राजी हुआ…भीतर का किसान
किसान आंदोलन को लेकर तीनों कानून वापस लेने से रेगिस्तान के इस इलाके में ज्यादा असर नहीं हुआ लेकिन असरदार रहा भीतर के किसान के राजी होने का। भावनात्मक रूप से किसानों के साथ जुड़े भूमिपुत्रों के चेहरे पर इस खुशी को पढ़ा गया कि किसान हारे नहीं…जीत गए।
राजी हुआ…भीतर का किसान
रतन दवे
टिप्पणी
किसान आंदोलन को लेकर तीनों कानून वापस लेने से रेगिस्तान के इस इलाके में ज्यादा असर नहीं हुआ लेकिन असरदार रहा भीतर के किसान के राजी होने का। भावनात्मक रूप से किसानों के साथ जुड़े भूमिपुत्रों के चेहरे पर इस खुशी को पढ़ा गया कि किसान हारे नहीं…जीत गए। खेती-किसानी इस इलाके में भी 75 फीसदी परिवार जुड़े हुए है। रेगिस्तान के किसानों ने अभाव-अकाल खूब सहे और वर्ष 2000 से पहले तो यहां के अधिकांश क्षेत्र में खरीफ की फसल हुई और बारिश से जो मिला उससे ही संतोष कर लिया,लेकिन अब कृषि कुओं व नहरी पानी ने रबी की फसल को बढ़ाया है। 55 हजार कृषि कुओं से किसानों को अरबों की फसलें मिलने लगी है। इसके साथ ही किसानों के मुद्दे भी अब बनने लगे है। बाड़मेर में बड़ी फसल जीरे की है,लेकिन जीरा मण्डी बाड़मेर में नहीं है। जीरा बेचने के लिए किसानों को ऊंझा(गुजरात)जाना पड़ता है, लूट-आर्थिक नुकसान और फिजूल समयखर्ची से किसान परेशान है, लेकिन सरकार जीरा मण्डी बाड़मेर में लगाने का वादा पूरा नहीं कर पाई है। फसल बीमा की सुविधा तो है लेकिन बीमा राशि के लिए इंतजार और आंदोलन हर बाद करने की नौबत आ जाती है। यहां किसानों को फसल बीमा की सुविधा ग्राम पंचायत स्तर पर नहीं मिलने की भी मुश्किल है। एमएसपी के खरीद केन्द्र भी प्रत्ये ग्राम पंचायत स्तर पर करने की मांग लंबित है, अभी केवल बालोतरा में है। जिले के किसानों ने खुद को अत्याधुनिक बनाते हुए रेगिस्तान में अनार की पैदावार को इतना बढ़ा दिया है कि अब बाड़मेर के अनार का नाम थार अनार हो गया है। करीब पांच साल पहले यहां अनार की प्रोसेसिंग युनिट लगाने का वादा किया गया था लेकिन इसको लेकर भी दो कदम आगे बढऩे जैसा कुछ नहीं हुआ है। अनार की प्रोसेसिंग युनिट सीधा किसान व खेती व्यापार से जुड़े लोगों को फायदा देगा। नहरी पानी को लेकर भी नर्मदा नहर को चौहटन व बायतु इलाके तक बढ़ाने की मांग होने लगी है। नर्मदा अभी रामसर गडरारोड़ तक की योजना में ही है। विद्युत कनेक्शन को लेकर आ रही दिक्कत में जब किसान सौर ऊर्जा की ओर आगे बढ़ा है तो इसमें भी अब कनेक्शन सीमित होने से कतार में लगना पड़ रहा है। किसानों के लिए टिड्डी की मार हों या मौसम की मार,हर बार सरकार के सामने खड़ा रहकर संघर्ष करने की स्थिति खत्म नहीं हुई है। जरूरी है कि रेगिस्तान के किसानों को भी अब खेती से जुड़े रहने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। खेती और पशुपालन इस इलाके के इतने बड़े आधार है जो पड़ौसी राज्य गुजरात के बराबरी पर बाड़मेर-जैसलमेर को खड़ा कर सकते है। परिवहन के बढ़े साधनों में अब जरूरी है कि खुश हो रहे भीतर के किसान को सरकार सुविधाएं दें। अन्नदाता के पास अन्न का भण्डार है बस इसको भरपूर करने के लिए प्रोत्साहन निरंतर जरूरी है।
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