प्रोफ़ेसर प्रसन्ना बेलूर और केमिकल इंजीनियरिंग विभाग की टीम ने यह तकनीक विकसित की है। इस तकनीक को अपनाकर 90 प्रतिशत से अधिक ऑक्सालेट जो तीखे स्वाद और जलन का कारण बनते हैं, को इसके स्वाद, सुगंध और बनावट को प्रभावित किए बिना हटाया जा सकता है।
उत्पादित सब्ज़ियों को रेफ्रिजरेटर में एक सप्ताह (4 डिग्री सेल्सियस पर) और वैक्यूम पैकिंग के अनुकूल होने पर तीन महीने तक संरक्षित किया जा सकता है। रतालू, तारो (कोलोकेसिया), तानिया और विशाल तारो जैसी कंद फसलों में बहुत अधिक मात्रा में ऑक्सालेट (शुष्क भार के आधार पर 300-7500 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम कॉर्म) होते हैं। ऑक्सालेट युक्त खाद्य पदार्थों के सेवन से आंतों के मार्ग में कास्टिक प्रभाव और जलन होती है और कैल्शियम, मैग्नीशियम, जिंक और कॉपर जैसे खनिजों की जैव उपलब्धता प्रभावित होती है।
ऑक्सालेट की मध्यम मात्रा का सेवन भी कैल्शियम ऑक्सालेट से प्रेरित किडनी स्टोन रोग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, मनुष्यों द्वारा ऑक्सालेट की खपत की अधिकतम अनुमेय सीमा प्रति दिन 71 मिलीग्राम है। इस तकनीक द्वारा 90% से अधिक हानिकारक ऑक्सालेट हटा दिए जाते हैं।
यह आविष्कार कर्नाटक के जोइदा के कुनाबी जनजातियों द्वारा संरक्षित तारो (मुदली) के दाशीन प्रकार से प्राप्त अद्वितीय स्टार्च पर प्रोफेसर प्रसन्ना और उनकी टीम द्वारा 2019 में किए गए बुनियादी शोध का एक स्पिन-ऑफ था। उन्हें स्टार्च उत्पादन और महिडोल विश्वविद्यालय, थाईलैंड और डे ला सैले विश्वविद्यालय, फिलीपींस के वैज्ञानिकों के साथ उनके सहयोगात्मक कार्य के लिए भारत सरकार के डीएसटी से अनुदान मिला था। शोध कार्य से टीम द्वारा प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में छह से अधिक शोध पत्र प्रकाशित किए गए हैं।
साल 2021 में, इस तकनीक को गैर-अनन्य, सीमित लाइसेंसिंग समझौते के तहत एनजीवी नेचुरल्स इंडस्ट्री प्राइवेट लिमिटेड, बेंगलूरु को हस्तांतरित कर दिया गया। बेंगलूरु स्थित स्टार्ट-अप ने इस तकनीक का उपयोग करके शहर में रेडी-टू-कुक रतालू का सफलतापूर्वक उत्पादन और विपणन किया है। होटल उद्योग बेंगलूरु में इस रेडी-टू-कुक सब्जी का प्रमुख उपभोक्ता है। तीखे कंदों से उत्पादित रेडी-टू-कुक सब्जी सुरक्षित, सुविधाजनक, पौष्टिक है और शहरी उपभोक्ताओं के लिए सस्ती पड़ती है।
इस तकनीक को अपनाने से कटाई के बाद होने वाले नुकसान में कमी आती है, शहरी उपभोक्ताओं की मांग बढ़ती है और इस तरह रतालू और तारो से किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है। अब, एनआईटीके सुरतकल उन उद्यमियों/संगठनों को तकनीक का लाइसेंस देने की योजना बना रहा है जो घरेलू और निर्यात बाजारों के लिए रेडी-टू-कुक सब्जियों के उत्पादन में रुचि रखते हैं।