गडरारोड़ रेलवे स्टेशन का इतिहास बताया
शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को पत्र लिखते हुए मांग की है कि, “मैं इस पत्र के माध्यम से भारत के पहले छोर पर अवस्थित उस रेलवे स्टेशन के बारे मे आपको अवगत करवाना चाहूंगा, जो भारतीय रेलवे को गौरवशाली इतिहास एवं अपनी विशिष्ट सामरिक अवस्थिति में एक विशेष स्थान रखता है। बाड़मेर जिले का गडरारोड़ रेलवे स्टेशन, जहां भारत ही नहीं वरन् वैश्विक इतिहास का एकमात्र ऐसा मेला भरता है जो रेलवे के कर्मचारियों की शहादत में आयोजित किया जाता है।” उन्होंने आगे लिखा कि, “1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान जहां एक तरफ दुर्गम रेगिस्तान में हमारे जांबाज सिपाही दुश्मनों से लड़ रहे थे। वहीं, इस लड़ाई में एक बड़ा योगदान रेलवे कर्मचारियों का भी रहा है। 09 सितंबर,1965 का दिन, जब सैनिकों तक युद्ध रसद सामग्री पहुंचाना जरूरी था, इसलिए बाड़मेर से रेलवे कर्मचारियों के साथ सेना के जवान रेल से सामान लेकर गडरारोड के लिए रवाना हुए।”
17 रेलवे कार्मिकों ने सर्वोच्च बलिदान दिया- भाटी
रविंद्र सिंह भाटी ने बताया कि, “रेल जैसे ही गडरारोड़ की गोलाई में पहुंची तो अचानक आसमान से बमबारी और गोलाबारी शुरू हो गयी। पाकिस्तानी वायुसेना द्वारा लगातार बमबारी की जा रही थी, जिससे रेल के अंतिम कोच में आग लग गयी। तभी इंजन चालक व अन्य रेलवे कार्मिकों ने बहादुरी व वीरता का परिचय देते हुए उस कोच को रेल से अलग कर रेलगाड़ी को रवाना किया। रेल का अंतिम डिब्बा होने के कारण उसमें अधिकाशं रेलवे कर्मचारी थे, जिनमें से 17 रेलवे कार्मिकों ने देश की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।” ‘ये 59 वर्ष पुरानी घटना है’
उन्होंने कहा कि, “वैसे तो इस घटना को घटे 59 वर्ष बीत गये लेकिन भारतीय रेलवे द्वारा इस शहादत स्थल सिर्फ एक शहीद मेला ही आयोजित किया जाता है। यह भारतीय रेलवे के लिए अद्वितीय मिसाल है कि रेलवे के 17 कार्मिकों ने देश की रक्षा के लिए पटरियों पर दुश्मन का सामना करते हुए राष्ट्र हित में अपने प्राणों की आहुति दी है।”