नतीजा, खेतों में पराली जलाने की घटनाओं ने बारां जिले व प्रदेश सहित पजाब, हरियाणा, मप्र, उत्तरप्रदेश जैसे कई राज्यों के रिकॉर्ड तोड़ रखे हैं। खेतों की उर्वरा शक्ति कमजोर हो रही है। प्रकृति को मदद करने वाले अनगिनत जीवों की बलि चढ़ रही है तो आग से निकलने वाला धुआं फेफड़ों को बीमार कर रहा है। उधर गर्मी के समय धधकते जंगल हर साल लाखों पेड़ों की जान ले रहे हैं। इसी वर्ष अप्रेल में जिले के शाहाबाद में जंगल में लगी आग कई दिनों तक काबू नहीं हई थी। इसमें कई पेड़-पौधों की प्रजातियों को नुकसान पहुंचा था। वन्यजीवों पर भी इसका असर हुआ था। इन घटनाओं से वनस्पतियां विलुप्त हो रही हैं तो वन्य प्राणी भी मौत के मुंह में जा रहे हैं।
आदेश हो रहे हवा खरीफ फसल की कटाई के समय हर साल पराली और गर्मी में जंगल की आग को रोकने के आदेश-निर्देश जारी होते हैं, लेकिन ये जमीन पर धड़ाम हो रहे हैं। पूरा सिस्टम आग रोकने में नाकाम साबित हो रहा है।
ये कमियां आ रही आड़े आदेश-निर्देश जारी करने के अलावा मैदानी स्तर पर कोई सिस्टम सक्रिय नहीं होना। पता चलने के बावजूद राजनीतिक संरक्षण और दबाव के चलतेपराली जलाने वाले किसानों पर ठोस कार्रवाई से बचना।
जंगल में आग की वजह सबसे अधिक मामले जंगल में आग के महुआ, अन्य वनोपज एकत्र करने के दौरान लगाई गई आग के चलते होते हैं। इस दौरान लगाई गई आग जंगल में फैल जाती है। महुआ को एकत्रित करने के लिए आग लगाई जाती है, ताकि पेड़ों के नीचे का कचरा साफ हो जाए। वन विभाग आग लगाने वालों का पता ही नहीं कर पाता। इस पर रोक के लिए नागरिकों की सहभागिता वाला कोई प्रभावी सिस्टम आज तक नहीं बन पाया।
सेटेलाइट से मिली इमेज और मैप के आधार पर जिले में पराली जलाने के मामलों का पता चला है। हालांकि अब इन पर रोक लग गई है। क्योंकि खेतों में अब बुवाई का सीजन चल रहा है। ऐसे में फसलों के अवशेष पहले ही निस्तारित कर दिया गए या जला दिए गए हैं। इस दौरान दो आपराधिक मामले भी दर्ज किए गए। इनको निस्तारण के लिए एसडीएम के पास भेज दिया गया है।
अतीश कुमार शर्मा, संयुक्त उपनिदेशक, कृषि विस्तार बारां