कई पुशपालक तो गायों को मेहंदी व थापा भी लगाया और गले में घंटियां व घुंघरू बांधे गए। इसके बाद गायों को दौड़ के लिए तैयार किया गया। इसमें जिस रंग की गाय सबसे पहले ध्वज रूपी तोरण को लांघती है, उसी के आधार पर अगली फसल का का पकने का अनुमान लगाया जाता है। इसमें मान्यता है कि सफेद रंग की गाय अगर तोरण लांघती है तो उसे शुभ माना जाता है। इससे अगली फसल अच्छी होती है। वहीं अगर लाल रंग की गाय तोरण लांघती है तो अच्छी बारिश होती है। जो किसानों के सुख और समृद्धि के रूप में देखा जाता है।
यहां पर ढोल, कुंडी बजाई गई। कुछ दूरी पर एक ध्वजामयी तोरण द्वार तैयार किया गया। सभी गायों को एक साथ दौड़ाया गया। ग्रामीण चारों ओर खड़े हो गए ओर ढोल, कुंडी की आवाज धीरे-धीेरे तेज हो गई।इस दोरान सफेद रंग की गाय ने सबसे पहले तोरण पार किया। इसके बाद ग्रामीण मेले में खरीदारी करते हैं। ग्रामीण बताते हैं कि यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। गाय तोरण मेले में पशुपालक समिलित हुए।