा-बाड़मेर की रेल लाइन बिछाई गई, जो 15 मई 1899 को पूर्ण हो गई। इसके बाद बाड़मेर से खोखरापार 74 मील की रेल बिछाई गई। इससे जोधपुर से कराची के बीच में व्यापारिक रेल चलने लगी। इस रेल का व्यापारिक उपयोग भी होता था। जिसमें कपड़ा, पशुधन, अनाज और कई सामग्री आती जाती थी।
Thar Express History: 1947 से 1965 तक एक लाख आए
1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवार हो गया। तब इस रेलमार्ग से 65 हजार के करीब लोग भारत आए। इसके बाद 1965 तक लगातार आने वाले लोगों की संख्या एक लाख के करीब रही। 1965 के युद्ध की बमबारी में रेल पटरियां उखड़ गई। इससे यह मार्ग बंद हो गया।
41 साल बाद फिर जुड़ा
18 फरवरी 2006 को भारत-पाकिस्तान ने इसे ब्रॉडगेज में बदलते हुए फिर से थार एक्सप्रेस प्रारंभ की। 41 साल बाद इस मार्ग से आना-जाना शुरू हुआ। 10 अगस्त 2019 तक यह रेल अनवरत चली और हर हफ्ते 700 से 800 यात्रियों का आवागमन रहा। पुलवामा हमले के बाद 10 अगस्त 2019 को यह रेलमार्ग बंद कर दिया गया। मांग आज भी मगर मार्ग बंद
पश्चिमी सीमा के इस मार्ग को फिर से शुरू करने की मांग है। एक लाख से अधिक शरणार्थी परिवार इधर है तो लाखों परिवार पाकिस्तान में है, जिनका रोटी-बेटी का रिश्ता है। थार एक्सप्रेस फिर से शुरू हों तो इनके लिए आना जाना आसान हों।
ये कर रहे सवाल, नहीं मिल रहा जवाब-
- बाघा बॉर्डर को खोल दिया गया है, तो मुनाबाव-खोखरापार क्यों नहीं?
- बाघा में मिल रहा ऑन फुट वीजा तो मुनाबाव में क्यों नहीं?
- बाड़मेर-जैसलमेर-जोधपुर-पाली के परिवार बाघा से पाकिस्तान आ जा सकते है तो फिर मुनाबाव से क्यों नहीं?
- बाघा बॉर्डर पर रिट्रीट सेरेमनी और हजारों लोग पर्यटन को पहुंच रहे तो फिर मुनाबाव को लेकर सख्ती क्यों?
- मुनाबाव से आने जाने वाले अधिकांश गरीब परिवार, फिर गरीब परिवारों के लिए सस्ता मार्ग बंद क्यों?
सियासत समझें हमारे मन की बात
मसला सियासतों का है। बाघा खुला है। मुनाबाव बंद है। पाकिस्तान आने-जाने के एक रास्ते पर ताले और दूसरे पर अनुमति। बात यही खल रही है। यह मार्ग खुलने से पश्चिमी बॉर्डर से आना-जाना सस्ता, आसान, कम समय में होगा। सियासत हमारे मन की बात समझेे।- बाबूदान चारण, अध्यक्ष ढाट पारकर सोसायटी – बाबूदान चारण, अध्यक्ष ढाट पारकर सोसायटी