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बाराबंकी

जानिए, आखिर क्या है बाराबंकी का इतिहास, क्यों है समाजवादियों का बाहुल्य 

राजा बलभद्र सिंह चहलारी ने इसी विधानसभा के ओबरी के जंगल में अंग्रेजों से लोहा लिया था। लखनऊ की बेगम हज़रत महल का भरोसा भी यहीं के युवा क्रान्तिकारियों पर था। 

बाराबंकीJul 22, 2016 / 09:14 am

आकांक्षा सिंह

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बाराबंकी। जिले का इतिहास काफी प्राचीन इतिहास रहा है। जानकारों के मुताबिक यह जिला पहले दरियाबाद के नाम से जाना जाता था। अंग्रेजी हुकूमत के समय इस जिले का नाम बदला गया। जानकारों के अनुसार भगवान बाराह का जन्म यहीं हुआ था और उन्हीं के नाम से बाराह वन(जंगल) कभी हुआ करता था और उसी बाराह भगवान और बाराह वन के नाम पर इस जिले का नाम पड़ा। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय भी यह जिला क्रांतिकारियों का अड्डा कहा जाता था। 

राजा बलभद्र सिंह चहलारी ने इसी विधानसभा के ओबरी के जंगल में अंग्रेजों से लोहा लिया था। लखनऊ की बेगम हज़रत महल का भरोसा भी यहीं के युवा क्रान्तिकारियों पर था। जिस तरह से पूरे देश में बारह ज्योतिर्लिंग है। ठीक उसी प्रकार बाराबंकी जिला भी बारह नामी शिव मन्दिरों से घिरा हुआ है। प्रसिद्द सूफी सन्त हाजी वारिश अली शाह की दरगाह (देवा )और महाभारत कालीन शिव मन्दिर लोधेशवर महादेव (महादेवा) यहां की गंगा जमुनी तहज़ीब की विरासत सम्हाल रहा है। बाराबंकी विधानसभा जो कि 2012 के विधानसभा चुनाव से पूर्व नवाबगंज विधानसभा के नाम से जानी जाती थी। 


बाराबंकी सदर विधानसभा में जातिगत प्रभाव 

बाराबंकी सदर विधानसभा पूर्व में नवाबगंज विधानसभा आरम्भ से ही समाजवादियों का गढ़ रहा है। कारण, यहां पिछड़ी जातियों की बहुलता का होना कह सकते हैं। पिछड़ी जातियों में यादव और फिर उसके बाद कुर्मी जाति के कंधे पर चढ़ कर ही समाजवाद का डंका यहां एक आधे अपवादों को छोड़कर लगातार बजता रहा हैं। इस विधानसभा में मुसलमान मतदाता भी निर्णायक साबित होता रहा है। अगड़ी जातियां यहां हैं तो जरूर मगर बगैर पिछड़ी जातियों को जोड़े उनकी राजनैतिक मंशा पूरी नहीं हो सकती। इसीलिए यहां के जनप्रतिनिधि हमेशा से पिछड़ी जातियों से ही होते आये हैं। 


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बाराबंकी विधानसभा में जातिगत आंकड़े 

1) यादव -18 %
2) कुर्मी -17 %
3) मौर्य – 2 %

4) ब्राम्हण -10%
5) क्षत्रिय – 9 %
6) कायस्थ -4 %
7) लोधी/मल्लाह – 8 %
8) मुस्लिम – 30%
9) अन्य – 2%


बाराबंकी सदर का राजनैतिक इतिहास

इस विधानसभा में हमेशा से समाजवादियों की ही राजनीती फली फूली है। अगर दूसरे दल के लोगों ने बाज़ी मारी भी है तो वह भी पिछड़ी जातियों के जनप्रतिनिधियों के सहारे ही। इस विधानसभा का एक रोचक इतिहास यह भी रहा है कि, पूरे देश में लगभग नकारी जा चुकी भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी ने भी यहां लगातार कई वर्षों तक अपनी जड़े जमा कर रखी। कद्दावर कुर्मी नेता के रूप में चर्चित स्वर्गीय राम चन्द्र बख्श सिंह लगातार तीन बार कम्युनिष्ट के लाल झण्डे को यहां फहराया। इस विधानसभा ने समाजवादियों का साथ तब भी नहीं छोड़ा जब नब्बे के दशक में राम के रथ पर सवार भाजपा ने पूरा उत्तर प्रदेश जीत लिया था। बसपा ने भी यहां दो बार जीत दर्ज की है मगर वह भी अपने एक कद्दावर कुर्मी नेता संग्राम सिंह वर्मा को आगे रख कर। मगर इन सभी दलों को अगर किसी विचारधारा ने बार बार पटखनी देने का काम किया है। तो वह समाजवाद की विचारधारा ही रही है। 

बाराबंकी की समस्याएं

बाराबंकी विधानसभा में किसानों और मजदूरों की सबसे ज्यादा आबादी निवास करती है। इस विधानसभा में सबसे ज्यादा कारखाने लगे हुए हैं। ज्यादातर मीलों के बन्द हो जाने और कई मिलों के बन्दी कगार पर आ जाने से यहां के मजदूरों के परिवार भुखमरी कगार पर आ गए हैं जो जिले की एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। गन्ना जो यहां के किसानों को कभी मालामाल कर दिया करता था। आज यहां की शुगर मिल बन्द हो जाने के कारण किसानों ने गन्ने की खेती को तिलांजलि दे दी है। जनपद का मुख्यालय होने के कारण सबसे ज्यादा व्यापारी यहीं पर निवास करते हैं और आये दिन व्यापारियों के साथ होती लूटपाट उनके लिए एक बड़ी समस्या होती है। राजधानी लखनऊ के सबसे करीब होने के कारण यहां की ज़मीने सोने के भाव बिकती है। यहां के किसानों की ज़मीनों पर भू-माफियाओं की सबसे ज्यादा नज़र रहती है। भोले -भाले किसानों से ज़मीन की ठगी के मामले यहां की बड़ी समस्या बनी हुयी है। 

पहले इस विधानसभा का नाम नवाबगंज विधानसभा था। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले हुए नए परिसीमन में इस विधानसभा का नाम नवाबगंज से बदलकर जनपद के नाम पर अर्थात बाराबंकी सदर सीट रख दिया गया। समाजवादी पार्टी के धर्मराज यादव उर्फ़ सुरेश यादव इस बदली हुयी विधानसभा के पहले विधायक निर्वाचित हुए। 

जनता ने विधायक द्वारा चुनाव के समय जनता से किये वादों को भूल जाने का आरोप लगाया और जनता के मुताबिक विधायक सिर्फ अपने और अपने कुनबे के फायदे के लिए काम करते रहे जनता से उनका कोई सरोकार नहीं रहा। 

विधायक ने कहा सभी वादे हुए पूरे 

विधायक धर्मराज यादव (सुरेश यादव) ने बताया कि, चुनाव समय जो भी वादे जनता से उन्होंने और उनकी पार्टी ने किये थे वह सभी पूरे हो चुके है। 

प्रतिद्वन्दियों ने कहा कि, जनता छली गयी 

भारतीय जनता पार्टी से 2012 चुनाव में प्रत्याशी रहे सन्तोष सिंह और बसपा के जिलाध्यक्ष सुरेश चन्द्र गौतम ने बताया कि, विधायक झूंठी दलीलें दे रहे हैं। जनता को केवल छला गया है। जहां तक विधायक के कामों का सवाल है तो उन्होंने केवल प्रॉपर्टी डीलिंग के कारोबार को अपने और अपनों के लिए बढ़ावा देने का काम किया है। 

जनता की नज़र में विधायक के कामकाज 

जनता से जब विधायक के काम काज से जुड़े सवाल किए गए तो वह भी विधायक के कार्यों से संतुष्ट नहीं दिखे। गुण्डागर्दी और कानून व्यवस्था के नाम पर सरकार को जनता ने घेरा ही उल्टा विधायक के तौर तरीकों पर भी सवाल खड़ा किया। जनता ने नम्बर भी कुछ ऐसे ही दिए कि विधायक तृतीय श्रेणी में भी पास होते नहीं दिखते।

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